पटना पुस्तक मेला समाप्त हो गया पर यह मेला सरकार से कौड़ियों के मोल जमीन ले कर करोड़ों रुपये की कमाई का व्यवसाये बना दिया गया है लेकिन जिला प्रशासन इसबार हर पहलू की जांच में जुट गया है.patna.book.fair

संजय कुमार

   पूंजी के खेल में शामिल सीआरडी का पटना पुस्तक मेला आखिर कार सरकार की नजर में आ ही गया। किताबों की दुनिया सजाने के नाम पर सरकार   नन कॉमर्शियल स्टॉल लगाने के लिए छूट तो लिया लेकिन प्रकाशकों को कॉमर्शियल दर पर स्टॉल दिया। यही नहीं पूरे पुस्तक मेले काव्यवसायीकरण कर मोटी कमाई की गयी। पटना के जिला अधिकारी ने मामले पर संज्ञान लेते हुए जांच पड़ताल शुरू करवा दिया है।

    हर साल लगने वाले पटना पुस्तक मेले की पहचान केवल राज्य स्तर तक ही नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी है। राज्य और देश भर के प्रकाशक,लेखक, साहित्यकारों को इसके आयोजन को लेकर इंतजार रहता है।

आरोपों का मेला

 पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने के उद्देश्य  से पटना पुस्तक मेला सीआरडी की ओरसे आयोजित होता रहा है, चार से बारह दिसंबर15 तक लगा यह  मेला एक बार फिर विवादों और आरोपों के घेरे में है।

सीआरडी और राष्ट्रीय पत्रकारसंघ का पुस्तक मेला पूरी तरह से व्यवसायिक स्वरूप में दिखा, मकसद साफ दिखा, आयोजन कर पैसा बटोरो। सरकार पुस्तक मेला आयोजन के लिये आयोजकों को प्रतिदिन पंद्रह पैसे पर स्कायर फीट की दर से गांधी मैदान में जगह देती है।सीआरडी के पटना पुस्तक मेले में प्रकाशकों को दस गुणा दसके लिये लगभग पैंतालीस हजार रूपये देने पड़े

     पुस्तक मेला आज मेला संस्कृति में ढलते हुए व्यवसायिक स्वरूप में खड़ा हो चुका है। इस बार पटना में नवम्बर-दिसम्बर में तीन पुस्तक मेले काआयोजन हुआ। राष्ट्रीय पत्रकार संघ और एनबीटी ने पहले इसका आयोजन किया।

 एनबीटी के पुस्तक मेले को छोड़ दें तो सीआरडी और राष्ट्रीय पत्रकारसंघ का पुस्तक मेला पूरी तरह से व्यवसायिक स्वरूप में दिखा, मकसद साफ दिखा, आयोजन कर पैसा बटोरो। सरकार पुस्तक मेला आयोजन के लिये आयोजकों को प्रतिदिन पंद्रह पैसे पर स्कायर फीट की दर से गांधी मैदान में जगह देती है।सीआरडी के पटना पुस्तक मेले में प्रकाशकों को दस गुणा दसके लिये लगभग पैंतालीस हजार रूपये देने पड़े। इस वजह से छोटे पुस्तक प्रकाशक इस मेले से दूर रहे। सरकार से रियाती दर पर जगह ली। लेकिन प्रवेशशुल्क प्रति व्यक्ति दस रूपये वसूले।

 वहीं, एनबीटी ने पचास प्रतिशत रियायती दर में प्रकाशकों को स्टाॅल दिया,जिसमें छोटे बड़े सभी प्रकाशकों ने स्टॉललगाये। प्रवेश निःशुल्क रखा। राष्ट्रीय पत्रकार संघ ने दावा किया कि छोटे प्रकाशकों को सस्ती दरों पर स्टॉल दिया गया। इसने प्रवेश शुल्क लिया।सीआरडी का पुस्तक मेला और पत्रकार संघ का पुस्तक मेला कहीं से भी पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देते हुए नहीं दिखा।

   एनबीटी का पुस्तक मेला राष्ट्रीय स्तर का परिदृश्य रखने में सफल रहा तो वहीं अन्य दोनों पुस्तक मेले का आलम आम मेलों जैसा ही रहा।

 पुस्तक,कलाशिल्प, शैक्षिक और व्यासायिक स्टॉलों ने चर्चित पटना पुस्तक मेले पर सवाल खड़े कर दिये हैं। स्टॉलों का ढ़ाचा राष्ट्रीय का नहीं दिखा। सीआरडीपुस्तक मेला के आयोजक अमरेन्द्र झा पुस्तक मेला को मेला संस्कृति में तब्दील करने के पीछे तर्क देते हैं कि पुस्तक मेला नीरस होता जा रहा है, उसको ग्लैमरस बनाने के लिये तमाम चीजों को यहां समायोजित कर मेले का स्वरूप दिया, ताकि लोग किताब के साथ-साथ मौज मस्ती कर सकें। दावे पर सवाल उठता है कि एनबीटी के पुस्तक मेले में उमड़ी पाठकों की भीड़ और बड़े पैमाने पर पुस्तकों की बिक्री क्या नकली था।

    तीन दशक पुराना 

लगभग तीन दशक से पटना पुस्तक मेला आयोजित होता आ रहा है। इतिहास के पन्ने बताते हैं कि 1960 की दशक में पटना में एक भव्य पुस्तक मेला का आयोजन हुआ था। उसके बाद से यह सिलसिला चल पड़ा। किताबोंकी दुनिया के अलावे साहित्यिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमों को भी इससे जोड़ा गया लेकिन इस बार सीआरडी का पटना पुस्तक मेला जहां व्यवसायी पहलू हावी रहा, वहीं, कलाशिल्प-संस्कृति का दबदबा पुस्तकों पर भारी पड़ा।

आश्चर्य की बात यह है कि पुस्तक संस्कृति को लोगों से जोड़ने के मकसद से शुरू हुए इस पुस्तक मेले के व्यवसायीकरण पर कोई साहित्यकार, लेखक आवाज की गोलबंदी नहीं करता दिखा। हालांकि कुछ लेखक-पत्रकारों ने मेले के व्यवसायीकरण के खिलाफ जिला प्रशासन को पत्र लिखकर कुछ वर्ष पूर्व आगाह किया था लेकिन उनकी आवाज भी फाइलों में दब गयी।

किताबों की दुनिया सजाने के नाम पर व्यवसाय करने के आरोप के घेरे में आयोजक आ चुके हैं। इंतजार है पुस्तक संस्कृति के दोबारा लौटने की।

(लेखक इलैक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़ें  हैं)।

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