यह 1990 की बात है. जब कांग्रेस, बिहार से बिल्कुल उखड़ सी गयी थी. सन 89 के भागलपुर दंगे ने उसे उखाड़ दिया था. बीच-बीच में कांग्रेस, राजद के सहारे सांस लेती रही. इन 29 वर्षों में कांग्रेस की दो पीढ़ियां या तो राजनीति के नेपथ्य में चली गयीं या जो बची थीं राजद की उंगली थाम कर चलने को बेबस थीं.

इन तीन दशकों में कांग्रेस ने कोई विशाल रैली का मुजाहरा नहीं किया. लेकिन 3 फरवरी को पटना के गांधी मैदान ने जिस जन आकांक्षा रैली का आयोजन किया उसने पार्टी कार्यकर्ताओं और यहां तक नेताओं में उत्साह का संचार कर दिया है.

पतनशील कांग्रेस में आई जान

हालांकि गांधी मैदान की कैपासिटी के  लिहाज से अगर 70-75 हजार के करीब लोगों की भीड़ को बड़ी भीड़ नहीं कह सकते. लेकिन आप किसी भी पार्टी की रैली को देख लें, राजद की दो-चार रैलियों  के अलावा गांधी मैदान को भर पाना किसी भी दल के लिए संभव नहीं हुआ. गांधी मैदान में हाल के वर्षों में सर्वाधिक भीड़ 15 अप्रैला 2018 को दीन बचाओ, देश बचाओ कांफ्रेंस में जुटी थी. तब करीब पांच लाख लोगोें ने उस रैली में शिरकत की थी.

शक्तिप्रदर्शन का अवसर 

लेकिन अगर हम जन आकांक्षा रैली की बात करें तो इस रैली के द्वरारा कांग्रेस ने जो अपना शक्तिप्रदर्शन किया वह उसके लिए यकीनन उत्साहवर्धक था.

[box type=”shadow” align=”aligncenter” ]29 साल में कांग्रेस का सबसे बड़ा शक्तिप्रदर्शन अगड़ी जातियों को जोडने का लक्ष्य रैली से  से कार्यकर्ताओं में आया जोश[/box]

 

इस रैली में राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के कांग्रेसी सरकारों के मुख्यमंत्रियों ने अपनी भागीदारी दिखाई. इन तीनों मुख्यमंत्रियों को यहां बुलाने का संकेत साफ था. वह, यह कि उसने हालिया चुनावों में भाजपा को परास्त किया है. अब उसकी जीत का सिलसिला आगे भी जारी रहेगा.

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इस रैली की तैयारियों की शुरुआत भी काफी उत्साह के साथ हुई थी.

कई अन्य पार्टियों ने इसकी सफलता के लिए अपना नैतिक समर्थन दिया था. कांग्रेस इस रैली में अपने गठबंधन दलों को साथ ले आई. इसमें राजद, हम, रालोसपा के नेता भी शरीक थे.

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जहां तक राहुल के भाषण का सवाल है तो उन्होंने  कुछ भी नया नहीं कहा, जो पहले से कहते आ रहे हैं. अलावा इसके कि उन्होंने पटना युनिवर्सिटी को केंद्रीय युनिवर्सिटी का दर्जा देने की बात कही. कहा कि दिल्ली में उनकी सरकार बनी तो यह काम करके दिखायेंगे.

नीतीश-मोदी की दुखती रग

राहुल के इस कथन के दो निहितार्थ थे. पहला- कोई साल भर पहले जब नरेंद्र मोदी पटना युनिवर्सिटी के सौ साल के फंक्शन में आये थे तो नीतीश ने उनसे हाथ जोड़ कर गुजारिश की थी कि वह पटना युनिवर्सिटी को केंद्रीय युनिवर्सिटी घोषित करें. मोदी ने उन्हें साफ टरका दिया था. बिहार के कांग्रेसी नेताओं ने, राहुल को यह गुर दिया होगा कि वह इस काम को करने की घोषणा करके एक साथ मोदी और नीतीश दोनों को घेर सकते हैं. लिहाजा लिखे हुए पन्नों से पटना युनिवर्सिटी की बात निकाल कर राहुल ने उत्साहपूर्वक इसकी घोषणा कर दी.

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इस घोषणा से, या इस तरह के अन्य घोषणायें – जैसे किसानों की कर्ज माफी आदि की बात जब राहुल इन दिनों कह रहे हैं तो उनके चेहरे पर यह भरोसा दिखता है कि 2019 में उनकी सरकार बनने वाली है. यह भरोसा ही राहुल के अंदर उत्साह भर देता है.

अगड़ी जातियों पर कांग्रेस की नजर

इस रैली की खास बात यह भी थी कि राहुल ने उत्साह भरे अंदाज में यह कहा कि उनकी पार्टी ना तो यूपी में बैकफुट पर खेलेगी और ना ही बिहार में. यह कहते हुए उन्होंने जोड़ा कि बिहार में तेजस्वी, लालूजी, जीतन मांझी और उपेंद्र कुशवाहा के साथ फ्रंटफुट पर खेलेंगे. उनकी बातों से यह संकेत और मजबूत हुआ कि बिहार में उनका गठबंधन मजबूती से भाजपा के खिलाफ लड़ेगा और जीतेगा.

इस रैली की तैयारियों से ले कर अब तक जो एक खास बात सामने आयी है, वह यह है कि कांग्रेस ने इस दौरान अगड़ी जाति के कुछ प्रभावशाली क्षेत्रीय नेताओं को अपने साथ जोड़ने में सफलता पाई है. कांग्रेस का लक्ष्य भी अगड़ी जातियों को जोड़ना है, क्योंकि उसके लिए यही सेफ जोन भी है. वजह कि राजद, रालोसपा और हम जैसी उसकी सहयोगी पार्टियां पिछड़ों दलितों को जोड़ रही हैं. जबकि ये पार्टियां अगड़ी जातियों के प्रति अपने स्तर से कोई खास उत्साहित नहीं हैं.

 

 

 

 

By Editor