इर्शादुल हक

‘चुप बैठिए बदतीमज कहीं के’, यही शब्द थे उत्तर प्रदेश के शहरी विकास मंत्री आजम खान के एक नौकरशाह के खिलाफ.

मंगलवार को आजम खान ने अपने महकमे की एक बैठक बुलाई थी. इसमें उस महकमे के प्रधान सचिव प्रवीर कुमार नहीं शामिल हुए. क्योंकि मुख्यसचिव जावेद उस्मानी ने अचानाक प्रवीर को किसी जरूरी काम से(या फिर बहाने से) बुला लिया था. जब एक अन्य आईएएस ने यह सूचना आजम खान को दी तो वह आग बबूला हो गये और गुस्से में कहा, ‘चुप बैठिए बदतमीज कहीं के’.

प्रवीर कुमार 1982 बैच के आईएस अधिकारी हैं. अचानक मुख्यसचिव द्वारा तलब कर लिए जाने पर वह दुविधा में होंगे. एक तरफ उनका मुख्यसचिव तो दूसरी तरफ उनके विभाग के मंत्री आजम खान के फरमान की तामील करने की दविधा.

प्रवीर कुमार

ऐसे में एक मंत्री द्वारा एक आईएएस अधिकारी को बदतमीज कहा जाना भारत की व्यवस्थापिक और कार्यपालिका के टकराव को दर्शाता है. क्योंकि जब प्रवीर को मुख्यसचिव ने अचानक तलब किया होगा तो उन्होंने मुख्यसचिव को जरूर बताया होगा कि उन्हें विभागीय मंत्री के पास मीटिंग में जाना है. इसके बावजूद मुख्य सचिव जावेद उस्मानी ने प्रवीर को जरूरी मीटिंग छोड़ने के लिए मजबूर किया होगा.

पाठकों को याद होगा, कुछ ही हफ्ते पहले आंध्रप्रदेश के एक मंत्री जी वेंक्टेश ने भरी सभा में, काम नहीं करने वाले नौकरशाहों को गोली मार देने की बात कही थी. इन दोनों मामलों में जो समानता है वह यही कि कुछ अपवादों को छोड़ कर राजनीतिक नेतृत् नौकरशाहों को अपना निजी नौकर समझता है. जबकि वह भूल जाता है कि नौकरशाह आम जनता के सेवक हैं न कि उनके. ऐसे में मंत्रियों का यह आचरण उनके अहंकार और असभ्य व्यवहार को दर्शाता है.

लेकिन इसका यह मलब हरगिज़ नहीं कि नौकरशाही दूध की धुली है. नौकरशाहों की एक बड़ी जमात है जो नेता-मंत्री की चापलूसी में वफादार गुलाम की तरह जीहुजूरी में लगे रहते हैं. ऐसा इसलिए कि वह बड़े विभागों में पोस्टिंग के लिए अपने स्वाभिमान को भी भूल जाते हैं.

नौकरशाहों और राजनीतिक नेतृत्व के इस व्यवहार का सीधा असर आम लोगों के लिए किये जाने वाले काम पर पड़ता है.लोकतंत्र की भलाई इसी में है कि राजनीतिक नेतृत्व नौकरशाहों को अपना गुलाम न समझे. वहीं नौकरशाह चापलूसी और जी हुजूरी के अपने आचरण से बाज आये. और दोनों मिल कर जनता के सेवक की भूमिका निभायें. यह भारतीय लोकतंत्र के लिए अनिवार्य शर्त है.

By Editor