उच्‍चतम न्‍यायालय के नौ न्‍यायाधीशों की पीठ के द्वारा निजता के अधिकार मामले में फैसले का केंद्र सरकार ने स्‍वागत किया है. पीआईबी द्वारा जारी विज्ञप्ति में सरकार ने कहा कि उच्‍चतम न्‍यायालय की राय सरकार के विधायी प्रस्‍ताव में सुनिश्चित सभी आवश्‍यक सुरक्षाओं के अनुरूप है. न्‍यायालय ने भी आज निजता के अधिकार को संविधान के अनुच्‍छेद-21 द्वारा संरक्षित माना.

नौकरशाही डेस्‍क

प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार को घेरते हुए कहा गया है कि संविधान बनने के तुरंत बाद केन्‍द्र की कांग्रेस सरकार ने निरंतर रूप से यह कहा कि औचित्‍य के बिना किसी भी कानून द्वारा व्‍यक्ति को व्‍यक्तिगत स्‍वतंत्रता से वंचित किया जा सकताहै. कांग्रेस की सरकारों ने हमेशा ही यह दलील दी कि निजता किसी संवैधानिक गारंटी का हिस्‍सा नहीं है. वास्‍तव में आंतरिक आपातकाल के दौरान जब अनुच्‍छेद-21 को स्‍थगित कर दिया गया था, तब केन्‍द्र सरकार ने उच्‍चतम न्‍यायालय के समक्ष यह दलील दी थी कि किसी व्‍यक्ति को मारा जा सकता है. व्‍यक्ति को उसके जीवन के अधिकार से (स्‍वतंत्रता की बात छोड़ दें) वंचित किया जा सकता है और उसके पास फिर भी कोई रक्षात्‍मक उपाय नहीं रहेगा.

सरकार की ओर से कहा गया है कि यूपीए सरकार ने बिना किसी विधायी समर्थन के आधार योजना लागू की थी. इसी संदर्भ में यूपीए की आधार योजना को न्‍यायपालिका के समक्ष चुनौती दी गई थी. एनडीए सरकार ने संसद द्वारा स्‍वीकृत आवश्‍यक विधेयक को सुनिश्चित किया. पर्याप्‍त सुरक्षा के उपाय लागू किये गये. मौलिक अधिकारों और व्‍यक्तिगत स्‍वतंत्रता को मजबूत बनाने के संदर्भ में उच्‍चतम न्‍यायालय का आज का निर्णय स्‍वागत योग्‍य निर्णय है. इस निर्णय में कहा गया है कि व्‍यक्तिगत स्‍वतंत्रता कोई सम्‍पूर्ण अधिकार नहीं, बल्कि संविधान में दिये गये उचित प्रतिबंधों के अंतर्गत है.

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