लालू परिवार पर सीबीआई छापामारी के बाद मीडिया, गठबंधन टूटने की इबारत लिखने को बेताब था. राजद मीडिया पर हमलावर तो जद यू मीडिया के उत्साह का रणनीतिक इस्तेमाल में लगा था. अब यह ज्वार शांति की तरफ अग्रसर है. ऐसे में राजद, जद यू व  मीडिया की रणनीति की पड़ताल जरूरी है. पढ़िये इर्शादुल हक की कलम से.

मीडिया का रूप

वह 7 जुलाई की सुबह थी. सीबीआई के अफसरान लालू प्रसाद के घर पर छापेमारी कर रहे थे. मीडिया का हुजूम लालू के घर के बाहर था.सीबीआई ने छानबीन के बाद लालू प्रसाद, तेजस्वी यादव व राबड़ी देवी पर होटल के बदल जमीन मामले में एफआईआर दर्ज की. फिर क्या था. तूफान मच गया. भाजपा ने तेजस्वी को कैबिनेट से हटाने की मांग की. मीडिया ने इस मुद्दे को ले कर आसमान जमीन एक कर दिया. इस दौरान सीएम नीतीश कुमार राजगीर में बुखार से निजात की कोशिश में थे. वह बदस्तूर मौन थे. मीडिया को उन तक पहुंचने की इजाजत नहीं थी. पटना से दिल्ली और फिर राजगीर तक मीडियाई तूफान में बिजली से भी तेज चिंढार था. टीवी के तमाम डिबेट में गठबंधन टूटने, तेजस्वी का इस्तीफा या फिर बरखास्तगी के फार्मुले तय किये जा रहे थे. भाजपा, मीडिया की इस भूमिका से गदगद थी. उसकी इच्छाओं को मीडिया की जुबान मिल रही थी. लालू परिवार के भ्रष्टाचार की परतें उधेंड़ी जा रही थीं. नीतीश की खामोशी तोडने के इंतजार में मीडिया की बेताबी ने आम जन की उत्सुकता सातवें आसमान पर पहुंचा चुका था.

तेजस्वी की रणनीति

मीडिया के तूफानी आक्रमण से लालू परिवार आहत था. वह मीडियाई चरित्र को भाजपाई चोला बताने लगा. तेजस्वी मीडिया के इस रवैये से खिन्न थे. खास तौर पर तब जब मीडिया यह घोषणा कर रहा था कि अगर तेजस्वी ने इस्तीफा नहीं दिया तो नीतीश उन्हें आने वाले चंद घंटों में बर्खास्त कर सकते हैं. तेजस्वी इसलिए भी खिन्न थे कि मीडिया का बड़ा वर्ग उन्हें भ्रष्टाचार का मुजरित तक घोषित कर रहा था.  मीडिया के इस रंग को तेजस्वी ने भाजपा समर्थित मीडिया कहके हमला शुरू किया. राजद अपने स्थापना काल से ही मीडिया के रवैये पर नाराज रहा है. पर अबतक राजद ने कभी मीडिया और पत्रकारों पर ऐसा शाब्दिक आक्रमण कभी नहीं किया. यह लालू युग और तेजस्वी युग का फर्क था. तेजस्वी सीधे सम्पादकों को झूठा करार दे रहे थे. क्योंकि तेजस्वी का दुख यह था कि सीबीआई ने अभी आपोप लगाया है और मीडिया इन आरोपों को  जज की तरह ऐलान कर रहा है कि वह भ्रष्ट हैं कुछ पत्रकार यह घोषणा कर रहे थे कि तेजस्वी को इस्तीफा देना ही पडेगा, वरना नीतीश उन्हें बर्खास्त कर देंगे.  उधर तेजस्वी इस लिए भी खिन्न थे कि मीडिया द्वारा गठबंधन टूटने की इबारत बार बार लिखी जा रही थी. राजद यह बार बार कह रहा था कि न गठबंधन टूटेगा और ना ही तेजस्वी इस्तीफा देंगे.

