देश भर के दलित-पिछड़े प्रतिनिधियों नें राष्ट्रीय दलित विकास अजेंडे पर चर्चा की इसके तहत आवश्यक सेवाओं में दलितों की समुचित भागीदारी, पोषण, महिला आरक्षण और अर्थव्यवस्था में समुचित भागीदारी जैसे विषय पर नेताओं नें खुल कर अपने विचार रखे.

देश भर के दलित और पिछड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं नें दलित संगठनों के तीसरे राष्ट्रीय सम्मलेन के उद्घाटन के अवसर पर अपने अनुभवों को बांटा. इन नेताओं नें सम्मान के लिए किये जाने वाले अपने संघर्षों को उजागर करते हुए कहा कि कैसे आज भी समूचे भारत में दलित समुदाय के खिलाफ शोषण, उत्पीडन और उनके कानूनी व आर्थिक हितों का उल्लंघन किया जाता है. इस अवसर पर देश भर से आये सामजिक कार्यकर्त्ता, बुद्धीजीवी, जनप्रतिनिधि, किसान महिला प्रतिनिधियों नें भी अपने विचार रखे.

इस अवसर पर नेशनल कन्फ़ेडरेशान ऑफ़ दलित आर्ग्नयिजेशंस के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक भारती नें इस सम्मलेन के उद्देश्यों की चर्चा करते हुए कहा कि इस सम्मलेन में समाज के सभी वर्गों के प्रतिनिधियों की भागीदार से जो स्वर उभर रहे हैं वो यह मांग करते हैं कि हमारे संविधान ने सभी को जो समानता का अधिकार देने का वादा किया है, सरकार उसे पूरा करे. उन्होंने कहा कि पर नेशनल कन्फ़ेडरेशान ऑफ़ दलीत आर्ग्नयिजेशंस द्वारा आयोजित दलित संगठनों का तीसरा पंचवर्षीय सम्मलेन दलितों और गैर दलितों के बीच खाई को पाटने का काम करेगा और यह सम्मलेन दलितों द्वारा किये जा रहे प्रयासों में मील का पत्थर साबित होगा. उन्होंन इस दिशा में गैर दलितों से उदार सहयोग की अपील की.

महिला व बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ ने प्रथम दलित महिला राष्ट्रीय सम्मलेन का उद्घाटन करते हुए कहा कि जबतक महिलाओं खासकर दलित महिलाओं को शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त नहीं बनाया जाता तब तक हमारे समाज का विकास संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि सारकार के साथ सामाजिक संगठनों को भी इस काम में प्रभावी भूमिका निभाने की जरूरत है. उन्हों ने दलित महिलाओं का आह्वान किया कि वह अपने को कमजोर न समझें और अपने अधिकारों के लिए पुरुषों के साथ आगे बढ़ें.

इस अवसर पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रिय सचिव डी. राजा नें अपने विचार रखते हुए कहा कि देश में जातिवाद अभी तक अपने क्रूरतम रूप में बना हुआ है. जातिवाद हमारे समाज के वस्त्र में नहीं बल्कि चमड़ी में घुसा है जो तभी मिटेगा जब हम चमड़ी को उधेड़ेंगे. उन्होंने नें कहा कि दलित ही इस देश की अर्थाव्योव्स्था की रीढ़ हैं पर इनका देश के संसाधनों पर ही हक़ नहीं है. इस लिए हमें एकजुट होकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने की ज़रुरत है.

योजना आयोग के सदस्य और राष्ट्रिय सलाहकार परिषद् के सदस्य डॉ. नरेन्द्र जाधव नें इस अवसर पर कहा कि अगली पंचवर्षीय योजना में दलित और गैर दलित की खाई को कम करने की कोशिश की जा रही है . इस सम्बन्ध में अगले२९ दिसंबर को राष्ट्रिय सलाहकार परिषद् की मीटिंग होगी जिसमे इस मुद्दे पर आखरी मुहर लगेगी. उन्होंनें इस बात पर चिंता जताई कि दलितों के लिए उपयोजना की शुरुआत

१९७५ में हुई पर अभी तक इसपर अधुरा ही अमल हो पाया है. लेकिन अब प्रधानमंत्री नें इस उपयोजना को बनाने की जिम्मेदारी मुझे सौंपी है. हमारी टीम इस पूरी ईमानदारी से काम कर रही है.

