भाजपा के अच्‍छे दिन आ गए हैं। सत्‍ता की संभावना दिखने लगी है। शायद इसीलिए कुर्सी की लड़ाई तेज होने वाली है। कुर्सी पर अतिक्रमण की आशंका भी बढ़ने लगी है। सोमवार को विद्यापति भवन में आयोजित अभिनंदन समारोह की व्‍यवस्था देखकर कुछ ऐसा ही लग रहा था।bjp 1

नौकरशाही ब्यूरो

 

विद्यापति भवन में भाजपा के नवनिर्वाचित विधान पार्षदों का अभिनंदन समारोह आयोजित किया गया था। इसमें भाजपा के 11 पार्षदों के साथ लोजपा की एक और एक निर्दलीय का भी अभिनंदन किया गया। अतिथियों के आने से पहले मंच की व्‍यवस्‍था देखकर आश्‍चर्य होना स्‍वाभाविक था। मंच पर पहली पंक्ति में लगायी गयी सभी कुर्सियों पर मोटे-मोटे अक्षरों में अतिथियों का नाम लिखकर चिपकाया गया था। पटना में अभी आमतौर पर ऐसा चलन नहीं है। अतिथियों के लिए सीट तय करने के लिए टेबुल पर नेमप्‍लेट लगा दिए जाते हैं।bjp 2

 

भाजपा के कार्यक्रम में कुर्सी पर नाम चिपकाने का सि‍लसिला कब शुरू हुआ, इसकी जानकारी नहीं है। लेकिन आज जो कुछ दिखा, वह यही बता रहा था कि भाजपा में कुर्सी की लड़ाई तेज होने वाली है। चुनाव प्रभारी यानी अनंत कुमार के बगल में कौन बैठेगा या उसके बाद कौन बैठेगा, लिखित रूप से तय करना निश्चित रूप से बड़े स्‍तर का निर्णय होगा। सामान्‍य कार्यकर्ता के लिए कुर्सी का ‘नामकरण’ व्‍यवस्‍था बनाए रखने की कोशिश हो सकती है, लेकिन राजनीति में सत्‍ता के करीब बैठे लोगों के लिए ‘कुर्सी की प्राथमिकता और नामकरण’ के कई मायने हो सकते हैं। खैर। यह समस्‍या भाजपा की है। लेकिन चिंता आम आदमी की भी है कि बिहार में परिवर्तन की लड़ाई कुर्सी पर नाम चिपकाने की लड़ाई में तब्‍दील न हो जाए।

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