महिला के यौन शोषण के झूठे आरोप से  बिहार के आईपीएस अमिताभ कुमार दास पाक-साफ निकल गये हैं लेकिन उन्हें इस अग्निपरीक्षा को पास करने में 11 वर्ष तो लगे ही करियर और जीवन में कई चींजे गंवानी भी पड़ी.

अमिताभ दास: अग्निपरिक्षा में हुई जीत

इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम

 

अमिताभ को इस अग्नि परीक्षा व बनवास से पाक-साफ निकलने में 11 वर्षों की तपस्या करनी पड़ी है. गुरुवार का दिन अमिताभ के लिए एक नयी उम्मीद और उनकी गरिमा की वापसी का दिन था. राज्य सरकार को तब बाजब्ता एक संकल्प जारी कर अमितभा के खिलाफ विभागीय कार्रवाई समाप्त करनी पड़ी है. लेकिन इस आरोप से मुक्त होने के लिए आरोप को बड़ी कुर्बानी भी देनी पड़ी. 1994 बैच के आईपीएस अमिताभ सन 2006 से प्रोमोशन से वंचित थे. इस अवधि में उनके बैच के अफसरान आईजी रैंक तक पहुंच चुके हैं.

आखिर नागरिक सुरक्षा के मौजूद एसपी अमितभा के साथ हुआ क्या था. यह जानना काफी महत्वपूर्ण है.

घटना 2006 की है जब अमितभ के खिलाफ एक महिला ने लगातार आठ वर्ष तक यौन शोषण करने और फिर शादी से मुकर जाने का आरोप लगाया था. महिला ने इस संबंध में एक चिट्ठी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लिखी थी. मुख्यमंत्री ने इस आरोप को काफी गंभीरता से लिया था और इस मामले की जांच के लिए तत्काल कदम उठाने का हुक्म जारी किया था. चूंकि यौन शोषण का यह मामला काफी हाई प्रोफाइल था, इसलिए यह खबर काफी सुर्खियों में रही थी. तब सरकार ने वरिष्ठ आईपीएस अफसर प्रीता वर्मा को जांच सौंपी थी. काफी छानबीन के बाद प्रीता इस नतीजे पर पहुंचीं थीं कि इस मामले में अमिताभ के खेलाफ कोई सुबूत नहीं मिला और उन्हें आरोपमुक्त करने की अनुशंसा कर दी. लेकिन सरकार की ऊंची कुर्सियों पर बैठे लोगों को यह गवारा नहीं हुआ.

जांच पर जांच, नहीं आयी आंच

 

सरकार ने 1984 बैच के अधिकारी एसपी केशव को दोबारा जांच सौंपी. केशव ने भी अमिताभ के खिलाफ कोई सुबूत नहीं जुटा पाये. लेकिन फिर भी सरकार के रसूखदार लोगों ने अमिताभ के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की अनुसंशा कर दी. इस रवैये से आजिज अमिताभ ने कैट की पटना बेंच का दरवाजा खटखटाया. कैट ने इस मामले की जांच की लेकिन उस जांच के दौरान आरोप लगाने वाली महिला कभी कैट में सुनवाई के लिए हाजिर नहीं हुई. नतीजतन कैट ने सरकार को आदेश दिया कि अमिताभ के खिलाफ विभागीय कार्रवाई स्थगित कर दे. लेकिन ऊंची कुर्सियों पर बैठे लोगों को कैट का आदेश नगावर लगा और मामला हाई कोर्ट पहुंचा दिया गया. अमिताभ ने यह लड़ाई हाई कोट में न सिर्फ लड़ी बल्कि जीती भी. पर राज्य सरकार कहां मानने वाली थी. उसने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे डाली. अमिताभ कहते हैं कि इसके लिए कुछ लोगों ने काफी शातिराना चाल चली और उन्हें अंधेरे में रखा. लेकिन अमिताभ भी कहां मानने वाले थे. उन्होंने अपनी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट में भी जारी रखी और जीत हासिल की.

सिस्टम की सड़ांध कौन करे साफ

इस पूरी लड़ाई में अमिताभ को 11 साल लगाने पड़े. इस दौरान उनको कोई प्रोमोशन तक नहीं मिला. याद रखने की बात है कि अमिताभ जब रेल एसपी थे तो उन्होंने एक घोटाले को उजागर किया था. कुछ रसूखदार लोगों के दामन पर उस घोटाले के छीटे पड़े थे. अमिताभ बताते हैं उन्हें उसी का नतीजा भुगतना पड़ा.

अब अमिताभ उस आरोप से न सिर्फ मुक्त हो गये हैं बल्कि बिहार सरकार ने मजबूर हो कर एक संकल्प जारी करना पड़ा है कि अमिताभ दास के खिलाफ विभागीय  कार्रवाई समाप्त करने का ऐलान करना पड़ा है. यानी अब अमिताभ को प्रोमोशन मिल सकता है.

 

इस पूरी लड़ाई से नौकरशाही सिस्टम की सड़ांध का पता चलता है. इस मामले में तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए रिटायर्ड आईपीएस अफसर मंसूर अहमद कहते हैं कि गृह विभाग और सामान्य प्रशासन विभाग के आला अधिकारियों की बदनियती उजागर हो गयी है.  मंसूर अहमद ने अपनी गरिमा और स्वाभिमान की रक्षा के लिये अमिताभ दास की लड़ाई को एक मिसाल बताते हुए उनकी प्रशंसा की और कहा कि अमिताभ कुमार दास की जीत सच्चाई की जीत है.

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