गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी का हाथ होने का दावा करने वाले आईपीएस अफसर को नौकरी से हटाने के बाद  उन्होंने साक्षात्कार में  क्या कहा. पढिये. 

फोटो साभार- द हिंदू
फोटो साभार- द हिंदू

आईपीएस संजीव भट्ट का कहना है कि उन्हें कि आरोप में हटाया गया उन्हें कभी बताया ही नहीं गया. उनका कहना है कि अदालत में अगर चैलेंज करूं तो मेरा पक्षा काफी मजबूत होगा.

महेश लांगा ने संजीव भट्ट से बात की

क्या आपको पहले से अंदाजा था कि आपको नौकरी से निकाला जा सकता है  ?

अगस्त 1988 से सर्विस ज्वायन करने से ले कर अब निकाले जाने तक एक दायरा मुकम्मल हो चुका है. जिस महीने में सर्विस ज्वायन किया था उसी महीने में निकाल दिया गया. ऐसा नहीं है कि मुझे इसका अंदाजा नहीं था लेकिन इतना जरूर है कि जिस तरहसे ये बखेड़ा किया गया यह घृणित है. पहली बात तो यह कि मुझे जिस इन्क्वायरी की बुनियाद पर निकाला  गया उसकी बुनियाद ही एक पक्षीय है. इस जांच में मुझे अपना पक्ष तक नहीं रखने दिया गया. इस तरह भारत में मैं पहला आईपीएस अफसर हूं शायद जिसे जांच कमीशन ने एक तरफा फैसला दे कर हटा दिया.

लेकिन आपने जांच में भाग क्यों नहीं लिया?

मैं जांच में शामिल होना चाहता था लेकिन मेरे ऊपर जो आरोप थे वे बिल्कुल सतही थे. मैं ऐसी जांच का सामना करना चाहता था जिसका ईमानदारी से कोई वास्ता हो. गुजरात सरकार ने मुझ पर जो आरोप लगाये थे उस से संबंधित कोई कागजात उसने मुझे दिये ही नहीं. इतना ही नहीं जब मैंने वे आरोप पत्र मांगे तो पहले उन्होंने कोई जवाब ही नहीं दिया और बाद में कागजात देने से ही इनकार कर दिया.

आपके खिलाफ आरोप क्या थे?

मुझे खुद भी मालूम नहीं कि गुजरात सरकार ने मुझ पर क्या आरोप लगाये थे. जहां तक मुझे अनुमान है ये आरोप एक दम मामूली थे. जैसे ड्युटी से गैर हाजिर रहना, सरकारी गाड़ी और दूसरी सुविधाओं का गैर जरूरी इस्तेमाल आदि. ये आरोप तब लगाये गये थे जब मैं गुजरात दंगों की जांच करने वाले एसआईटी के सामने नरेंद्र मोदी के खिलाफ पेश हुआ. मैंने गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी के खिलाफ आवाज उठाई तो मेरी छवि खराब करने, मेरा सरकारी रिकार्ड खराब करने का सिलसिला शुरू कर दिया.

गृह मंत्रालय ने जिस पत्र में आपको बर्खास्त करने का उल्लेख किया है उसमें लिखा है कि आप बागी हो गये थे और सर्विस के कई नियमों का उल्लंघन किया था?

तो गृह मंत्रालय मुझसे चाहती क्या है. क्या मैं उनक सामने गिड़गिड़ाऊं. दोनों हाथ जोड़ कर उन से भीख मांगूं. एक ईमानदार अफसर को थोड़ा बागी तबियत का होना चाहिए ताकि वह झूठ की ताकत से लड़ सके. एक आईपीएस अफसर से यह उम्मीद नहीं की जाती की वह सत्ताधारी पार्टी के तलवे चाटे और उनके हर गलत फैसले को सही ठहराये. केंद्र में मोदी की सरकार आते ही मुझे नौकरी से हटाने की कार्रवाई शुरू हो गयी थी.

क्या आपको यह लड़ाई हार जाने का मलाल है?

बिल्कुल भी नहीं. मैंने अपने अंतरात्मा की आवाज पर जो कुछ भी किया उसका मुझे कोई मलाल नहीं. मुझे गर्व है कि मैं उनके दबाव के आगे नहीं झुका. मुझे पता था कि मैं किससे टकरा रहा हूं और मेरी हार सुनिश्चित थी. इसके बावजूद मैंने अपने जमीर की आवाज सुनी और उनसे लड़ गया.

क्या आप अपनी बर्खास्तगी को कोर्ट में चैलेंज करेंगे?

अगर मैं कोर्ट गया तो मेरे पास मजबूत प्रमाण है. केंद्र ने मुझे जिस रोज बर्खास्त किया उसके एक रोज बाद ही पोर्न सीडी का नोटिस मुझे दिया गया. वह मुझे बर्खास्त कर चुके थे तो मुझे नोटिस क्यों दिया गया. मुझे क्या करना है मैं अभी तय करूंगा.

इनकलाब, मुम्बई से अनुवाद

By Editor

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