ओवैसी का जादू: पूर्व MLA हजारों सर्थकों संग MIM में शामलि

सीमांचल के बड़े नेता में शुमार बैसी (Baisi) के पूर्व विधायक सईद रुकनुद्दीन अहमद (Syed Ruknuddin Ahmad) AIMIM में प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमान की मौजूदगी में शामिल हुए.

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शाहबाज़ की कवर स्टोरी

बिहार में सीमांचल में कदम जमा चुकी AIMIM (All India Majlis-e-Ittehadul Muslimeen) पार्टी अभी से मुस्लिम एवं पिछड़े वोटरों को गोलबंद करने में जुट गयी है। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी अब राजद के नेतृत्व वाली गठबंधन को आगामी विधान सभा चुनाव में गंभीर चुनौती पेश करने वाली है।

2020 बिहार विधान सभा चुनावो के मद्देनज़र AIMIM ने फिलहाल 32 सीटों की पहली फेहरिस्त जारी की है. इन सीटों पर पहले से राजद और कांग्रेस का कब्ज़ा रहा है। जिससे इस बात के संकेत मिलते है की बिहार में AIMIM की नज़र ऐसे राजद और कांग्रेस के वोटरों पर है जो ओवैसी को मुसलमानो की एक असरदार आवाज़ के तौर पर देखते है।

AIMIM ने पूर्णिया ज़िले के बायसी (Baisi) विधान सभा क्षेत्र से पूर्व विधायक सईद रुकनुद्दीन अहमद (Syed Ruknuddin Ahmad), जो सीमांचल में एक बड़ा नाम है, AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमान की मौजूदगी में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी में शामिल हो गए है. जिसे पार्टी की तरफ से अपने खेमे को मज़बूती प्रदान करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।

बिहार में राजद और कांग्रेस को अल्पसंख्यक समुदाय एवं पिछड़े वर्गो का समर्थन मिलता रहा है, जिसपर अब AIMIM अपनी नज़र जमा चुकी है।

AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमान नौकरशाही.कॉम से कहा की उनकी पार्टी सीमांचल में अपने पैर ज़माने के बाद अब बिहार की जातिवादी राजनीति को चुनौती देगी। देश में बीजेपी ने जो विनाश किया है उसके खिलाफ एक बड़े गठबंधन की ज़रुरत है। हमारी पार्टी लोगो को गोलबंद करने में जुटी है। AIMIM भविष्य में बिहार की राजनीति को नयी दिशा देगी।

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राजद पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा की RJD मुसलमानो के वोटों की तलबगार तो है लेकिन उसे मुस्लिम लीडरशिप मंज़ूर नहीं। मुस्लिम समुदाय की सोच अब बदल चुकी है। मसलमानो का जाग चूका तबक़ा अब हमारी तरफ बड़ी उम्मीद से देख रहा है। हम उन उम्मीदों पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करेंगे.

बिहार चुनावो में AIMIM कुल कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी इस सवाल पर उन्होंने कहा की यह अभी तक तय नहीं हुआ है। हमारी पार्टी कई अन्य पार्टी के नेताओं के साथ गुफ्तगू कर रही है. आने वाले दिनों में गठबंधन करने पर भी फैसला किया जा सकता है।

याद दिला दें की झारखंड वह राज्य है जहां ओवैसी फैक्टर् का लेटेस्ट असर देखने को मिला है. AIMIM को झारखण्ड विधान सभा चुनाव में नीतीश कुमार की जदयू से ज़्यादा वोट परसेंटेज मिला है। तेलंगाना के हैदराबाद कंस्टिच्युएंसी से नमूदार हुई बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली पार्टी ने पिछले पांच वर्षों में देशव्यापी पहचान अर्जित कर ली है और अब बिहार में मज़बूती से अपने पैर पसर रही है .

