ये खबर बिहार के ज्यादातर अखबारों के लिए या तो नहीं है या बहुत छोटी है. खबर यह है कि बिहार विधान परिषद् में कर्मियों ने सचिव के खिलाफ खूब नारेबाजी की.पर धुंए के अंदर फैलती आग कुछ और ही कहानी का संकेत देती है.

सचिव विधान परिषद
सचिव विधान परिषद

प्रणय प्रिंवद

कई हिंदी अखबारों ने शुक्रवार, 06 सितंबर की इस खबर पर तवज्जो नहीं दी. पर एक उर्दू अखबार की छोटी खबर कुछ इस प्रकार है.

“बिहार कानूनसाज कौंसिल के मुलाजमिन ने तन्ख्वाह में इजाफा,प्रमोशन और एसीपी जैसे मुतालबात पर जोर डालने के लिए जुमा को कौंसिल के सेक्रेट्री पी.के. झा के चैम्बर के सामने जमकर नारेबाजी की और सेक्रेट्री पर मुलाजमीन की हकतलफी का इलजाम लगाया. हंगामा और नारेबाजी कर रहे मुलाजमीन के मुताबिक मोहकमे मालियात की मंजूरी के बावजूद सेक्रेटरी जो खुद जुडिशियल सर्विस के अफसर हैं, उन्हें एसीपी के फायदे से महरूम किए हुए हैं और मुलाजमीन को मिलनेवाली सहूलियात की यह कहकर मुखालफत कर रहे हैं कि उनकी तकर्रूरी गलत तरीके से की गयी है. बाद में चेयरमेन अवधेश नारायण सिंह के आने के बाद मुलाजमीन ने नारेबाजी बंद कर दी और अपने-अपने काम में मसरूफ हो गए. उधर काउंसिल के सेक्रेट्री ने इस मामले पर तबसरा करने से इनकार कर दिया.”- ( इंकिलाब,उर्दू समाचारपत्र, 7 सितंबर, पटना )

बिहार विधान परिषद् की खूबी कहें या खामी कि यहां कर्मियों का कोई संगठन नहीं है. इसलिए ऐसे में कर्मियों का एक साथ एकत्रित होकर नारेबाजी करना मायने रखता है. विधान परिषद् कानून बनाने वाली संस्था है और उच्च सदन है. इसके सचिव न्यायायिक सेवा से होते हैं. किसी न्यायाधीश को ही यहां सचिव का पद दिया जाता है. इसलिए उम्मीद रहती है कि वे न्याय की रक्षा हर हाल में करेंगे.

अब हम लौटते हैं उस खबर की ओर कि कर्मियों ने सचिव के दफ्तर के बाहर खूब नारेबाजी की. सोचने वाली बात है कि कानून बनाने वाली संस्था में ही क्या कानून का पालन नहीं हो रहा है या फिर कर्मी ही गलत हैं? हंगामा जब हुआ उसके बाद सभापति अवधेश नारायण सिंह के कक्ष में देर तक सचिव और उपसचिव के साथ बैठक हुई.

मुझ जैसे मीडियाकर्मी बाहर डेढ़ दो घंटे तक टहलते रहे कि कब उनका पक्ष लिया जाए. सभापति जब बैठक से निकले तो उन्होंने अपनी कार पर चढ़ते-चढ़ते कहा- “होता रहता है ये . टाइम पर आएगा तो प्रमोशन भी हो जाएगा”. अजीब बात यह कि कर्मियों से जब सचिव की बाताबाती हो रही थी तो किसी ने शताब्दी समारोह के बारे में भी कह दिया कि इसमें भी दो करोड़ की गड़बड़ी हुई है.

कुछ सवाल जो जरूरी हैं

शताब्दी समारोह में कितने का गोलमाल हुआ? यह जांच से ही सिद्ध हो सकता है. मैं नहीं जानता इस मामले में जांच होगी कि नहीं. हां मेरे पास इससे जुड़ा एक दस्तावेज है. जो सवालों की शक्ल में है. शहजाद नाम के एक व्यक्ति ने विधान परिषद् से ये सारे सवाल सूचना के अधिकार के तहत पूछे थे. जवाब क्या मिला इन सवालों का ये मेरे पास नहीं है.

