राजद के राजगीर प्रशिक्षण शिविर के दौरान पत्रकारों के एक ग्रूप ने तब असहज स्थिति उत्पन्न कर दी जब पत्रकार दिलीप मंडल ने बिहारी मीडिया में दलितों और पिछड़ों की नगण्य भागीदारी पर आईना दिखाते हुए आंकड़ा पेश किया.

दिलीप मंडल को सम्मानित करते लालू प्रसाद

 

नौकरशाही ब्यूरो, राजगीर

मंडल के मंच से जाने के बाद पत्रकारों का एक ग्रूप राजद प्रमुख लालू प्रसाद के सामने आ गया और दिलीप मंडल द्वारा उठाये गये सवालों पर अपना विरोध दर्ज कराने लगा.दिलीप मंडल को राष्ट्रीय जनता दल ने सामाजिक न्याय, लोकतंत्र और मीडिया का अंतर्संबंध विषय पर अपनी बात कहने के लिए आमंत्रित किया था.

इससे पहले दिलीप मंडल ने मीडिया में सामाजिक न्याय का मुद्दा उठाते हुए कहा  कि पटना के 200 से ज्यादा पत्रकारों में मुश्किल से एक दलित समुदाय का और चार-पांच पिछड़े समाज के पत्रकार हैं. उन्होंने कहा कि 90-95 प्रतिशत पत्रकार सवर्ण समुदाय से आते हैं. मंडल ने कहा कि बिहार में सामाजिक न्याय के नेताओं की सरकार 27 वर्षों से है और पिछड़ी व दलित जातियाों का सशक्तीकरण हुआ है जबकि मीडिया जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में अभी भी उनका प्रतिनिधित्व नगण्य है.

 

मीडाया के सामाजिक चरित्र पर धावा बोलते हुए इंडिया टुडे के पूर्व सम्पादक  व लेखक दिलीप मंडल ने कहा कि उत्तर प्रदेश व बिहार का मीडिया विगत ढ़ाई दशकों से सामाजिक न्याय की सरकारों के विज्ञापन के बूते चलते रहे हैं लेकिन यही मीडिया सामाजिक न्याय की शक्तियों के खिलाफ अभियान चलाता है. इसकी सबसे बड़ी वजह मीडिया में पिछड़ों और दलितों की नुमाइंदगी का न होना है.मंडल ने उदाहरण देते हुए बताया कि 2015 के बिहार विधान सभा चुनाव में मीडिया ने मतगणना शुरू होते ही भाजपा की जीत की खबरें चलाने लगा. इनकी रिपोर्टिंग का नतीजा यह हुआ कि भाजपा के हजारों कार्यकर्ता जीत के लड्डू बांटने लगे, लेकिन मीडिया की यह खबर बुलबुले की तरह फूट गयी.

मंडल ने इस सवाल पर चिंता जताते हुए कहा कि उत्तर भारत में किसी भी पिछड़े नेता ने अपना समानांतर मीडिया खड़ा नहीं किया और वे उन्हीं मीडिया समूहों को समर्थन देते रहे जो उनके खिलाफ अभियान चलाता है और उन्हें बदनाम करता है. मंडल ने  कि दक्षिण भारतीय राज्यों में क्षेत्रीय दलों ने अपना समानांतर न्यूज चैनल और अखबार चलाते हैं जिसके कारण उन्हें मुख्यधारा के मीडिया पर निर्भरता कम रहती है.

 

दिलीप मंडल द्वारा उठाये गये इन्हीं सवालों के बाद जब सत्र समाजप्त हुआ और वह सभागार से बाहर चले गये तो कुछ पत्रकारों ने लालू प्रसाद के समक्ष अपना विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि जाति का सवाल उठाना गलत है. एक पत्रकार ने कहा कि ब्रह्मण जाति में पैदा होना क्या गुनाह है. पत्रकारों का कहना था कि जब मंडल सम्पादक थे तो उन्होंने कितने दलित या पिछड़े लोगों को पत्रकारिता की नौकरी दिलवाई. पत्रकारों के इन सवालों को लालू प्रसाद ने अपने जाने पहचाने अंदाज में टेकल किया. लालू ने कहा कि कुछ लोगों के सवालों पर गंभीर होने से बचना चाहिए.

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