आख़िर क्या मतलब है पुलिस वालों की लाल, पीली, हरी और नीली टोपियों का? क्यों पहनते हैं पुलिस वाले रंगबिरंगी टोपियां? भुवनेश्वर वात्स्यायन इन रंगों के अर्थ बता रहे हैं.

पुलिस वालों की टोपियों के रंग देखिए. आप पाएंगे कि इन दिनों लाल टोपी वाले सिपाही जी कम हो गए हैं और नीली टोपी वाले बढ़ गए हैं. कहीं-कहीं हरी टोपी वाले भी दिख जा रहे और कत्थई टोपी वाले भी नजर आ जा रहे हैं. खाकी टोपी भी दिखती है.

यूं ही नहीं है इन सिपाही जी की टोपियों के रंग. आप इन टोपियों के रंग समझें या न समझें, पुलिस के अफसर दूर से ही इन टोपियों के रंग से यह बता डालेंगे कि फलां रंग की टोपी वाला सिपाही किस तरह की औकात का है? चाहे सिपाही जवान हो या बूढ़ा, सबकुछ आसानी से बताया जा सकता है.

लाल टोपियां नए बहाल उन पुलिस के जवानों के लिए टोपी का कलर कोड है जिनकी ट्रेनिंग नहीं हुई होती है. इन्हें रायफल नहीं दी जाती.

इन्हें लाठी के साथ ही घूमना है. अगर आप उम्रदराज सिपाही को लाल टोपी लगाये देखते हैं तो यह समझिए कि उसे रायफल ड्यूटी से अनफिट होने की वजह से मुक्त कर दिया गया है.

नीली टोपी वाले जवान आजकल इसलिए अधिक दिख रहे क्योंकि नयी बहाली वाले जवानों की ट्रेनिंग की व्यवस्था बड़े-बड़े पुलिस लाइनों में कर दी गयी है. नियुक्ति के तुरंत बाद उन्हें प्रशिक्षण मिल जाता है इस कारण वे लाल टोपी नहीं पहन पाते हैं.

अगर आपका सामना किसी हरी टोपी वाले जवान से हो जाता है तो यहां भी बात रंग समझने की है. बीएमपी के जवानों की टोपी का कलर कोड हरा है. हरी टोपी कोई और नहीं पहन सकता.

इसी तरह कोई जवान खाकी रंग की टोपी पहने आपको मिलता है तो यह जानिए कि वह बीएमपी के गोरखा बटालियन का सिपाही है.

कत्थई टोपी वाले सिपाही भी बिहार में खूब मिलते हैं. यह कलर कोड जीआरपी यानी रेल थानों में तैनात पुलिस के जवानों का है.

भुवनेश्वर वात्स्यायन पटना में रहते हैं. वरिष्ठ पत्रकार हैं और दैनिक जागरण में काम करते हैं, उनकी स्टोरी हम थोड़ा एडिट करके जागरण से साभार छाप रहे हैं.

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