भोजपुरी और हिंदी के यशमान साहित्यसेवी पाण्डेय कपिल के निधन से साहित्य-गगन ने अपना एक चमकदार सितारा खो दिया है. उन्होंने भोजपुरी की जिस निष्ठा से सेवा की, वैसी निष्ठा और प्रतिभा कम लोगों में दिखाई देती है. उनमें साहित्य का संस्कार जन्म-जात था. उनके पिता प्रातः स्मरणीय जगन्नाथ प्रसाद और पितामह दामदर सहाय ‘कवि किंकर’ भी अपने समय के सुप्रतिष्ठ साहित्यकारों में परिगणित होते थे. उन्होंने अपना सारा जीवन भोजपुरी के उन्नयन में लगा दिया. उनके निधन से साहित्य-निधि की बड़ी क्षति हुई है.

नौकरशाही डेस्‍क

यह बातें बिहार साहित्य सम्मेलन में आयोजित शोक-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डॉ अनिल सुलभ ने कही. डा सुलभ ने कहा कि पांडेय जी नवोदित साहित्यकारों के बीच एक उदार आचार्य के रूप में स्तुत्य थे. उन्होंने अपने जीवंत सान्निध्य में अनेक साहित्यानुरागियों का मार्ग-दर्शन किया और साहित्यकारों की नई पीढ़ी तैयार की. वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने उनके निधन को साहित्य के एक गौरव-स्तम्भ का ढह जाना बताया. वे अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के संस्थापकों में से एक थे.

सम्मेलन के साहित्यमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने अपना शोकोदगार व्यक्त करते हुए कहा कि पांडेय कपिल की कालजयी रचना ‘फूल-सूंघी’ एक ऐसा उपन्यास है, जो अकेले किसी भी कथाकार को अमर करने के लिए पर्याप्त है. उनका पूरा परिवार साहित्य और संस्कृति को समर्पित रहा है. भोजपुरी के लिए समर्पित उनके जैसा व्यक्ति विरले हीं दिखेगा. भोजपुरी अकादमी की स्थापना और उसके उन्नयन में भी उनकी बड़ी भूमिका रही.

सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त, डा शंकर प्रसाद, कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र, राज कुमार प्रेमी, ऋषिकेश पाठक, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, शालिनी पांडेय, आर प्रवेश, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्त, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’, मधुरेश नारायण, तुषार कांत उपाध्याय आदि ने भी अपने शोकोदगार व्यक्त किए.

 

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