वामपंती विचारों के पैरोकार माने जाने वाले  अरुण माहेश्वरी का कहना है कि सीपीएम अपने हठवादी नीतियों से बाहर नहीं निकल रही और वह एक नौकरशाही के आचरण वाली पार्टी बन गयी हैcpm.logo

 

आज के ‘टेलिग्राफ’ और ‘आनंदबाजार पत्रिका’ की रिपोर्टों के अनुसार सीपीआई (एम) की केन्द्रीय कमेटी की आज से शुरू होने वाली बैठक के पहले पोलिट ब्यूरो की बैठक में सीताराम येचुरी ने आगामी पार्टी कांग्रेस में विचार के लिये राजनीतिक परिस्थितियों के बारे में पार्टी के अधिकृत दस्तावेज़ का विरोध करते हुए अपना एक और दस्तावेज़ पेश किया है, जिसमें पार्टी की इधर के वर्षों की कार्यनीतिगत लाइन पर अमल में की गयी भूलों के लिये अभी के प्रभावी नेतृत्व को ज़िम्मेदार बताया गया है ।

अख़बारों की इस रिपोर्ट में कितना झूठ और कितना सच हैं, हम नहीं जानते । लेकिन इतना ज़रूर समझते हैं कि सीपीआई(एम) का मौजूदा नेतृत्व पिछले एक दशक से भी ज़्यादा समय से जिस प्रकार की राजनीतिक कार्यनीतिगत लाइन पर चलता रहा है, वह देश के वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक यथार्थ के अवबोध से कोसों दूर कोरी आत्मगत, हठवादी और भारी भूलों से भरी हुई थी ।

 

सांगठनिक मामले में तो उसकी दशा और भी बदतर है । केन्द्रीयतावादी कमान प्रणाली पर चलते हुए ऊपर से नीचे तक उसका पूरा संगठन नौकरशाही संगठन बन गया है । उसके सभी जनसंगठन अपनी स्वतंत्र भूमिका को खो चुके हैं । और, इन सबके लिये उसके केन्द्रीय स्तर से लेकर राज्यों के स्तर तक का नेतृत्व ज़िम्मेदार है ।

 

इसीलिये, इस बात को पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि सीपीआई(एम) में एक लंबे अर्से से जो चलता रहा है, वह चल नहीं सकता है । इसने पार्टी से उसकी आंतरिक शक्ति और गति को छीन लिया है ।

 

हम नहीं जानते कि सीताराम येचुरी के वैकल्पिक दस्तावेज़ में क्या हैं । अभी तो पार्टी का अधिकृत दस्तावेज़ ही सामने आना बाक़ी है । उन सबके सामने आने पर निश्चित तौर पर उन पर विचार किया जायेगा । लेकिन सीताराम येचुरी जैसे क़द्दावर नेता का अभी के नेतृत्व के विरोध में ठोस रूप से उतरना सीपीआई(एम) के अंदर की एक ऐसी घटना है, जिसका स्वागत किया जाना चाहिये । ऐसी टकराहटों के बीच से ही भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन का आगे का रास्ता साफ होगा, एक पूरी तरह से नाकारा साबित हुए नेतृत्व की हाँ में हाँ मिलाने से नहीं ।

By Editor

Comments are closed.