ये अपने आप में बड़े सवाल हैं जो 18 जून 2011 को परिषद् से पूछे गए थे, कुछ सवाल देखिए –

1. बिहार विधान परिषद् के शताब्दी वर्ष समारोह का उद्घटान किस आधार पर 22 मार्च 2011 को कराया गया, ऐतिहासिक प्रमाणों के हवाले से जानकारी उपलब्ध करायी जाए.
2. बिहार विधान परिषद् के शताब्दी वर्ष समारोह मद का कुल बजट कितना है ? अलग-अलग वित्तीय वर्ष का व्योरा उपलब्ध कराया जाए.
3. बिहार विधान परिषद् के शताब्दी वर्ष समारोह मद में इस आवेदन की तिथि तक कुल कितनी राशि खर्च हुई.
4. बिहार विधान परिषद् के शताब्दी वर्ष समारोह के अवसर पर खरीदे गए स्मृति चिन्हों की कुल संख्या क्या थी, दर क्या थी, कुल राशि क्या थी, बिल की छाया प्रति सहित ब्योरा उपलब्ध कराया जाए.
5. स्मृति चिह्न किन्हें दिए गए,उसकी सूची उपलब्ध करायी जाए.
6. बिहार विधान परिषद् के शताब्दी वर्ष समारोह के अवसर पर खरीदे गए बैग की कुल संख्या क्या थी, दर क्या थी, कुल राशि क्या थी, बिल की छाया प्रति सहित ब्योरा उपलब्ध कराया जाए.
7. बैग किन्हें दिए गए, उसकी सूची उपलब्ध करायी जाए.
8. बिहार विधान परिषद् के शताब्दी वर्ष समारोह के अवसर पर खदीदी गई साड़ी की कुल संख्या क्या थी, दर क्या थी, कुल राशि क्या थी, बिल की छाया प्रति सहित ब्योरा उपलब्ध कराया जाए.
9. साड़ियां किन्हें दी गई,उसकी सूची उपलब्ध करायी जाए.
10. बिहार विधान परिषद् के शताब्दी वर्ष समारोह के अवसर पर कुल कितनी पुस्तकें, कितने-कितने पृष्ठों की प्रकाशित हुई तथा उस पर कितनी राशि खर्च हुई, बिल सहित ब्योरा उपलब्ध कराया जाए.
11. पुस्तकें किन्हें दी गई उसकी सूची उपलब्ध करायी जाए.
12. बिहार विधान परिषद् के शताब्दी वर्ष समारोह के आयोजन के लिए क्या कोई समिति आयोजित की गई,अगर हां तो व्यक्तियों की जाति सहित उसकी सूची उपलब्ध करायी जाए.
13. बिहार विधान परिषद् के शताब्दी वर्ष समारोह के अवसर पर प्रकाशित परिषद्-संवाद के शताब्दी अंक की कुल संख्या क्या थी, पृष्ठ कितने थे और उसकी छपाई पर कितनी राशि खर्च हुई. बिल भुगतान की छाया प्रति सहित जानकारी उपलब्ध करायी जाए.
14. बिहार विधान परिषद् के शताब्दी वर्ष समारोह के अवसर पर कितनी संख्या में सफारी सूट सिलवाए गए, एक पर कितना खर्च आया, कुल कितनी राशि खर्च हुई, बिल की छाया प्रति सहित जिन्हें सूट दिया गया उनकी सूची उलब्ध करायी जाए.
बिहार विधान परिषद् को बड़ा संवैधानिक अधिकार है. सभापति को भी ढ़ेर सारे अधिकार हैं. सचिव को भी. इसलिए किन्तु-परन्तु जैसा कुछ नहीं होना चाहिए. बात साफ-साफ होनी चाहिए. कोई आरोप लगाए उच्च सदन या उसके सचिव पर ये ठीक नहीं! तब तो और भी ठीक नहीं जब वहीं के कर्मी नारे लगाएं. जोर-जोर से.
(लेखक वरिष्ठ टीवी पत्रकार हैं)

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