महाकवि केदारनाथ मिश्र प्रभात‘ हिंदी काव्यसाहित्य के अनमोल रत्न हैं। उनकी काव्यकल्पनाएँ अत्यंत मोहक और चकित करती हैं। उन्होंने अपनी विलक्षण काव्यप्रतिभा से हिंदी कविता को साहित्य के शिखर पर प्रतिष्ठित किया।

यह विचार आज यहाँ पटना में बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा महाकवि की जयंती पर आयोजित समारोह और कविगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने व्यक्त किए। डा सुलभ ने कहा किमहाभारत के महानयोद्धा कर्ण पर लिखित उनका खंडकाव्य कर्ण‘ हो अथवा रामायण की खल स्त्रीपात्र कैकेयी‘ पर प्रबंधकाव्यप्रभात जी ने उन्हें अद्भुत काव्यकल्पनाओं से भरा है। उनके गीतसंग्रह बैठो मेरे पास‘ पठनीयता और रमणीयता के पुलकनकारी उदाहरण हैं। पाठकों में लोकप्रियता और विक्रय की दृष्टि से कीर्तिमान स्थापित करने वाले उपन्यासों मृत्युंजय‘ और युगंधर‘ का अत्यंत लोकप्रिय उपन्यासकार शिवाजी सामंत की दृष्टि मेंप्रभात जी का कर्ण‘ हिंदीकाव्यसाहित्य का एक मात्र अनमोल गहना‘ है। गोष्ठी का उद्घाटन,लखनऊ से पधारे सुप्रसिद्ध कविकथाकार डा कौशलेंद्र पाण्डेय ने किया।

आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुएसम्मेलन के साहित्यमंत्री डा शिववंश पांडेय ने प्रभात जी के साहित्यिक कृतित्व और व्यक्तित्व की विस्तार से चर्चा की। सम्मेलन के उपाध्यक्ष पं शिवदत्त मिश्रडा शंकर प्रसादअंबरीष कांतचंद्रदीप प्रसाद तथा प्रो सुशील झा ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।

इस अवसर पर आयोजित कविगोष्ठी का आरंभ महाकवि की पुत्रवधु नम्रता मिश्र द्वाराउनकी वाणीवंदना वाणी दो यही वरदान‘ के सस्वर पाठ से हुआ। वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र करुणेश‘ ने प्रेम के शाश्वत– भाव को इन पंक्तियों से अभिव्यक्ति दी कि, “नाम राधा का जुड़ा कान्हा के जिस दिन नाम सेवो हुई बदनाम बेपरवाह भी अंजाम सेवेदना यह दंस सीता को कहाँ सहना पड़ासात फेरे ले सुहागिन हो गई वह राम से।

तल्ख़तेवर के कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय प्रकाश‘ ने देश की सामाजिकराजनैतिक स्थिति पर प्रहार करते हुए कहा कि, “सत्य और ईमान का झंडा लेकर चलेसभ्य इंसान जिस परऐसी कोई सड़क नहीं हैनेता और नरक में आजकोई फ़र्क़ नही हैनेता की जेब में जाति के दिलजाति के दल में नेता का दिल/दिल से दिल मिल कर रहे दिल्लगी देश से।

वरिष्ठ कवि नाचिकेटा ने श्रम को इन पंक्तियों से प्रणाम किया कि, “ नमन उसे सौ बार साथियोंजिसने पहली बार धरा था हल पर अपना हाथहँसिए और हथौड़े का था जिसका पहला साथजिसने पहली बार गढा था उत्पादन का आधार

शायर आरपी घायल ने अपना ख्यालेइज़हार इस तरह किया कि, “उसका लिया जो नाम तो ख़ुशबू बिखर गईतितली मेरे क़रीब से होकर गुज़र गईउसकी आँखों की चमक से या वफ़ा के नूर सेरात काली थी मगर,रोशनी से भर गई।” कवि विशुद्धानंद ने गाया -” एक नदी मेरा जीवनकभी तरल तो कभी सघन

कवि प्रभात के पुत्र मोहन मृगेंद्रबच्चा ठाकुरडा मेहता नगेंद्र सिंहऋषिकेश पाठकराज कुमार प्रेमीइंद्र मोहन मिश्र महफ़िल‘, आर प्रवेशशालिनी पाण्डेयमासूमा खातूनआनंद किशोर मिश्रबाँके बिहारी सावअंकेश कुमाररवि घोष,विपिन मिश्र तथा कुमारी मेनका ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। इस अवसर परसमेत बड़ी संख्या में सुधी श्रोता उपस्थित थे। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवादज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।

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