सरकार ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो के दो शीर्ष अधिकारियों के बीच छिड़ी जंग में हस्तपेक्ष करने के कदम को आवश्यक ठहतराते हुए उच्चतम न्यायालय में कहा कि अधिकारियों की लड़ाई से एजेंसी की छवि धूमिल हो रही थी, इसलिए यह कार्रवाई करनी पड़ी।

केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल (महान्यायवादी) के के वेणुगोपाल ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष अपना पक्ष रहते हुए कहा कि एजेंसी के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच छिड़ी में हस्तक्षेप आवश्यक था, क्योंकि इनके झगड़े की वजह से देश की प्रतिष्ठित जांच एजेन्सी की स्थिति बेहद हास्यास्पद हो गई थी।

अटार्नी जनरल ने कहा कि दोनों अधिकारी बिल्लियों की तरह आपस में लड़ रहे थे। सरकार ने इन शीर्ष अधिकारियों पर नजर बनाये हुयी थी। सख्त कदम उठाना हमारी विवशता थी। उस समय निदेशक और विशेष निदेशक के कई फैसले और कदम ऐसे थे, जो देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी की छवि को धूमिल कर रहे थे। आम जनता उनकी आलोचना कर रही थी। ऐसे में एजेंसी की साख बचाए रखने के लिए हमने निदेशक को छुट्टी पर भेज दिया।

अटार्नी जनरल ने कहा कि हमने श्री वर्मा को केवल छुट्टी पर भेजा है। गाड़ी, बंगला, भत्ते, वेतन और यहां तक कि पदनाम भी पहले की तरह ही उनके पास है। आज की तारीख में सीबीआई के निदेशक वही हैं। दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय को यह तय करना है कि छुट्टी पर भेजे गए सीबीआई निदेशक ड्यूटी पर लौटेंगे या आगे उन्हें जांच का सामना करना होगा। श्री वर्मा ने उन्हें छुट्टी पर भेजे जाने के सरकार के फैसले को चुनौती दी है।

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