उच्चतम न्यायालय में अयोध्या विवाद की सुनवाई न्यायिक इतिहास की दूसरी सबसे लंबी सुनवाई हो गई है। इससे पहले आधार की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई 38 दिनों तक चली थी, जबकि 68 दिनों की सुनवाई के साथ ही केशवानंद भारती मामला पहले पायदान पर बना हुआ है।

1973 में केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की 13 न्यायाधीशों की पीठ ने अपने संवैधानिक रुख में संशोधन करते हुए कहा था कि संविधान संशोधन के अधिकार पर एकमात्र प्रतिबंध यह है कि इसके माध्यम से संविधान के मूल ढांचे को क्षति नहीं पहुंचनी चाहिए। अपने तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद यह सिद्धांत अभी भी कायम है और जल्दबाजी में किए जाने वाले संशोधनों पर अंकुश के रूप में कार्य कर रहा है।

केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के मामले में 68 दिन तक सुनवाई हुई, यह तर्क-वितर्क 31 अक्टूबर 1972 को शुरू होकर 23 मार्च 1973 को खत्म हुआ था।

आधार की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीर्ष कोर्ट में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने सुनवाई की थी। इस बेंच में न्यायमूर्ति ए के सीकरी, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण शामिल थे।

आधार मामले में 38 दिनों तक चली सुनवाई के बाद गत वर्ष 10 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया गया था, जबकि इस पर गत वर्ष सितंबर में फैसला सुनाया गया था। इस मामले में विभिन्न सेवाओं में आधार की अनिवार्यता की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी।

 

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