महाकवि तुलसी दास हिंदी के अद्वितीय कवि होने के साथ संस्कृत के उत्कृष्ट मनीषी थे। उनके सुप्रसिद्ध महाकाव्य रामचरित मानस‘ में वर्णित सात खंडों के आरंभ में उनके द्वारा संस्कृत में की गई वंदनाएँउनकी विद्वता और व्यापकदृष्टि को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है। उन्होंने न केवल संस्कृत व्याकरण में पांडित्य प्राप्त किया था बल्कि संस्कृतकाव्य का भी संधान किया था। वे साहित्यसंसार के अनमोल धरोहर हैं।

यह विचार आज यहाँ साहित्य सम्मेलन में संत कवि की जयंती पर आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोलताए हुएडा राम विलास चौधरी ने व्यक्त किए। डा चौधरी ने कहा कि,

आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुएसम्मेलन के प्रधान मंत्री आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव ने कहा किभारत के संत कवियों में महाकवि तुलसी दास का स्थान अन्यतम है। उसी प्रकार उनकी अमरकृतिरामचरित मानस‘ भी साहित्यसंसार में श्रेष्ठ स्थान रखती है। वस्तुतः मानस‘ भारत की संस्कृति का आदर्श है और इसलिए इसे राष्ट्रीयग्रंथ के रूप में स्वीकृति मिलनी चाहिए।

सभा की अध्यक्षता करते हुएसम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने महाकवि को भारतीयसंस्कृति का उन्नायक और लोकनायक बताया। उन्होंने कहा कियह तुलसी हीं हैं जिन्होंने मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम को भगवान‘ बना दिया। तुलसी के पूर्व भारतीय समाज में राम की प्रतिष्ठा नरश्रेष्ट‘ के रूप में अवश्य थीकिंतु ईश्वर‘ के रूप में नहीं।

विद्वान प्राध्यापक डा रमेश पाठकसम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्तपं शिवदत्त मिश्रडा शंकर प्रसादबकभद्र कल्याणडा वासकीनाथ झाडा रमेशचन्द्र पाण्डेय ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

इस अवसर पर आयोजित कविगोष्ठी का आरंभ कवि राज कुमार प्रेमी ने तुलसी की चौपाई से की। वरिष्ठ कवि देवेंद्र देव ने लोकजीवन को कवि तुलसी की दृष्टि इस तरह देखा– ” मिलती है धरोहर इस जाग कोवह रामायण हो या गीतापर किसे पता है तुलसी का अपना जीवन कैसे बीता?” । कवि ओम् प्रकाश पांडेय प्रकाश‘ ने रामकथा के पात्रों के हवाले से आज के दौर को कुछ इस प्रकार से चित्रित किया कि, “रह गया मदारी डमरू बजाताबंदरभालू भाग गए। कुम्भ करण – कुम्भ करण रह गए सोएसोएविभीषणविभीषण जाग गए” कवयित्री आराधना प्रसाद ने अपने इस शेर से श्रोताओं का हृदय निचोड़ लिया कि, “ रहे ताउम्र हम प्यासे वो एक मोती की हसरत मेंकहीं बूँदों की खाहिश है कहीं बरसात का मौसम

मगही अकादमी के निदेशक उदय शंकर शर्मा कवि जी‘, डा मेहता नगेंद्र सिंहनारायण सिंह नमन‘, डा योगेन्द्र प्रसाद योगी‘, सच्चिदानंद सिन्हाजगदीश प्रसाद राय फ़िराक़‘, अनिल कुमार सिन्हासरोज तिवारीशालिनी पाण्डेयआर प्रवेशनेहाल सिंह निर्मल‘, कुमारी मेनकामनोज गोवर्द्धनपूरीदिनेश्वर लाल दिव्यांशु‘, अश्वनी कुमार तथा बाँके बिहारी साव ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया।

इस अवसर परश्रीकांत सत्यदर्शीडा मधु वर्माचंद्रदीप प्रसादशंकर शरण मधुकर‘, विपिन बिहारी सिन्हाहरिसहचंद्र प्रसाद सौम्यविश्वमोहन चौधरी संतमुकेश कुमार ओझानीरव समदर्शी समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।

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