जर्मनी ने पिछले दिनों भारत सरकार को एक हजार ऐसे खातेदारों के नाम की सूची सौंपी थी, जिन्होंने विदेशी बैंकों में अपने खाते खोल रखे हैं.black-money

शकील अख्तर, नई दिल्ली

उस समय मनमोहन सिंह की सरकार थी और उसने इन नामों को सार्वजनिक करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि अनेक देशों से डबल टैक्सेशन समझौते के तहत वह इन नामों को सार्वजनिक नहीं कर सकती. उस समय विपक्षी भारतीय जनता पार्टी ने यह आरोप लगाया था कि मनमोहन सरकार काला धन जमा करने वालों को बचा रही है. तब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को यह आदेश दिया कि वह इन तमाम खातों की तफ्तीश करे, जिन्होंने बेईमानी की दौलत विदेशों में जमा कर रखी है और वह उन नामों की घोषणा करे.

 

बीजेपी ने तब मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ काली कमाई वापस लाने के लिए जबर्दस्त आंदोलन चलाया था और वादा किया था कि सत्ता में आते ही वह इन नामों की घोषणा कर देगी. लेकिन आश्चर्यजनक रूप से मोदी सरकार ने शुक्रवार को एक दरख्वास्त में यह बात दोहरायी, जो पहले कांग्रेस कह चुकी है यानी वह कुछ देशों के संग समझौते के चलते सरकार इन नामों की घोषणा नहीं कर सकती है. मालूम हो कि इस सूची में कई बड़े उद्योगपतियों के नाम शामिल हैं. भारत के कानून के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति विदेशों में अपना बैंक अकाउंट खोलता है तो उसे आरबीआई को इसकी सूचना देनी होगी. ऐसा न करने पर उस अकाउंट का पैसा काला दन माना जायेगा. जर्मनी ने जो सूची सौंपी है, उसमें न सिर्फ खातादारों के नाम बल्कि उनके अकाउंट में जमा रकम का पूरा विवरण दर्ज है.

 

जिन लोगों के नाम विदेशी खाते हैं, उन्हें आरबीआई से चेक किये जा सकते हैं. अगर उन खातेदारों ने भारतीय रिजर्व बैंक को सूचित नहीं किया है तो निश्चित तौर पर उनके खाते की रकम काला धन की श्रेणी में माना जायेगा. ऐसी हालत में न सिर्फ इन टैक्स चोरों के नाम की घोषणा करनी चाहिए, बल्कि इनके खिलाफ फौरी तौर पर कानूनी कार्रवाई भी की जानी चाहिए. मोदी सरकार ने जिस तरह से अपने कदम पीछे हटाये हैं, उससे साफ जाहिर होता है कि इसमें देश के प्रभावशाली लोग शामलि हैं और उनके खिलाफ कार्रवाई करना इतना आसान नहीं है. अन्ना हजारे के आंदोलन के समय यह अनुमान लगाया गया कि विदोशो में 500 अरब से 1400 अरब डालर तक काला धन जमा हैं.

बीबीसी उर्दू से साभार

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