अमेरिका भी बोला, पत्रकारों पर जासूसी तकनीक का इस्तेमाल गलत

इजराइली जासूसी तकनीक पेगासस के जरिये सरकार के आलोचक नागरिकों, पत्रकारों, नेताओं की जासूसी करने के खिलाफ पहली बार खुलकर बोला अमेरिका।

द टेलिग्राफ के अनुसार अमेरिका ने स्पष्ट कहा कि वह इजराइली तकनीक के जरिये सरकार विरोधी संगठनों, विरोधी दलों के नेताओं, पत्रकारों और सिविल सोसाइटी की जासूसी करने के खिलाफ है। अमेरिका ने इसे न्यायेतर साधन ( extrajudicial means) करार दिया। हालांकि अमेरिका ने यह भी कहा कि भारत में पेगासस के जरिये जासूसी किए जाने की कोई विशेष जानकारी नहीं है।

दक्षिण और पश्चिम एशियाई मामलों के असिस्टेंट सेक्रेटरी डीन थाम्पसन ने कहा कि सरकार विरोधी लोगों, पत्रकारों, सिविल सोसाइटी के विरुद्ध जासूसी उपकरणों का इस्तेमाल न्यायेतर कार्रवाई है। यह चिंताजनक है। वे कल पत्रकारों से बात कर रहे थे।

रविवार को अंतरराष्ट्रीय मीडिया संघ ने कहा था कि भारत में 40 पत्रकारों, विरोधी दलों के तीन नेताओं, एक सिटिंग जज सहित अन्य लोगों के 300 फोन नंबरों को पेगासस स्पाइवेयर के जरिये हैक करने की कोशिश की गई। भारत ने कहा है कि यह भारतीय लोकतंत्र को बदनाम करने की कोशिश है।

इधर भारत में लगातार कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल मोदी सरकार पर जासूसी करने का आरोप लगा रहे हैं। इस मामले में कई क्षेत्रिय दलों ने भी विरोध दर्ज किया है। मालूम हो कि फ्रांस सहित कई देशों ने पेगासस जासूसी मामले में जांच की घो,णा की है।

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पेगासस मामले पर @Pawankhera– ने कहा- काश! पुलवामा के पहले दुश्मनों की जासूसी करते तो हमारे 45 जवान शहीद न होते। काश, पेगासस का इस्तेमाल सरकार चीनी घुसपैठ से पहले करती। उन्होंने सीधे तौर पर प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री को जिम्मेवार बताते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश से जांच कराने की मांग की। सवाल यह है कि मोदी जी अपने ही मंत्रियों व अफ़सरों की, उनके परिवारों की जासूसी क्यूँ कर रहे थे? देश के दुश्मनों की जासूसी क्यूँ नहीं कर रहे थे?

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