सामाजिक कार्यकर्ता मो काशिफ युनूस ने तीन सदस्‍यीय प्रतिनिधिमंडल के साथ उत्‍त्‍र प्रदेश के विभिन्‍न आयोगों के कार्यकलापों को अध्‍ययन किया। उनके साथ लखनऊ के तारिक दुरानी और बांदा के जैद अहमद फारुकी भी थे। इन लोगों ने अपने अध्‍ययन में पाया कि उत्‍त्‍र प्रदेश के मानवाधिकार आयोग, महिला अधिकार आयोग के लिए अलग  से बिल्डिंग, पर्याप्‍त संख्‍या कर्मचारी व अन्‍य सुविधाएं मौजूद हैं। लेकिन अल्‍पसंख्‍यक आयोग व सूचना आयोग की स्थिति चिंताजनक है।unnamed (1)

 

इन आयोगों के अध्‍ययन कर लौटे कशिफ युनूस ने बताया कि राज्‍य मानवाधिकार के प्रावधानों का पालन करने में सरकार विफल साबित हो रही है। राज्‍य अल्‍पसंयख्‍यक आयोग देश की सबसे बड़ी अल्‍पसंख्‍यक आबादी के हित रक्षक होने का दावा करता है। इसके कई सदस्‍य हैं, जो सरकारी सुविधाओं को उपयोग कर रहे है, उनका आनंद ले रहे हैं। लेकिन कार्य निष्‍पादन में उनकी भूमिका नगण्‍य है। एक सचिव आयोग के सभी छोटे-बड़े कामों को निबटारा करता है। कर्मचारियों की काफी कमी है। इसके कार्यों में तेजी लाने के लिए पर्याप्‍त संख्‍या स्‍टाफ और संयुक्‍त सचिव व सहायक सचिव जैसे पदाधिकारियों की जरूरत है।

 

इतना ही नहीं, अल्‍पसंख्‍यक आयोग को लेकर लोगों में जागरूकता भी नहीं है। ग्रामीण इलाकों को छोड़ दें तो भी सघन आबादी के बीच रहने वाले लखनऊ के अल्‍पसंख्‍यकों को भी आयोग की कार्यप्रणाली और उपयोगिता को लेकर कोई जानकारी नहीं है। आयोग के लोकेशन, आवेदन की प्रक्रिया, अध्‍यक्ष या सदस्‍य का नाम तक लोग नहीं जानते हैं। वैसे में आयोग के औचित्‍य ही सवाल खड़े हो सकते हैं। श्री युनूस ने आरोप लगाया कि उत्‍त्‍र प्रदेश का मुसलिम नेतृत्‍व गूंगा व बहरा है। वह न अपने अधिकारों को लेकर जागरूक है और समाज के मान-सम्‍मान को लेकर सचेत है। उन्‍होंने कहा कि किसी भी सरकार ने अल्‍पसंख्‍यक आयोग को सक्षम बनाने का प्रयास नहीं किया और उसे उपेक्षित बनाए रखा। यह दुर्भाग्‍यपूर्ण है।

 

By Editor