उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति प्रक्रिया को बदलने के लिए बनाए जा रहे राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को सरकार ने संभावित न्यायिक समीक्षा से दूर रखने के लिए संवैधानिक दर्जा देने का फैसला किया है। यदि मौजूदा नियुक्ति प्रणाली कोलेजियम को नियुक्ति आयोग को सामान्य कानून से बदला गया तो सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के दो फैसले (1993 और 1998) इसकी राह में आएंगे, जिससे यह कानून सर्वोच्च अदालत में निरस्त हो सकता है।

इन फैसलों के आधार पर ही सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों का कोलेजियम (चयन मंडल) हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति करता है, जिसमें सरकार का कोई दखल नहीं है। सरकार सोमवार को देश के न्यायविदों और संविधान विशेषज्ञों से इस मुद्दे पर वार्ता करने जा रही है। राजनीतिक दलों से उनके विचार जानने के लिए सरकार की ओर से पहले ही उन्हें पत्र लिख चुका है।

सूत्रों के अनुसार, सरकार नियुक्ति आयोग (जेएसी) की संरचना को संविधान का हिस्सा बनाने के लिए अनुच्छेद 124 (सुप्रीम कोर्ट और उसके जजों की संख्या का निर्धारण) में नया प्रावधान 124 ए, वहीं उसके कार्यों परिभाषित करने के लिए अनुच्छेद 124 बी जैसे प्रावधान संविधान में जोड़ेगी।

न्यायिक आयोग बनाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 124 में संशोधन (120 वां) का बिल दोनों सदनों में पहले ही पारित किया जा चुका है। जिसमें कहा गया है कि न्यायिक नियुक्ति आयोग की सिफारिशों पर राष्ट्रपति जजों की नियुक्ति करेंगे। लेकिन पूर्व सरकार ने नियुक्ति आयोग को सामान्य कानून के जरिये बनाने के लिए छोड़ दिया था। इससे जुड़ा जेएसी बिल, 2013 संसदीय समिति को भेजा गया था, जिसने सिफारिश की है कि छह सदस्यीय आयोग में दो मान्य हस्तियों की जगह तीन लोग होने चाहिए।

इससे आयोग की सदस्य संख्या सात हो जाएगी, जिससे फैसला लेने में आसानी होगी। इस तीसरे सदस्य की नियुक्ति महिला, एससी, एसटी, और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों से रोटेशन के आधार पर की जानी चाहिए। प्रस्तावित आयोग में देश के मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट के दो जज, कानून मंत्री और दो प्रमुख हस्तियां शामिल हैं। वहीं विधि सचिव को इस समन्वयक रखा गया है।

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