आईपीएस एनसी अस्थाना की एक टिप्पणी ने यह बहस फिर से सामने ला दी है कि लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी, सरकार के अधिकारियों को वहीं तक है जिससे खुद सरकार की किरकिरी न हो. चाहे यह बात सच ही क्यों न हो. क्या एक नौकरशाही निजी राय रखने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है.

1986 बैच के आईपीएस अधिकारी एनसी अस्थाना ने आखिर क्या कर डाला की कश्मीर से लेकर दिल्ली तक की सरकारों में हड़क्मप है. सीआरपीएफ के महानिरीक्षक (आइजी) एनसी अस्थाना ने अपी किताब ‘इंडियाज इंटरनल सिक्यूरिटी :द एक्चुअल कंसर्न’ में लिखा है कि कश्मीर में भारत विरोधी जबरदस्त लहर है.

52 वर्षीय अस्थाना की यह टिप्पणी हुर्रियत के कट्टरपंथी धड़े के मुखिया सैयद अली शाह गिलानी और राज्य के मुख्य विपक्षी दल पीडीपी की बात को पुष्टि करती है.

किताब में कश्मीर समेत आंतरिक सुरक्षा से जुड़े तमाम मुद्दों पर सरकारी नीतियों की जमकर आलोचना की गई है.

अस्थाना ने जम्मू-कश्मीर से लेकर नक्सलियों और पूर्वोत्तर के अलगाववादियों से निपटने की भारत सरकार की नीतियों को पूरी तरह विफल बताया है. गृह मंत्रालय भले ही दिल्ली के बटला हाउस एनकाउंटर को सही करार देता रहा हो, लेकिन उसी के मातहत काम करने वाले अस्थाना ने इसकी वैधता पर भी गहरा संदेह जताया है.

इस बीच खबर है कि गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि अस्थाना की किताब में लिखी गई बातों की जांच की जा रही है और जरूरत पड़ने पर अस्थाना के खिलाफ सेवा नियमावली के उल्लंघन के आरोप में कार्रवाई हो सकती है.अस्थाना नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए बने विशेष दल कोबरा के प्रमुख हैं.

अस्थाना ने अपनी पत्नी अंजली निर्मल के साथ मिलकर लिखी किताब इंडियाज इंटरनल सिक्यूरिटी :द एक्चुअल कंसर्न लिखी है.

अस्थाना ने अपनी इन्हीं बातों को एक पत्रिका को दिए साक्षात्कार में भी दोहराया है. उनके इस साक्षात्कार से स्थिति और विस्फोटक हो गई है.
उन्होंने यहां तक कहा, जम्मू कश्मीर में चुनाव में लोगों की हिस्सेदारी और घाटी में पर्यटकों की आमद को राज्य में स्थितियां सामान्य होने के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.

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