दिल्ली आए छह साल से भी ज्यादा हो रहा है और फिल्म छह भी नहीं देखीं।इनमें कुछ आधी – अधूरी देखी। वजह व्यस्तता तो रहती थी ही पर सबसे ज्यादा अपने लिए समय न निकालने का कारण खराब समय प्रबंधन ही इसका ज्यादा जिम्मेदार रहा है।
 
 
 
 
पर कल अभिनय सिंहा की फिल्म ॑॑ मुल्क ॑ का प्रीमियर देखने के लिए मन बना लिया था , और उस समय फिल्म को देखा जब आम तौर पर दफ्तर से निकलना मुश्किल होता है। मुल्क का शीर्षक और पोस्टर ही इसकी संवेदनशीलता को दर्शाता है। लगता था ही कि फिल्म में बहुत कुछ विवादास्पद होगा। और शायद यही वजह थी कि निर्देशक अनुभव ने बाकी बातों के साथ यह कह कर खंडन कर दिया था कि फिल्म विवादास्पद है। लेकिन फिल्म शुरू होते ही आप जैसे कुर्सी पर बैठते हैं तो बस ,अब क्या की मुद्रा में बैठे ही रहते हैं। बनारस की पृष्ठभूमि और हिंदू – मुसि्लम के बीच बढ़ नहीं,बढ़ाई जा रही ,जी हां, बढ़ाई जा रही खाई के दर्द को परत दर परत सामने रखती है। एक बम विस्फोट और उसके बाद उससे जुड़े लोग और फिर पूरी कौम को लपेटने की कोशिश , अड़ोस – पड़ोस के लोगों का व्यवहार और कुछ एेसे क्रम कहानी को आगे बढ़ाते हैं जैसे लगता है , सब सच है। कोर्ट सीन आपको लम्बे लग सकते हैं पर वास्तव में देखें तो इसके तर्क आपको सोचने – समझने के लिए मजबूर करेंगे – एेसा ही तो होता आया है हम सब की जिंदगी में।
 
 
 
 
 
ज्यादातर लखनऊ में बनारस बना कर फिल्माई गई इस फिल्म के बाद रिषी कपूर यह कहेंगे कि मुझसे तो अभीतक वो कराया ही नहीं गया जो मैं कर सकता था। तापसी पन्नू के दर्द को आप सराह सकते हैं। अतुल तिवारी को पर्दे के पीछे फिल्म उद्योग ने बहुत कुछ दिया होगा पर पर्दे के सामने जो इस फिल्म ने जो दिया , वो याद रखा जाएगा। रजत कपूर, एबनर सादिक,अनिल रस्तोगी, मनोज पाहवा और नीना गुप्ता सब नेचुरल से थे। आशुतोष राणा कनिंग वकील साफ लगे। गाने- बजाने से दूर यह फिल्म उसकी कमी नहीं महसूस कराती। एक बात साफ है। फिल्म देखने के बाद आप बहुत जल्दी से हिंदू- मुसलमान के झांसे में नहीं फसेंगे। तो फिर रूके क्यों हैं । जाइए इसे देखने। कष्ट हो तो भी।

By Editor