भारत कृषि प्रधान देश है. हमलोगों ने बचपन से अब तक पढ़ा और सुना है, जो हक़ीक़त भी है. कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार रहा है और अब भी है. जिस देश में 57%आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर हो, उस देश में किसानों का क्‍या हाल है ? यह एक गंभीर सवाल बनकर आज हमारे समाने है.

जिशान नायर

किसानों के हालत देश में कैसे हैं, ये जग ज़ाहिर है, क्योंकि उनके साथ ना मीडिया है ना सरकार और ना ही सरकारी बाबू. तो सवाल है ऐसे में वो जाये तो जाये कहाँ? डॉक्‍टर का बेटा डॉक्‍टर बनना चाहता है. इंजीनियर का बेटा इंजीनियर बनना चाहता है. लेकिन किसान का बेटा किसान, नहीं बनना चाहता है. सरकार कहती है 2022 तक वो किसानों की आमदनी दोगुना करेगी, लेकिन साढ़े 4साल में ऐसा कुछ होता दिख नहीं रहा है. पिछले दिनों उत्तराखंड से किसान क्रांति पद यात्रा निकली और सैंकड़ों किलोमीटर का का फासला तय करके दिल्ली तक उनको जाना था. उससे पहले ही उनको पुलिस और सेना के द्वारा रोका गया.

इस दौरान झड़पें भी हुई और कई किसान घायल भी हुए. वो भी ऐसे दिन जिस दिन अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस पर हिंसा की तस्वीर अपने आप में किसानों दुर्दशा बयां करती है. इत्तेफ़ाक़ से 2अक्टूबर पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का भी जन्मदिवस होता है.उन्होंने सितम्बर 1965 को पाकिस्तान से युद्ध में मिली विजय के बाद दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में राष्ट्र को संबोधित करते हुए रेडियो पर ये नारा दिया था कि “जय जवान जय किसान”.  लेकिन मौजूदा सरकार ने किसान के सामने ही सेना के जवान को ला खड़ा कर दिया.

इससे साफ लगने लगा है कि मोदी राज़ में ना जय जवान रहें और ना जय किसान. हाँ, जय अंबानी – जय अडानी – जय मालिया जरूर रहें हैं, क्योंकि मौजूदा दौर में सरकार ने बोलने की आज़ादी छीन ली है.  याद होगा खाने की शिक़ायत को लेकर सेना में तेज बहादुर सिंह को निकाल दिया गया.  ग़रीब मजदूर किसान अगर बैंक से लोन ले और उसको वापस ना करे तो दुनिया छोड़ देतें. बड़े लोग देश छोड़ देते हैं, जिसके उदाहरण मालिया नीरव मेहुल चौकसी आदि हैं. ये समझने वाली बात है कि ऐसे लोगों का सरकार के बिना मिली भगत के देश छोड़ना संभव है?

निगम का तीन लाख करोड़ कर्जा माफ किया गया है. किसानों का 10 पैसा इसी को ‘सबका साथ, सबका विकास’ कहा जाता है. प्रधानमंत्री मोदी की बातों के अनुसार, 2014 के चुनाव में किसानों के लिए बीजेपी का एक नारा था ‘बहुत हुआ किसानों पर, अत्याचार अब की बार मोदी सरकार’, जो 2018 आते आते बदल सा गया। अब यह हो गया ‘बहुत हुआ किसानों पर अत्याचार, गोली मारेंगे अबकी बार’. भारत की पहचान अंबानी अडानी से नहीं, बल्कि यहां के अन्नदाता किसान से है.  अब सवाल ये भी उठता है कि मोदी सरकार ने किसानों से किया वादा निभाया?

कृषि राज्य मंत्री राफेल के मुद्दे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कह रहें हैं, उस दिन पता चला कृषि राज्य मंत्री का नाम ये हैं. तकरीबन डेढ़ साल पहले तमिलनाडु के किसान दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन के लिए जुटे थे. नरमुंड के साथ चूहे खाने और पेशाब पीने पे मजबूर थे. वो तस्वीरें आज भी विचलित करती है. इसके बाद मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में हुई पुलिस फायरिंग के दौरान पांच किसानों की मौत हो गई थी. मार्च 2018 में करीब सात राज्यों के 35 हजार किसान 180 किमी की लंबी पदयात्रा के बाद अपनी मांगों के साथ मुंबई पहुंचे थे. क्योंकि भारत गांवों में बसता है और बीजेपी को शहरी लोगों की पार्टी मानी जाती है. किसान गाँवों बसते हैं. किसान बीजेपी से नाराज़ है. इस लिहाज़ से 2019 चुनावी साल काफ़ी दिलचस्प हो जाता है.

किसान के नाम पर सरकारें बनती है. सब्सिडी के नाम पर कम्पनी मुनाफ़ा कमाती है और किसान हर दिन ग़रीब होता चला जा रहा है. शायद आज सरकार को अंबानी के लिए नहीं, किसानों के बारे में सोचने की जरूरत है.

नोट : नौकरशाही डॉट कॉम के लिए यह आलेख मौलाना अजाद नेशनल उर्दू विश्‍वविद्यालय, हैदराबाद के मास कम्‍युनिकेशन एंड जर्नलिज्‍म के छात्र जिशान नायर ने लिखी है. इस आलेख के सारे तथ्‍य लेखक के हैं.

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