खुशवंत सिंह को करीब से जानने वालों में एक नाम पंजाब केसरी वाले विजय कुमार का भी है. इस लेख में पढिए कि कैसे खुशवंत ने 30 सालों तक उनके लिए कॉलम ‘ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर’ लिखाKhushwant

खुशवंत सिंह और पंजाब केसरी वाले विजय कुमार में समानता यह है कि दोनों एक दूसरे को जितना जानते रहे उतना ही दोनों पंजाब और पंजाबियत को. पढिए विजय कुमार का लेख
प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक और स्तंभकार खुशवंत सिंह का वीरवार सुबह निधन हो गया। वह 99 वर्ष के थे। पाकिस्तानी पंजाब में खुशाब जिले के हदाली गांव में 2 फरवरी 1915 को जन्मे खुशवंत सिंह को सबसे पहले ख्याति भारत-पाकिस्तान के बंटवारे पर आधारित उपन्यास ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ से मिली। उनके लेखन में नारी सौंदर्य, हास्य, व्यंग्य और काव्य का सुंदर सुमेल देखने को मिलता है।

जीवन भर धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के लिए संघर्षरत रहे खुशवंत सिंह भारत सरकार की पत्रिका ‘योजना’ के संस्थापक-संपादक होने के अलावा ‘नैशनल हैराल्ड’, ‘दि इलेस्ट्रेटेड वीकली आफ इंडिया’ तथा ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ के संपादक रहे और फिर स्वतंत्र लेखन मेें व्यस्त रहे। इंदिरा गांधी के अत्यंत नजदीकी रहे खुशवंत सिंह को इंदिरा ने राज्यसभा के लिए मनोनीत किया और उन्हें 1980 में पद्म भूषण दिया गया परंतु 1984 में आप्रेशन ब्ल्यू स्टार के विरोध में उन्होंने इसे लौटा दिया था।

वह तथा रमेश चंद्र जी पी.टी.आई. के ट्रस्टी थे और रमेश जी ने उनसे ‘पंजाब केसरी ग्रुप’ के लिए भी अपना स्तंभ ‘न काहू से दोस्ती न काहू से बैर’ देने का आग्रह किया और लगभग 30 वर्षों तक वह हमारे लिए लिखते रहे। ब्लू स्टार आप्रेशन के बाद हमें बड़ी संख्या में ऐसे पत्र आने लगे जिनमें उनके लेखों का प्रकाशन बंद करने की मांग की परन्तु हमने उनका स्तंभ जारी रखा। पाठकों के गालियों भरे पत्र हम उन्हें अवश्य भेज दिया करते।

पंजाब में जब आतंकवाद ने जोर पकड़ा और हत्याएं बहुत बढ़ गईं तो 1987 में पंजाब के राजनीतिज्ञों और पत्रकारों के एक शिष्टमंडल ने दिल्ली जाकर उन्हें वस्तुस्थिति बताने के लिए उनसे भेंट करने का निर्णय लिया।

इस शिष्टमंडल में आतंकवाद के विरुद्ध लडऩे वाले सर्वश्री जगजीत सिंह आनंद, सतपाल डांग, जत्थेदार जीवन सिंह उमरानंगल, अमरेंद्र सिंह, सुहेल सिंह तथा जितेंद्र पन्नु शामिल थे। स. खुशवंत सिंह ने सर्वश्री डांग, उमरानंगल और अमरेंद्र सिंह से कुछ प्रश्र किए जिनके उत्तर में उन्होंने बताया कि पाकिस्तान आतंकी कैम्प चलाकर और उनकी भारत में घुसपैठ करवा कर यह सब करवा रहा है। आतंकवादी गांवों में जाकर जमींदारों व अन्य लोगों को लूटते हैं और उनके घरों की जवान औरतों के साथ भी खराबी करते हैं।

खुशवंत सिंह से भेंट के बाद हमने उन्हें 11 दिसम्बर 1988 को आयोजित शहीद परिवार फंड समारोह में बतौर मुख्यातिथि बुलाया। उस समय दो बड़े रिटायर्ड जरनैलों ने उन्हें यहां आने से मना किया कि शहीद परिवार फंड हिन्दुओं को ही सहायता देता है। जब उन्होंने शहीद परिवार फंड समारोह देखा तो उसमें सिख विधवाओं की संख्या देख कर उन्हें विश्वास हो गया कि उन्हें गुमराह किया गया था और बिना भेदभाव के यह फंड चलाया जा रहा है। स. खुशवंत सिंह ने एक-एक पीड़ित महिला से बात की और उसके बाद उन्होंने जो भाषण दिया उसका एक अंश हम यहां उद्धृत कर रहे हैं

‘‘उग्रवादी यदि हिन्दुओं और सिखों में नफरत फैलाने के लिए फिरते हैं तो हम उन्हें परास्त करने के लिए संकल्पबद्ध हैं। हिन्दू और सिख दोनों पंजाबी हैं और उनमें दरार डालने वाले कभी सफल नहीं हो सकते। अकालियों ने जो तबाही अपनी मूर्खतापूर्ण

साभार पंजाब केसरी

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