मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह के बीच सीटों की दूरी बढ़ गयी है। अब तक हर बैठक में मुख्यमंत्री की बगल वाली सीट पर बैठने वाले मुख्य सचिव को तीसरी सीट आवंटित कर दिया गया है। विकास आयुक्त और डीपीजी का नंबर उनके बाद आता है। मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के बीच प्रशांत किशोर आ गए हैं। प्रशांत किशोर मुख्यमंत्री के परामर्शी हैं और उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त है। लेकिन वे कैबिनेट मंत्री नहीं हैं।

वीरेंद्र यादव

 

मुख्यमंत्री के साथ उच्च स्तरीय बैठकों की नयी सीटिंग व्यवस्था से पूरा प्रशासनिक महकमा हैरान है। पूरी आइएएस और आइपीएस लॉबी भी हतप्रभ है, लेकिन कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है। मुख्यमंprashantत्री के विवेकाधिकार और विशेषाधिकार पर सवाल खड़ा करने का कोई औचित्‍य ही नहीं है। सचिवालय के गलियारे में सभी एक-दूसरे से यही पूछ रहे हैं कि प्रशांत किशोर की प्रशासनिक हैसियत क्या है। मुख्य सचिव या विभागीय प्रधान सचिव मुख्यमंत्री के प्रति जवाबदेह होंगे या परामर्शी के प्रति। फाइल सीधे मुख्यमंत्री के पास जाएगी या परामर्शी के माध्यम से सीएम तक जाएगी। अभी इस संबंध में कोई निर्देश सचिवालय को नहीं मिला है। इस कारण भी ऊहापोह है।

 

मुख्यमंत्री का अपना आवासीय सचिवालय भी अपनी भूमिका को लेकर संयम बरत रहा है। मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव रहे डीएस गंगवार को शिक्षा विभाग का प्रधान सचिव बना दिया गया है। मुख्यमंत्री के पीएस का अतिरिक्त प्रभार उनके पास ही है। सीएम के सचिव चंचल कुमार और अतीश चंद्रा भी प्रशांत किशोर के साथ अपने आफिसियल संबंधों को लेकर संशय में हैं। कुल मिलाकर ‘आउट सोर्स’ के रूप में आए प्रशांत किशोर ने पूरे प्रशासनिक तंत्र का ‘लुक आउट’ बदल दिया है। हालांकि धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य होने की उम्मीद की जा सकती है।

By Editor