प्रथम चरण के चुनाव के बाद दोनों गठबंधन अपने-अपने दावे कर रहे हैं. इन दावों से अलग इस विश्लेषण में  हमारे सम्पादक इर्शादुल हक उन चार मुद्दों को उठा रहे हैं जो भाजपा के लिए परेशानी के कारण बने.

फोटो एनडीटीवी डॉट कॉम
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एक

पटना के एक होटल की लॉबी के सोफे पर भाजपा प्रवक्ता एमजे अकबर बैठे हैं. रात के करीब दस बजे हैं. इसी क्षण प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडे आते हैं और एमजे अकबर खड़े हो कर उनका अभिवादन करते हैं. कुछ पल ही बीते होंगे कि हाथ में फाइलों की गठरी लिये सुशील मोदी पहुंचते हैं. अकबर, मंगल पांडेय के बरअक्स मोदी से कुछ ज्यादा ही गर्मजोशी से हाथ मिलाने के बाद मोदी को गले से लगा लेते हैं. हालांकि मोदी के हावभाव से साफ जाहिर होता है कि वह गले मिलने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थे. तीनों नेता आपस में खड़े-खड़े बात करते हैं, चुनावी माहौल पर चर्चा शुरू होती है और बात मुस्लिम वोटरों पर आती है. मोदी इशारों में चिंता जताते हुए अकबर को कहते हैं कि मुस्लिम वोटरों को ठीक करने की कोशिश कीजिए. मोदी के चेहरे पर एक तनाव साफ झलकता है जबकि मंगल और अकबर अपेक्षाकृत शांत दिखते हैं. कुछ देर बात होती है और तीनों लिफ्ट की तरफ लपकते हैं, ऊपर की तीसरी मंजिल पर अमितशाह उनका इंतजार कर रहे होते हैं.

 

यह वाक्या प्रथम चरण के चुनाव से पहले का है. अब प्रथम चरण का चुनाव बीत चुका है. और भाजपा के टाप नेतृत्व मान चुका है कि मोदी ने अकबर को मुस्लिम वोटों के संदर्भ में जो बात की थी वह प्रथम चरण में दिख भी गया है.

दो-

बीफ विवाद और दादरी की घटना ने भाजपा को फायदा पहुंचाने के बजाये खतरनाक हद तक नुकसान पहुंचा चुका है. हिंदू वोटरों पर भाजपा के रैवे का इसका उलट असर पड़ा है. प्रतम चरण के मतदान के दौरान वोटरों ने इसे दिखा दिया. इसका क्युक इफेक्ट भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने महसूस भी किया. जिस दिन यानी 12 अक्टूबर की वोटिंग के दिन ही भाजपा के वरिष्ठ नेता और रक्षामंत्री परिकर ने बाजाब्ता बयान दिया कि दादरी की घटना से सरकार की छवि को नुकसान पहुंचा है. हालांकि चुनाव के कुछ दिन पहले जब नरेंद्र मोदी बिहार दौरे पर आये तो उन्होंने भी इस मुद्दे को सियासी फायदा लेने की कोशिश की थी. वह दादरी पर सीधा कुछ बोलने के बजाये राष्ट्रपति के बयान को हवाला देते रहे, न कि अपनी तरफ से कुछ कहा. मोदी ने शायद सोचा कि वह ऐसा करके हिंदू वोटों को पोलराइज कर लेंगे. लेकिन भाजपा नेतृत्व को मिले फीडबैक से भाजपा यह मान चुकी है कि दादरी और बीफ मामले ने उसे नुकसान पहुंचा दिया. इस बात की पुष्टि कल तब हो गयी जब  मोदी ने  पहली बार इस मुद्दे पर मुंह खोला. उन्होंने एक अखबार को दिये साक्षात्कार में दादरी की घटना को दुखद बताते हुए कहा कि भाजपा ऐसे मामले का समर्थन नहीं करती. ध्यान देने की बात है कि मोदी का यह बयान प्रथम चरण के चुनाव के दो दिन बाद और दूसरे चरण के चुनाव के दो दिन पहले आया है. इतना ही नहीं अब तो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मोदी की बात दुहराई दी है. पहले रक्षा मंत्री और अब प्रधानमंत्री के इस बयान को किसी भी हाल में हलके में नहीं लिया जा सकता. पार्टी के तीन सर्वाधिक स्थापित नेताओं ने बीफ पॉलिटिक्स की सीमाओं को समझा है, पर देर से.

तीन-

प्रथम चरण के चुनाव की बढ़ी वोटिंग प्रतिशत में भाजपा के लिए कई सबक हैं. सार्वजनिक तौर भाजपा के नेता इसे बदलाव की वोटिंग करार दे रहे हैं, पर इसका डीप अनालिसिस उनके सरदर्द को कम करने के बजाये बढ़ा ही रहा है. कुल सत्तावन प्रतिशत वोटिंग प्रथम चरण में हुई. इसमें महिलाओं की वोटिंग पुरुषों की तुलना में 6 प्रतिशत अधिक थी. 2010 के चुनाव में भी महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले अधिक वोट किये थे. भाजपा नेताओं को यह बखूबी पता है कि प्रथम कार्यकाल के बाद नीतीश सरकार ने स्थानीय निकाओं में महिलाओं को पचास प्रतिशत आरक्षण दिया था. इससे राजनीति में महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में एक मौन क्रांति सी आ गयी थी. 2010 चुनाव में महिलाओं के व्यापक समर्थन के कारण ही 2010 में नीतीश सत्ता में वापस आ सके थे. तो आखिर 2015 में महिला वोटिंग पैटर्न नीतीश के लिए क्या मायने रखता है?  इस तथ्य को समझने के लिए नीतीश के निश्चय पत्र पर ध्यान देने की जरूरत है. नीतीश ने ऐलान कर रखा है कि सरकार बनने पर वह नौकरियों में महिलाओं को 35 प्रतिशत का आरक्षण देंगे. महिला सशक्तिकरण की दिशा में नीतीश का यह फैसला कितना महत्वपूर्ण हो सकता है, इसका अंदाजा एक महिला से ज्यादा कौन लगा सकता है?

चार

इस बात से शायद ही किसी को इनकार हो कि बिहार विधानसभा का यह चुनाव मोटे तौर पर महागठबंधन और एनडीए के बीच हो रहा है. दोनों गठबंधनों की जीत-हार का असल दारोमदार उनके बेस वोटरों पर ही है. इस प्रकार भाजपा गठबंधन के पास 15 प्रतिशत अगड़ी जातियों का सुरक्षित भंडार है. बाकी वोट दोनों गठबंधनों में बंटा हुआ है. दूसरी तरफ महागठबंधन का बेस वोटर समूह मुसलमान, यादव और कुर्मी का है जो कुल मिला कर 34 प्रतिशत के करीब है. जबकि दलित, महादलित और अतिपिछड़ों के वोटों पर कोई भी गठबंधन पूरे यकीन से कोई दावेदारी नहीं कर सकता. और भाजपा गठबंधन के माथे पर चिंता की जो लकीर है वह स्वाभाविक है.

अगले चार दिनों के बाद दूसरे चरण का चुनाव होना है. जिन क्षेत्रों में इस चरण में चुनाव होना है वह पारम्परिक रूप से भाजपा का गढ़ माना जाता है. जहानाबाद से शाहाबाद तक यूपी के बार्डर से लगे इलाकों में भाजपा को अपनी श्कति न सिर्फ बचाये रखने, बल्कि वहां बढ़ाने की जरूरत है.

By Editor

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