यूपी के महासंग्राम में  अब चुनावी तस्वीर धीरे -धीरे साफ होते जा रही है। कुछ जगह वोटर मुखर तो हैं लेकिन कई जगह उनकी अब भी चुप्पी बरकरार है। पहले चरण में 11 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव में लड़ाई आमने – सामने वाली ही है, लेकिन कुछ जगह इसे त्रिकोणीय बनाने के लिए प्रत्याशी एड़ी चोटी एक किए हुए हैं। लेकिन मतदाताओं की गोलबंदी कई प्रमु्ख नेताओं की चुनावी नैया को मंझधार में फंसा सकती है।vtiiii

 

मेरठ से शिवानंद गिरि की रिपोर्ट

 

 

यदि एक नजर पिछले विधानसभा चुनाव के परिणाम पर दौड़ाया जाये तो पश्चिमी यूपी के इन सीटें में बीएसपी 17, सपा -10, बीजेपी – 9 तथा कांग्रेस – रालोद गठबंधन ने 8 सीटें जींती थी। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 44 में से 42 विधानसभा क्षेत्रों पर बढ़त हासिल करते हुए लोकसभा की सभी सीटें पर अपना परचम लगाने में कामयाब हुई थी। 2014 के बीजेपी पक्ष में आए अप्रत्याशित परिणाम की मुख्य वजह 2013 के मुजफ्फरनगर में हुए दरों का असर साफ दिखा। इस चुनाव में विभिन्न दलों के परंपरागत वोट भी बीजेपी को मिली, जिसका उसको उम्मीद तक नहीं थी। परंतु ऐसा नहीं है कि इस बार भी वही समीकर दुहराया जा रहा है।

 

 

सभी प्रमुख पार्टियां बागियों से परेशान हैं। चुनाव के लिए आवश्यक तीन ‘सी ‘कास्ट, क्राईम व कैश का असर यहां के चुनाव में साफ दिखाई रहा है। सभी दलों ने जातीय समीकरणों के आघार पर अपने – अपने उम्मीदवार उतारे हैं। सपा से मुख्तार अंसारी व अतीक अहमद का निकाला जाना जबकि राजा भैया, गुड्डू पंडित, अभय सिंह जैसे दबंगों को सपा के टिकट पर चुनाव लड़ाना अखिलेश के लिए थोड़ी परेशानी तो जरूर पैदा कर दी है। बसपा ने  अतीक व अंसारी को पार्टी में  शामिल कर सौ मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दें मुस्लिम वोटबैंक पर अपना कब्जा करने की भरपूर कोशिश की है जिसका फायदा भी कई जगह मिलता दिखाई  दे रहा है। बसपा नेता नसीम सिद्धिकी की मानें तो दलित, जाधव सहित अन्य जातियों का वोट तो मिल ही रहा है, मुस्लिम मतों की गोलबंदी से हमारी राह आसान हो गई है।

 

 

इसी तरह सपा के अपने परंपरागत वोट के साथ साथ सरकार के विकास व अखिलेश की स्वच्छ छवि पर भरोसा है। वे मानते हैं कि मुस्लिम वोटों का बिखराव नहीं हो रहा है, जिससे हमारी झोली में अधिकांश सीटें मिल रही है। दूसरी ओर बीजेपी के  अध्यक्ष केशव को सवर्ण, ओबीसी , दलित एवं जाट वोटों पर तो भरोसा है ही, मुस्लिम वोटों के बिखराव की भी उम्मीद है।

 

बहरहाल, राजनीतिक दलों के नेता  अपनी – अपनी जीत के लाख दावे करें लेकिन इस चुनाव की ‘चाभी’ मुस्लिम वोटरों के पास है, जिनका बीएसपी  या सपा में किसी एक के पक्ष में गोलबंदी हुई  तो बीजेपी के कई  ‘शूरमाओं’को  विधानसभा का चौखट लांघना किसी सपने से कम नहीं होगा। बीजेपी के पास से इसबार जाट व दलित वोट जो पिछली बार मिली थी इस बार किसी अन्य दल को जा रही है।

 

By Editor