ऐसे थे मीडिया में खबरों के शीर्षक

 

अगर लालू प्रसाद के आरंभिक कार्यकाल को याद करें तो पायेंगे कि लालू मीडिया के रवैये से आहत तो होते थे पर मीडिया के खिलाफ आक्रामक बयान नहीं देते थे. लेकिन लगातार तेज्सवी ने मीडिया पर तीखे प्रहार किये. कुछ मीडिया को वे भाजपाई, संघी मीडिया कहते रहे तो कुछ सम्पादकों को झूठा कहने से भी पीछे नहीं हटे. तेजस्वी ने मीडिया पर तीखे शब्दबाण छोड़ने की रणनीति इसलिए अपनायी क्योंकि वह अपने समर्थकों में यह मैसेज देना चाहते थे कि मीडिया जज की भूमिका में आ कर उन्हें दोषी करार दे रहा है. इसलिए समर्थकों को जाननe चाहिए कि मीडिया का एक हिस्सा पूर्वाग्रह से ग्रसित है.

जद यू  ने मीडिया के उत्साह को भुनाया

उधर जद यू मीडिया के सवालों, आकलनों, विश्लेषणों और ताबड़तोड़ हमलों से निपटने के लिए एक बारीक रणीति बनाई. उसके प्रवकताओं ने, तेजस्वी का कभी नाम तक तो नहीं लिया पर मीडिया को बयान देते रहे कि जिन पर आरोप लगा है उन्हें जनता के समक्ष अपना पक्ष रखना चाहिए. और यह भी कि नीतीश कुमार कभी भ्रष्टाचार से समझौता नहीं करते,लिहाजा इस मामले में भी वह अपने स्टैंड पर कायम रहेंगे.

मीडिया का बड़ा वर्ग जद यू प्रवक्ताओं के बयान को इस अंदाज में परिभाषित करता रहा कि नीतीश कुमार कभी भी तेजस्वी से इस्तीफा ले सकते हैं या फिर उन्हें बर्खास्त कर सकते हैं. मीडिया उस गणित को भी समझाता रहा कि गठबंधन टूटने की स्थिति में नीतीश की सरकार नहीं गिरेगी और भाजपा के समर्थन से नीतीश सीएम बने रहेंगे. लेकिन जद यू की इस रणनीति पर मीडिया ने ध्यान तक नहीं दिया कि जद यू मीडियाई तूफान के थमने के इंतजार में है. इस बीच मीडिया के तेवर तब ढीले पड़ने शुरू हुए जब तेजस्वी 12 दिनों के बाद नीतीश कुमार से मिलने पहुंचे और उसके बावजूद नीतीश कुमार की तरफ से ना तो इस्तीफा मांगा गया और ना ही बर्खास्तगी का फरमान सुनाया गया. उधर बीच बीच में अब भी जद यू के प्रवक्ता यह कहने में लगे हैं कि जद यू अब भी अपने स्टैंड पर कायम है. पर इस्तीफे पर उसका क्या स्टैंड है इसका विश्लेषण मुख्यधारा का मीडिया या तो कर नहीं सका या फिर करना नहीं चाह रहा है.

और भाजपा ….?

उधर भाजपा ने इस पूरे मामले में वही भूमिका निभाई जिसकी उम्मीद विपक्ष से की जाती है. हां, उसकी भूमिका को काफी हद तक मीडिया ने आसान बनाये रखा. भाजपा जहां एक तरफ नीतीश को यह याद दिलाती रही कि वह भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस की अपनी वचनबद्धता निभायें और तेजस्वी को बर्खास्त करें. भाजपा नीतीश सरकार को बचाने का आफर भी देती रही. लेकिन इस मुद्दे के उठे अब एक पखवाड़ा बीत चुका है. मीडिया का उत्साह धीरे धीरे थके हुए नाविक की होती जा रही है. भाजपा की उम्मीदों पर पानी फिरतe जा रहा है और राजद अपनी आक्रमकता का लाभ उठाने में सफलता महसूस कर रहा है. जबकि जद यू इस तूफान के ठहर जाने के इंतजार की रणनीति पर अब भी चल रहा है.

By Editor