उच्चतम न्यायालय ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमों के त्वरित निपटारे से जुड़े एक मामले में केंद्र सरकार की अधूरी तैयारी को लेकर आज गहरी नाराजगी जताते हुए कहा कि वह उसे बेवजह आदेश जारी करने को मजबूर न करे।


न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ की पीठ ने माननीयों के खिलाफ आपराधिक मामलों के एक साल में निपटाने के लिए विशेष त्वरित अदालतों के गठन के मुद्दे पर अधूरी तैयारियों के साथ पेश होने पर केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगायी।  पीठ ने कहा कि अदालत ने एक नवंबर 2017 को आपराधिक मामलों को ब्योरा मांगा था, जो अभी तक नहीं दिया गया है। केंद्र सरकार ने जो हलफनामा दाखिल किया है वह महज कागज का टुकड़ा भर है। न्यायालय ने कहा, “केंद्र सरकार हमसे वह आदेश जारी करवाना चाहती है, जो हम नहीं चाहते।”

केंद्र सरकार ने पीठ को बताया कि अभी कई उच्च न्यायालयों ने ब्योरा नहीं दिया है। सरकार पूरे आंकड़े इकट्ठा कर रही है। इस पर न्यायालय ने मामले की सुनवाई पांच सितम्बर तक के लिए स्थगित कर दी।
शीर्ष अदालत ने पिछली सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार से पूछा था कि कितने सांसदों/विधायकों के ख़िलाफ़ आपराधिक मामले लंबित है और उन मामलों की स्थिति क्या है? त्वरित अदालतों के गठन का क्या हुआ? लेकिन केंद्र सरकार ने उपयुक्त जानकारी न्यायालय को उपलब्ध नहीं करायी है। न्यायालय दिल्ली भाजपा नेता अश्वनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई कर रहा है।

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