विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने नालंदा विश्वविद्यालय का शुक्रवार को उद्घाटन किया. इस अवसर पर उन्होंने कहा कि इसके आज उद्घाटन के साथ इस प्रदेश को अंतरराष्ट्रीय जगत से जोड़ने की शुरुआत हो रही है. इसलिए जितना भी गौरव का दिन इस प्रदेश के लोगों के लिए है उतना ही गौरव का दिन हिंदुस्तान के लिए है. राजगीर के कंवेशन सेंटर में आयोजित समारोह में उन्होंने कहा कि यह विश्वविद्यालय नहीं परंपराओं का एक स्वरूप है जो कभी मरती नहीं, परिस्थितिवश कभी-कभी विलुप्त हो जाती हैं. लेकिन उनके आस्था रखने वाले लोग एक दिन उन परंपराओं की शुरुआत दोबारा जरूर करते हैं. गुप्त काल में दौरान छठी शताब्दी में शुरू हुए प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को 1193 ईस्वी में तुर्की शासक कुतुबुद्दीन ऐबक के सिपहसालार बख्तियार खिलजी ने ध्वस्त कर दिया था. इसके अवशेष से 12 किलोमीटर की दूरी पर इस विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य गत एक सितंबर से ही शुरू हो गया था. समारोह की शुरुआत में बिहार के मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी द्वारा सुषमा से बिहार के लिए कुछ किए जाने का आग्रह करने पर उन्होंने कहा बिहार के विकास की दिशा में नालंदा विश्वविद्यालय अपने आप में शुरुआत होगी. उन्होंने कहा, ‘इसके आज उद्घाटन के साथ इस प्रदेश को अंतरराष्ट्रीय जगत से जोड़ने की शुरुआत हो रही है. इसलिए जितना भी गौरव का दिन इस प्रदेश के लोगों के लिए है उतना ही गौरव का दिन हिंदुस्तान के लिए है. बिहार विधानमंडल ने 2007 में इस विश्वविद्यालय की पुनर्स्थापना को लेकर एक अधिनियम पारित किया था और यह एक राज्य विश्वविद्यालय बनने वाला था. इसके बारे में केंद्र ने सोचा कि यह उचित नहीं होगा इसलिए विदेश मंत्रालय ने इसको अपना लिया और इसकी रचना हम भारतीय विश्वविद्यालय के रूप में करने लगे. उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय के प्रति अन्य देशों की बढती रुचि को देखते हुए यह निर्णय लिया गया कि उसे केवल भारत की परिधि से बांधकर रखना उसके साथ अन्याय करना होगा. इसे अंतरराष्ट्रीय जगत में पहुंचने के लिए विदेश मंत्रालय के माध्यम से इससे संबंधित विधेयक 2010 में संसद में पारित हुआ. सुषमा ने कहा कि यहां आने के दौरान एक पत्रकार के यह कहने पर कि वह पुराने नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने जा रही हैं हमने इंकार करते हुए कहा कि पुनर्जीवित तो उसे किया जाता है जो मर चुका हो. उन्होंने कहा, ‘ऐसे ही आस्थावान लोगों में एक पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम शामिल हैं जिन्होंने वर्ष 2006 में कहा था कि हमें नालंदा विश्वविद्यालय की पुनर्स्थापना करनी चाहिए और संयोग देखिए उसी वर्ष के मध्यकाल में सिंगापुर के तत्कालीन विदेश मंत्री जार्ज जियो ने एक प्रस्ताव रखा जिसका नाम नालंदा प्रपोजल था.’

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