हिन्दी के वरेण्य उपासक और बिहार विधान सभा के अध्य्क्ष रहे डा लक्ष्मी नारायण सिंह ‘सुधांशु’ विनम्रता और सादगी के ही नही, अपितु विद्वता और प्रज्ञा के भी मूर्तमान रूप थे।

 उद्घाटन करते अनिल सुलभ
उद्घाटन करते अनिल सुलभ

यह विचार आज यहां बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में सुधांशु जी की जयंती पर आयोजित समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने व्यक्त की।

डा सुलभ ने कहा कि सुधांशु जी की सादगी भी उनके साहित्य और व्याख्यानों की भांति मर्म-स्पर्शी थी। विधान सभा का अध्यक्ष बनने के बाद भी उन्होंने अपने पहनावे में कोई अंतर नही आने दिया। जैसा सादगी भरा जीवन उनका स्वतंत्रता आंदोलन के काल में था वही अंत तक बना रहा। वे एक दुर्लभ अनुकरणीय व्यक्तित्व थे।

समारोह के मुख्य अतिथि और विद्वान समीक्षक डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि राजभाषा के रूप में हिन्दी के विकास के लिये जो कार्य डा सुधांशु ने किया वह हिन्दी साहित्य के इतिहास में अमर है। ‘हिन्दी’ देश की और बिहार के राजकीय कार्य की भाषा बने इसके लिये सुधांशु जी ने बीज-तत्त्व का कार्य किया। वे हिन्दी के महान उन्नायकों में गिने जाते रहेंगे।

आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के प्रधानमंत्री आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव ने उनके साहित्यिक अवदानों की चर्चा करते हुए कहा कि, “जीवन के तत्त्व और काव्य के सिद्धांत”,“काव्य में अभिव्यंजनावाद” तथा “भ्रातृ-प्रेम” जैसे अपने ग्रंथों में उन्होंने न केवल अपने पांडित्य का परिचय दिया बल्कि पाठक-समुदाय तथा विशेषकर हिन्दी के विद्यार्थियों के लिये प्रचुर सामग्री दिया।

कविता पाठ      

इस अवसर पर एक भव्य कवि-सम्मेलन का भी आयोजन किया गया, जिसमें हिन्दी और उर्दू के अनेक कवि शायरों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया। हिन्दी के ख्याति-लब्ध गज़लगो मृत्यंजय मिश्र ‘करुणेश’ ने अपनी गज़ल “ जो गम तनाव न कुछ भी थकान देते हैं/ जनाब फ़ूंक वो मुरदे में जान देते हैं/ हैं लोग सो रहे जिस वक्त नींद में गहरी/ ये उसी वक्त क्यों मुल्ला अजान देते हैं”, पढ कर श्रोताओं को आह भरने के लिये विवश कर दिया तो वरिष्ठ कवि बलभद्र कल्याण ने इन पंक्तियों से ग्राम्य-जीवन की खो रही सुष्मा की ओर ध्यान खींचा.

कवि जय प्रकाश पुजारी ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति इन पंक्तियों में की कि, “ तु दिल को मेरे यार जितनी वार तोड़ दे/ हम दिल के हर टुकड़े से तुन्हें प्यार करेंगे”। डा विनय कुमार विष्णु का कहना था कि, “अगर हम कोई शपथ ले लेंगे/ देर ही सही मगर ऊंचाई पा लेंगे”। पं शिव दत्त मिश्र ने अपनी संस्कृति की याद की- “ संस्कृति है आदर्श भरी/ अहिंसा, सत्य खजाना है”।

By Editor