पार्टी ने सीमांचल के मुस्लिम बहुल ज़िले जैसे अररिया, पूर्णिया, किशनगंज, कटिहार में असर बढ़ाने की रणनीति बनायीं है। इसे मुस्लिम और दलित वोटरों को गोलबंद करने की एक कोशिश के तौर पे देखा जा सकता है। अब मुस्लिम समुदाय में युवा “अपनी सियासत और अपनी लीडरशिप” पर विश्वास करने लगी है। उनके लिए ओवैसी मुसलमानो की एक असरदार आवाज़ है जो मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व कर रही है। मुस्लिम युवा भी जो अपने वोटो की ताकत को समझ बिहार की राजनीति में एक असरदार किरदार निभाना चाहते है। अगर ऐसा होता है तो सेक्युलर एवं सामाजिक आंदोलन की राजनीति करने वाली राजद और कांग्रेस को काफी नुक्सान उठाना पड़ सकता है।

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने नौकरशाही डॉट कॉम को बताया की राजद मुस्लिम वोटो की तलबगार तो है लेकिन उसे मुस्लिम लीडरशिप मंज़ूर नहीं है। इसलिए AIMIM पार्टी 2020 बिहार विधान सभा चुनाव में जातिगत राजनीति को चुनौती देगी।

याद दिला दें की 2015 बिहार विधान सभा चुनाव से AIMIM ने बिहार की राजनीति में कदम रखा था। लेकिन उस वक़्त इस पार्टी का ज़्यादा असर नहीं देखा गया। लेकिन हाल ही में हुए उपचुनाव में किशनगंज सीट को जीतकर AIMIM ने सबको चौकाया था.

वर्तमान में किशनगंज विधान सभा क्षेत्र से AIMIM के कमरुल होदा विधायक है। उनसे पहले कांग्रेस के मोहम्मद जावेद इस निर्वाचन क्षेत्र से विधायक थे। पूर्व में राजद के बड़े नेता मुहम्मद तस्लीमुद्दीन किशनगंज से विधायक रह चुके है।

बिहार ओवैसी की जमी है नज़र

जिस तरह से असदुद्दीन ओवैसी का वोट बेस विस्तार कर रहा रहा है, वह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि बिहार में 2020 में होने वाले चुनाव में सेक्युलर दलों को सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा. ऐसा इसलिए कि बिहार की सामाजिक स्थिति झारखंड से काफी अलग है. झारखंड में मुसलमानों की आबाद 13-14 प्रतिशत से ज्यादा नहीं है. जबकि बिहार में मुसलमानों की आधिकारिक आबादी 17 प्रतिशत है. सीमांचल में किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया में तो करीब 15 सीट ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 50 से 70 प्रतिशत तक है. इसके अलावा दरभंगा, पूर्वी चम्पारण आदि ऐसे जिले हैं जहां 20-25 प्रतिशत आबादी वाली सीटें हैं. इस तरह ओवैसी फैक्टर बिहार चुनाव 2020 में भी असर दिखायेगा, यह तय माना जा रहा है .

ऐसे में बिहार चुनाव से पहले सेक्युलर दलों को ओवैसी फैक्टर पर ज़रूर गौर करना होगा।

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AIMIM का अखिलभारतीय विस्तार

ओवैसी की पार्टी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 2 सीटें जीती थी . AIMIM ने 44 सीटों पर लड़ कर 7.4 लाख वोट हासिल किये. जबकि इस पार्टी ने 2014 के चुनाव में मात्र 5 लाख वोट हासिल किया था. औसी के बढ़ते रसूख का खामयाजा कांग्रेस को उठाना पड़ा. उसके पहले औसी का जादू बिहार में सर चढ़ के बोल चुका है. सीमांचल की किशनगंज सीट पर हुए उपचुनाव में AIMIM ने सबसे बड़ा जख्म कांग्रेस को ही दिया है. यहां कांग्रेस ने,न सिर्फ हार कर अपनी सीट गंवाई बल्कि उसका प्रत्याशी तीसरे पायदान पर खिसक गया. इस प्रकार आज की तारीख में AIMIM के तेलंगाना में 7 सदस्य, महाराष्ट्र में दो सदस्य हैं जबकि बिहार असेम्बली में उसका एक सदस्य है.

झारखंड AIMIM ने JDU, LJP को पीछे छोड़ा
झारखंड में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने कुल 81 सीटों में से 8 पर चुनाव लड़ा. इसने 81 सीटों पर पड़े कुल मतों का 1.16 प्रतिशत वोट प्राप्त किया. एआईएमआईएम ने नीतीश कुमार के जदयू से भी ज्यादा वोट हासिल किया. जदयू को मात्र .73 प्रतिशत वोट मिले. जबकि उसके 25 या उससे ज्यादा उम्मीदवार मैदान में थे. राजद ने भी झारखण्ड विधान सभा चुनाव में AIMIM के लगभग बराबर सीटों पर चुनाव लड़ा था।

By Editor