पत्रकार हत्या मामले में भाजपा की राजनीति उलटी पड़ती जा रही है. अब उसका रुख आक्रामक बयानबाजियों के बजाये रक्षात्मक होने लगा है.

पत्रकार के परिजनों से मिलते सुशील मोदी( फेसबुक से)
पत्रकार के परिजनों से मिलते सुशील मोदी( फेसबुक से)

इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम

सीएम नीतीश कुमार ने इस हत्या की जांच झटके में सीबीआई को सौंपने की घोषणा कर दी. अब इस जांच की जिम्मेदारी और हत्यारे की निशानदेही की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की उस एजेंसी के जिम्मे डाल दी गयी है जिसे कभी सुप्रीम कोर्ट ने सरकार का तोता तक कहा था.

अब सुशील मोदी और मंगल पांडेय की टीम इस मामले में नीतीश सरकार को कटघरे में खड़ा करने का हथियार खो चुकी है क्योंकि केंद्र सराकर के ‘मिट्ठू तोते’ के खिलाफ वह कभी नहीं बोलेंगे. दर असल सुशील मोदी और प्रदेश भाजपा को इस बात का इल्हाम था कि नीतीश सरकार पर चाहे वे जितना भी हल्ला बोलें, सरकार सीबीआई को जांच नहीं सौंपेगी. और इसी बदौलत वे राज्य सरकार पर हल्ला बोलते रहेंगे. पर राज्य सरकार ने सीबीआई को जांच सौंप कर अपने सर का बोझ हलका कर लिया है.

सही दिशा में थी बिहार पुलिस

तब सवाल है कि राज्य सरकार ने यह मामला सीबीआई को सौंपा ही क्यों. आम तौर पर राज्य सरकारें अपने राज्य में केंद्रीय एजेंसी की घुसपैठ को राज्य सरकार के प्रशासनिक अमले पर भरोसा न होने के रूप में देखती हैं. ऐसे में बिहार सरकार ने सीबीआई को जांच सौंपने का जोखिम यूं ही नहीं लिया है.

अब तक पुलिस ने जांच में जो थोड़ी प्रगति की है, उससे सरकार को अभास हो चुका है कि हत्या के पीछे जिन तर्कों को गढ़ने की कोशिश भाजपा ने की है वह ख्याली साबित हो सकते हैं. मामला टेढ़ा और पीचीदा है. लेकिन जिस तरह से जांच अब तक बिहार पुलिस कर रही थी उससे यह तो तय है कि उसकी दिशा सही जा रही थी. हत्यास्थल से सीसीटीवी कैमरे के फुटेज को जिन लोगों ने डिलिट किया था, उसका सुराग भी पुलिस को मिल चुका है. डीजीपी पीके ठाकुर बता चुके हैं कि फुटेज का 70 प्रतिशत हिस्सा रिवाइव हो चुका है.

जेल के अंदर नहीं, बाहर के षडयंत्र पर भी नजर

उधर भाजपा ने इस हत्या का तार जेल में बंद एक बाहुबली से जोड़ने की कोशिश की. जबकि जांच की दिशा जिस तरफ बढ़ रही है वह अनेक तरह के कंफ्युजन क्रियेट करने वाले हैं. सीवान की राजनीतिक सरगर्मी को करीब से जानने वाले बताते हैं कि जेल के बाहर जो आपराधिक साम्राज्य पिछले वर्षों में पनपा है, वह जेल में बंद बाहुबली के खिलाफ है. पत्रकार हत्या मामले में जेल के बाहर के साम्राज्य के बजाये, अगर जांच एजेंसी जेल के अंदर के साम्राज्य पर कंसनट्रेट करेगी तो वह उलझ सकती है और जांच लम्बा खीचेगी. संभव है कि ऐसी हालत में जांच की फाइलें दब के दम तोड़ देंगी. सूत्र यह भी बताते हैं कि भले ही जांच सीबीआई करे, लेकिन राज्य की पुलिस अपना काम भी करती रहेगी.

जब से राज्य में  भाजपा और जद यू अलग हुए हैं तबस से हत्या और अपराध पर राजनीति का सिलसिला तेज हुआ है. पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या पर भी सियासत ऐसे ही की गयी है. लेकिन जांच सीबीआई के हवाले होने के बाद इस मामले में भाजपा की सियासत की धार निश्चित रूप से कुंद होके रह जायेगी.

By Editor