सानिया मिर्जा को तेलंगाना का ब्रांड अम्बेस्डर बनाये जाने का विरोध दर असल मुस्लिम विरोध नहीं, बल्कि यह भाजपा द्वारा महिला और लैंगिक विरोध और घृणा की राजनीति है.sania-mirza-vivaaddd

इर्शादुल हक, सम्पादक नौकरशाही डॉट इन

ये लोग नारियों को आपमानित करने वाली मानसिकता से ग्रसित हैं.

यह कट्टर मानसिकता पुत्रों को तो सम्पत्ति और विरासत का अधिकारी समझता है पर पुत्रियों से नफरत करता है.

भाजपा नेता के लक्षमण का कुतर्क है कि सानिया ने पाकिस्तान के शुऐब मलिक से शादी की है इसलिए उन्हें तेलंगाना का ब्रांड अम्बेसडर नहीं बनाया जा सकता.

जरूरी है कुतर्क का जवाब

इस कुतर्क का जवाब देना जरूरी है क्योंकि ऐसे लोग देश को गुमराह करते हैं और घृणित मानसिकता को बढ़ावा देते हैं. इन दक्षिणपंथी सांसदों को पूछिए कि देवयानी खोब्रगड़े के बारे में उन्हें क्या पता है? अगर पता है तो जब अमेरिका ने उन्हें हिरासत में डाला तो वह क्या कर रहे थे? अमेरिका के भातीय दूतावास में विदेश सेवा की अधकारी के बतौर उन पर अमेरिका ने बीजा धोखाधड़ी का आरोप लगाया. लेकिन इस मानसिकता के लोग उस दिन भी चुप थे. क्यंकि देवयानी एक महिला थीं, दलित थीं. लेकिन थी तो भारत की ही बेटी. लेकिन उन्होंने अमेरिकी से शादी की है. खोब्रगड़े और सानिया दोनों महिला हैं. भारत की बेटी हैं. और दोनों के पति विदेशी नागरिक हैं.

कुछ महीने पहले अमेरिकी सरकार ने बीजा धोखाधड़ी मामले में देवयानी जैसे उच्च पद पर बैठी अधिकारी को हिरासत में ले लिया था. उसके बाद सारा देश देवयानी के समर्थन में आ गया था, क्योंकि वह भारत की बेटी हैं. लेकिन उनके पति अमेरिकी नागरिक हैं. ठीक वैसे ही जैसे सानिया मिर्जा ने पाकिस्तानी शुऐब मलिक से शादी की है लेकिन वह भारतीय हैं.

उनका पास्पोर्ट भारतीय हैं. वह भारतीय नागरिक हैं. भारत की बेटी है.

लेकिन के लक्षमण की मानसिकता वाले लोग उस वक्त भी खामोश थे जब देवयानी को हिरासत में लिया गया था. क्योंकि वह महिला विरोधी और लिंगभेद का पोषक पार्टी है. भाजपा-शिवसेना का यह विरोध दर असल बेटी विरोधी मानसिकता है. यह वही मानसिकता है जो अपने पुत्रों को तो पैतृक जायदाद और विरासत का हकदार तो मानती है पर पुत्रियों के अपनी जायदाद से वंचित रखना चाहती है.

लेकिन इस मामले में शर्मनाक बात यह है कि ‘एक भारत और श्रेष्ठ भारत’ का नारा देने वाली पार्टी और उसी के नेता शामलि हैं.यहां ध्यान रखने की बात है कि भाजपा नेताओं का यह विरोध दर असल विरोध नहीं,उनकी दलित, हाशिये के लोग, महिलाओं और बेटियों के साथ भेदभाव के साथ साथ खुद नरेंद्र मोदी के सेक्यलरिज्म के फलसफे का विरोध है.

आपको याद होगा लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी ने एक प्रश्न के जवाब में कहा था कि सेक्युलरिज्म की उनकी परिभाषा ‘इंडिया फर्स्ट’ है. मोदी ने कहा था कि आप कहीं भी रहें और कुछ करें- इंडिया फर्स्ट होना चाहिए.

सानिया भारत में रहे या पाकिस्तान में उनके लिए इंडिया फर्स्ट है.कम से कम दक्षिणपंथी विचारों वाले उन नेताओं से उन्होंने हजार गुणा ज्याद योगदान महिला सश्क्तिकरण की दिशा में दिया है. आज देश की लाखों करोड़ों लड़कियां सानिया से प्रेरणा ग्रहण करती हैं लेकिन के लक्षमण की इस तुच्छ मानसिकता से देश में घृणा और विभाजन को ही बढ़ावा मिलेगा.

By Editor

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