यूपीएससी परीक्षा विवाद खत्म हो चुका है अब परीक्षा होनी है पर परीक्षा में कुछ शब्दों के अनुवाद- ‘स्टील प्लांट’ मतलब‘लोहे का पेड़,ब्लैक होल’ मानी ‘काला छेद’ और ‘नॉर्थ पोल’ की हिंदी ‘उत्तरी खंभा’ शायद ही कोई भूल पाये.

संतोष राय

संघ लोक सेवा आयोग की प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करने वाले विद्यार्थी हाल ही में सीसैट को लेकर नेताओं के बहकावे में आ गए थे। उनसे कहा गया था कि बजट सत्र शुरू होने वाला है, अभी कुछ करोगे तो फायदा है, नहीं तो सब बेकार।

यही कारण था कि बजट सत्र शुरू होने के साथ ही यूपीएससी प्रतियोगियों का आंदोलन शुरू हो गया। संसद में क्षेत्रीय दलों ने जोर-शोर से इस मुद्दे को उठाया। हालांकि इस मामले को संसद में उठाने वाले सांसदों को भी ठीक से यह नहीं पता था कि आखिर असली मुद्दा है क्या! सरकार ने ऊपरी तौर पर सांसदों की बात के आधार पर यही माना कि यह अंगरेजी बनाम हिंदी समेत अन्य क्षेत्रीय भाषाओं का मामला है।

इस मसले पर सरकार ने एक हफ्ते का समय लिया और कह दिया कि आठ सवालों वाले अंगरेजी के प्रश्नों के अंक नहीं जोड़े जाएंगे और जो प्रतियोगी 2011 में परीक्षा में शामिल हो चुके हैं, उन्हें एक और अवसर दिया जाएगा। यानी सांसदों ने जैसा संदेश सरकार तक पहुंचाया सरकार ने कहने को उसका निराकरण कर दिया। सरकार के फैसले से नाखुश विद्यार्थियों ने कहा कि मामला यह तो था ही नहीं। इसके बाद वे आंदोलन जारी रखते हुए सीसैट को हटाने की मांग पर टिके रहे।

प्रतियोगी विद्यार्थियों का कहना था कि उन्हें अंगरेजी को लेकर कोई आपत्ति नहीं थी, बल्कि असली सवाल द्वितीय प्रश्न पत्र में अंगरेजी से हिंदी में या फिर अन्य भाषाओं में अनुवाद पर था, जो पहली नजर में ही हास्यास्पद है। जब मैंने कुछ विद्यार्थियों से बात की तो उन्होंने उदाहरण के तौर पर बताया कि ‘स्टील प्लांट’ का हिंदी अनुवाद ‘लोहे का पेड़’, ‘ब्लैक होल’ का अनुवाद ‘काला छेद’ और ‘नॉर्थ पोल’ का अनुवाद ‘उत्तरी खंभा’ दिया गया होता है। ऐसे में परीक्षार्थियों का ज्यादातर समय यही सोचने में खत्म हो जाता है कि प्रश्न के रूप में आखिर उनसे क्या पूछा गया है और किस तरह के जवाब की अपेक्षा की गई है। आमतौर पर यह सी-सैटपैटर्न के बाद द्वितीय पेपर में होता रहा है। इसलिए इसे हटाया जाना चाहिए। अब तक जिस तरह की समस्याएं उठाई गई हैं, निश्चित तौर पर उसके मजबूत आधार हैं। लेकिन अब तक सरकार की ओर से जो प्रतिक्रिया सामने आई है, उससे कोई भी सकारात्मक नतीजा सामने नहीं दिख रहा है।

कुछ समय पहले जब विद्यार्थी को लगा कि सरकार कुछ नहीं करने वाली है और नेताओं ने संसद में उनकी बात को सही तरीके से नहीं रखा है तो उनके पास इसके अलावा दूसरा चारा नहीं था कि वे परीक्षा की तिथि, चौबीस अगस्त को टालने की बात करने लगे। ऐसा लगता है कि या तो राजनीतिकों को विद्यार्थियों की मूल समस्या समझ में नहीं आई और दूसरी ओर आंदोलनकारी विद्याथी भी अपनी बात सही तरीके से समझ नहीं पाए। मीडिया ने इस मामले का और घालमेल कर दिया। सी-सैट पर जितने सवाल उठे हैं, उसके मद्देनजर एक मंथन जरूर करना चाहिए और यह विचार करना चाहिए कि कहीं इससे भाषाई भेदभाव को बढ़ावा तो नहीं मिल रहा है! अगर ऐसा है तो उसे दूर किया जाए और सभी क्षेत्रीय भाषाओं को खास तवज्जो दी जाए। यूपीएससी एक स्वतंत्र निकाय है और उसे वक्त के हिसाब से परीक्षा पैटर्न बदलने, सुधार करने और समयानुकूल बनाने का पूरा हक है।

अदर्स वॉयस कॉलम के तहत हम अन्य मीडिया की खबरे छापते हैं. यह लेख जनसत्ता से साभार

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