केंद्र की नयी सरकार के कुछ कारनामों की फेहरिस्त लेकर हाजिर हैं फरह साकेब जो नौकरशाही से लेकर न्यायपालिका तक में मोदी सरकार के रवैये को समझने के लिए काफी है. पढ़िए- बातें हैं बातों का क्या !

नौकरशाहों के संग( फोटो साभार हिंदुस्तान टाइम्स)
नौकरशाहों के संग( फोटो साभार हिंदुस्तान टाइम्स)

प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रियों को यह फरमान जारी किया कि पूर्व सरकार में उच्च पदों पर बैठे नौकरशाहों को अपने साथ किसी पद पर न रखें.

इसके बरअक्स खुद मोदी सरकार ने अजीत सेठी को सचिव बना दिया. सेठी के बारे में सच्चाई यह है कि वह यूपीए सरकार में पहले ही दो बार कार्यकाल बढ़वाने का लाभ ले चुके हैं.

अब प्रश्न ये है की आखिर अजित सेठी जी पर ये मेहरबानी क्यों ? उससे भी दो क़दम आगे बढ़ कर नृपेन्द्र मिश्रा जी को अपना निजी सचिव बनाया गया. नृपेन्द्र मिश्रा जी ट्राई के चेयरमैन चुके हैं और कानून के अनुसार ट्राई के चेयरमैन पद से सेवानिवृत्त होने के बाद कोई अधिकारी किसी भी सरकारी पद पर पुनः आसीन नहीं हो सकता.

पते की बात यह है कि  ये कानून किसी और ने नहीं , खुद अटलबिहारी  वाजपेयी जी  के शासनकाल में ही बनाया गया था.लेकिन नृपेन्द्र मिश्रा को निजी सचिव के पद पर नियुक्त करने के लिए आखिर अपनी ही पार्टी की पूर्व सरकार द्वारा निर्मित कानून को घंटे भर में एक नोटिफिकेशन के द्वारा निरस्त करने की क्या आवश्यकता आ गयी थी?

क्या कोई और अधिकारी नहीं था ?

दर असल समझा जा रहा है कि नृपेन्द्र मिश्रा का जुड़ाव आरएसएस से काफी गहरा है. खबर है कि उनकी पैरवी नागपुर से की गयी थी. ऐसे में अगर नागपुर से कोई हुक्म आये तो उस हुक्म के सामने कोई कानून भला किस हैसियत का हो सकता है ?

कल्याण ने हटाया था नृपेंद्र को

वैसे आपको ये भी बता दूँ की भले ही सत्ता के सामने सर झुकाने का आदी बन चुके भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने नृपेन्द्र मिश्रा की तारीफ़ में ज़मीन आसमान एक कर रखा हो लेकिन उनका सेवाकाल बहुत ही विवादस्पद है और वो कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री होते हुए उनके निजी सचिव थे और तब उन पर सरकारी खर्चे पर एक सीआईए एजेंट अमेरिकी महिला को वाराणसी दर्शन करवाने ले जाने के आरोप ही नहीं लगे बल्कि ये मशहूर भी है और उसी के बाद कल्याण सिंह ने उन्हें पद से हटाया था।

 

अब 64 वर्ष पुराने योजना आयोग को भंग करने की तैयारी हो रही है और उसकी जगह रिफार्म ऐंड सोल्युशन कमीशन बनाने की तैयारी चल रही है. योजना आयोग नेहरू के दौर की संस्था है. इसे खत्म करके या यूं कहें कि नाम बदलने के पीछे की मंशा यही है कि मोदी सरकार यह जताने की कोशिश कर रही है कि उसके पास शासन की नयी दृष्टि है.

अब आइए एक नजर सुप्रीम कोर्ठ से जुड़े मामले पर डालते हैं. सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति में भी सरकार ने अपनी मंशा स्पष्ट तो कर दी लेकिन उसे मुख्य न्यायाधीश की तल्ख टिप्पणी से शर्मशार होना पड़ा. गोपाल सुब्रमण्यम  को बतौर जज की नियुक्ति को केवल अपने पूर्व निजी द्वेष और आगे के संभावित खतरों से बचने के लिए रोकने का प्रयास किया गया और केवल इतना ही नहीं बाकी काम सरकार परस्त इलक्ट्रानिक मीडिया ने उलटे गोपाल सुब्रमण्यम के ही चरित्र हनन की कोशिश में जुट गये.

By Editor

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