ग्लोबल अलाएंस फॉर इम्प्रूव्ड नियुत्रिशन और दक्षिण अफ्रीका के तत्कालीन राष्ट्रपति नेलशन मंडेला की नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री रहे जय नायिडू नें कहा कि दक्षिण अफ्रीका में हमलोगों नें कालों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और वहां लोकतंत्र की स्थापना की. पर जब हम अपने पूर्वजों के देश भारत में देखते हैं तो दुःख होता है कि लोकतंत्र की स्थापने के बावजूद यहाँ अभी तक दलितों का शोषण और उनके अधिकारों का हनन जारी है. उन्होंने दलितों का आह्वान करते हुए कहा कि समाज में असल परिवर्तन वही लोग करते हैं जो दमन के शिकार होते हैं, इस लिए यहाँ के दलित ही ऐसे समाज को बदल सकते हैं.

टाटा संस के निदेशक भारत वाख्लू नें अपने भाषण में कहा टाटा संस दलितों के विकास में योगदान कर रहा है और हम इस्काम को आगे और प्रभावशाली तरीके से बढाने जा रहे हैं. उनहोंने कहा के हम आने वाले दिनों में शिक्षा, उद्यमिता और रोजगार प्रशिक्षण पर जोर देने की योजना बना रहे हैं और हमें विश्वास है कि इससे दलित समाज के विकास में हम योगदान कर सकेंगे.

केंद्र सरकार के पूर्व सचिव पी एस कृष्णन न दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों की एकता पर बल देते हुए कहा कि इन समुदायों के खिलाफ ही भेदभाव होता है इस लिए इन्हें एकजुट होकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने की जरूरत है. उनहोंने आँध्रप्रदेश में अनुसूचित जातियों के लिए उपयोजना की स्वीकृत किये जाने पर संतोष जताया और कहा कि इसका अनुकरण देश भर में होना चाहिए.

उन्हों न कहा कि अध्ययन बताते हैं कि भुखमरी और कुपोषण के सबसे ज्यादा शिकार दलित समुदाय के लोग ही होते हैं.उन्होंने न एक 2011 में किये गए सर्वेक्षण का उल्लेख करते हुए कहा कि देश में कुपोषण के शिकार लोगों में से 50.51 लोग दलित समुदाय के हैं.जबकि सामान्य वर्ग के लोगों के कुपोषण की दर 36 प्रतिशत है. इसी तरह अनुसूचित जाति के बचों में कुपोषण की दर सामान्य वर्ग के बच्चों से डेढ़ गुना ज्यादा है.

४-८ दिसंबर तक हलने वाले इस राष्ट्रिय सम्मलेन के पहले दिन आदिवासी- मानवाधिकार का संघर्ष’ और दलित महिलाओं का प्रथम राष्ट्रीय सम्मलेन का आयोजन किया गया. इस सम्मलेन में उड़ीसा, गुजरात, हरियाणा,बिहार, झारखण्ड, छतीसगढ़, मध्यप्रदेश दिल्ली समेत कई अन्य राज्यों से एक हज़ार से अधिक प्रतिनिधियों न भाग लिया. इस अवसर पर अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़े समुदायों कीखाद्य और पोषण सुरक्षा पर घोषणा पत्र जारी किया गया.

कार्यक्रम का समापन रामलीला मैदान में आत्मसम्मान के हज़ार दीपक जला कर किया गया. इस अवसर पर देश भर के हजारों दलित महिला और पुरुष प्रतिनिधियों न दीपक जला कर अपनी एकता का प्रदर्शन किया.

By Editor