त्रिपुरा के सीएम मानिक सरकार दो दशक से भी ज्यादा तक पद पर रहने के बाद भाजपा के हाथों हार गये. लेकिन जब मानिक की सादगी के इतिहास को आने वाली पीढ़ियां जानेंगी तो उन्हें यकीन नहीं होगा कि ऐसा व्यक्तित्व भी इस तरह रहता था.

गोपाल राठी

देश का सबसे गरीब मुख्यमंत्री आज हार गया। माणिक सरकार जैसे लोग भी मुख्यमंत्री बन सकते हैं! इस अबूझ से सत्य को चमत्कार मानकर यकीन कर लिया। मगर देश को कभी दूसरा माणिक सरकार मिलेगा क्या? ये यकीन से भी परे है। अपना घर नही। कोई कार नही। एक भी अचल संपत्ति नही। पांचाली भट्टाचार्या को साइकिल रिक्शा पर बैठकर बाजार जाते हुए देखना, त्रिपुरा के लोगों के लिए हमेशा एक आम सी बात रही।

 

माणिक सरकार की पत्री हैं पांचाली भट्टाचार्य। ये उस दौर का सच है जहां एक अदने से अधिकारी की बीबी भी ब्यूटी पार्लर पहुंचकर सरकारी कार से तब उतरती है, जब अर्दली आगे बढ़कर गेट खोलता है। बड़े नेताओं और सरकारी एंबैसडर वाले अधिकारियों की बात ही क्या। पांचाली भट्टाचार्य रिटायरमेंट तक सेंट्रल सोशल वेलफेयर बोर्ड में काम करती रहीं। जीवन में कभी भी किसी काम के लिए सरकारी गाड़ी का उपयोग नही किया। माणिक सरकार अपनी पूरी तनख्वाह पार्टी फंड में डोनेट करते आए। बदले में 9700 रुपए प्रति माह का स्टाइपेंड और पत्री की तनख्वाह से जीवन चलता रहा।

 

20 साल लगातार मुख्यमंत्री रहे इस शख्स ने कभी भी इंकम टैक्स रिटर्न फाइल नही किया। कभी इतनी आय ही नही हुई कि रिटर्न फाइल करने की नौबत आए। संपत्ति के उत्तराधिकार के तौर पर सिर्फ एक 432 स्क्वायर फीट का टिन शेड मिला, वो भी मां की ओर से। पिता अमूल्य सरकार पेशे से दर्जी थे। मां अंजली सरकार सरकारी कर्मचारी थीं। ये 432 स्क्वायर फीट का टीन शेड उसी मां की कमाई का उपहार रहा अपने कामरेड बेटे की खातिर।

 

माणिक सरकार ने त्रिपुरा के धानपुर से चुनाव लड़ते हुए इस बार जो एफिडेविट फाइल किया, उसे पढ़ते हुए राजनीति के अक्षर लड़खड़ाने लगते हैं। हाथों में नकदी सिर्फ 1520 रुपए। बैंक के खाते में केवल 2410 रुपए। कोई इंवेस्टमेंट नही। मोबाइल फोन तक नही। न कोई ई-मेल एकाउंट न ही कोई सोशल मीडिया एकाउंट।
चुनाव में हार जीत लगी रहती है।

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