जिस बाबरी मस्जिद को ढहाने जा रहे आडवाणी को लालू प्रसाद ने अपने राजनीतिक मेंटर कर्पूरी ठाकुर के गृह ज़िले समस्तीपुर में 29 अक्टूबर 1990 को गिरफ़्तार किया था, उस मस्जिद को भाजपा के तीन धरोहर, अटल-आडवाणी-मुरली मनोहर के साथ कल्याण सिंह, अशोक सिंघल, उमा भारती, आदि की अगलगुआ टोली ने 6 दिसंबर 1992 को गिरा दिया।

जयंत जिज्ञासु

 

आडवाणी की गिरफ़्तारी की कहानी भी दिलचस्प है। इसके पहले लालू प्रसाद आडवाणी के दिल्ली आवास पर चलकर देशहित में रथयात्रा को स्थगित करने का आग्रह किया। पर वो नहीं माने। जब उनका रथ बिहार पहुंचा और झारखंड के इलाक़े में घुसा, तो लालू प्रसाद ने धनबाद के उपायुक्त अमानुल्लाह और एसपी रंजीत वर्मा को आडवाणी की गिरफ़्तारी के लिए कहा। पर, दोनों अधिकारियों ने कथित तौर पर सांप्रदायिक हिंसा के अंदेशे से हाथ खड़े कर दिए।

फिर जब आडवाणी वहां से 28 अक्टूबर को  देर रात पटना आए और फिर रथ लेके समस्तीपुर पहुंचे, तो लालू जी ने योजनाबद्ध तरीक़े से मुख्य सचिव कमला प्रसाद को भरोसे में लेकर सहकारिता सचिव आरके सिन्हा और डीआईजी रामेश्वर उरांव को टेलीफ़ोन कर 29 अक्टूबर की सुबह स्टेट गवर्नमेंट हेलीकॉप्टर से समस्तीपुर भेजकर सर्किट हाउस से आडवाणी को गिरफ़्तार कराया। दरभंगा के आईजी आर.आर. प्रसाद को मुख्यमंत्री ने रात में ही सारा प्लान समझा दिया, वो भी सीनियर अफ़सरान के साथ समस्तीपुर के डीएम-एसपी को तैयार रहने का संदेश देकर रात में ही चल पड़े थे। आडवाणी को अरेस्ट वारंट दिखाया गया, उन्होंने वहीं वीपी सिंह की राष्ट्रीय मोर्चा सरकार से समर्थन वापसी का पत्र राष्ट्रपति के नाम लिखा। प्रमोद महाजन को  साथ ले जाने के आग्रह को मानते हुए लालू जी ने हेलीकॉप्टर में बिठा के आडवाणी जी को बिहार-बंगाल के बॉर्डर पर मसानजोड़ के रेस्ट हाउस में पहुंचा दिया।

लालू ने रखा उपवास

30 अक्टूबर 1990 को लालूजी ने सांप्रदायिक एकता के लिए 12 घंटे का उपवास रखा, और बड़ी सूझबूझ से बहुत कम बलप्रयोग के साथ बिना किसी फ़साद के सूबे के हालात को क़ाबू में रखा। आडवाणी की गिरफ़्तारी पर बिहार में एक चिड़िया को भी चूं नहीं करने दिया।

पटना की रैली में लालू जी ने शुरू में ही कड़े शब्दों में संदेश दिया था, “चाहे सरकार रहे कि राज चला जाए, हम अपने राज्य में दंगा-फसाद को फैलने नहीं देंगे। जहां बावेला खड़ा करने की कोशिश हुई, तो सख्ती से निपटा जाएगा। 24 घंटे नज़र रखे हुए हूँ। जितनी एक प्रधानमंत्री की जान की क़ीमत है, उतनी ही एक आम इंसान की जान की क़ीमत है। जब इंसान ही नहीं रहेगा, तो मंदिर में घंटी कौन बजाएगा, जब इंसान ही नहीं रहेगा, तो मस्जिद में इबादत देने कौन जाएगा ?”

पर, जब बाबरी मस्जिद को ढाह कर नफ़रतगर्दों ने गंगा-जमुनी तहज़ीब और क़ौमी एकता को तहसनहस करने की कोशिश की, तो पूरे मुल्क के अमनपसंद लोगों ने उसकी निंदा की। 6 दिसम्बर 92 को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने आरएसएस की मजम्मत करते हुए कहा था, “बाबरी मस्जिद को गिराकर साम्प्रदायिक शक्तियों ने पूरे विश्व में भारत को कलंकित किया है, 30 जनवरी यदि राष्ट्रीय शोक का दिवस है, तो 6 दिसम्बर राष्ट्रीय शर्म का दिवस होना चाहिए”।

लालू प्रसाद ने 7 दिसम्बर 1992 को बाक़ायदा आकाशवाणी और दूरदर्शन के ज़रिये सूबे की जनता को सामाजिक सौहार्द बनाए रखने की अपील की जिसके कुछ अहम अंश यूं हैं :

आकाशवाणी व दूरदर्शन पर संदेश
आप सभी जानते हैं कि वर्षों की गुलामी को काटने के लिए हमारे नेताओं ने, हमारे पुरखों ने, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, बाबा साहब अम्बेडकर, डॉ. लोहिया, जयप्रकाश नारायण, युसफ़ मेहर अली और देश की जनता चाहे कश्मीर की हो या कन्याकुमारी की, सभी जात, सभी धर्मों के लोगों ने भारत को आज़ाद कराने के लिए बड़ी भारी क़ुर्बानी देने का काम किया था, और आपसी एकता और हमारे पुरखों की क़ुर्बानी की वजह से देश आज़ाद हुआ।

अपने संविधान में जो पिछड़े भाई हैं, दबे-कुचले लोग हैं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लोग हैं, उनके लिए व्यवस्था की थी हमारे पुरखों ने कि हम इनको सेवाओं में विशेष अवसर देंगे, आरक्षण की व्यवस्था दी थी। यह देश सबों का देश है, यह धर्मनिरपेक्ष देश है, अलग भाषा, अलग बोली, हर मजहब का समान आदर किया जाएगा। लेकिन,  45 साल की आज़ादी और हमारी क़ुर्बानी को इस देश में भाजपा, आरएसएस, वीएचपी ने राम रहीम का बखेड़ा उठाकर, धर्म को राजनीति से जोड़कर अयोध्या में जो करोड़ों लोगों की आस्था का प्रतीक था बाबरी मस्जिद, उसे ढाहने का काम किया। इससे न केवल करोड़ों अक़्लियत के लोगों के, धर्मनिरपेक्ष जनता के मन में दुःख और शोक, भय की लहर फैल गई, बल्कि हम भारत के लोग दुनिया में कोई उत्तर देने की स्थिति में नहीं हैं।

बाबरी मस्जिद पर किया गया प्रहार देश के लोकतंत्र एवं धर्मनिरपेक्षता पर किया गया प्रहार है। हम सभी मर्माहत हैं और कभी भी इसे चुपचाप देखते नहीं रह सकते ।भारत की जनता में वह ताक़त है जिनसे बेमिसाल ताक़त वाली ब्रितानी हुकूमत को उखाड़ फेंका। इमर्जेंसी लागू करने वाली ताक़त को धूल चटा दी, और शिलान्यास करने की छूट देनी वाली सरकार के पाए ढाह दिए। हम इस मामले को देश की अमनपसंद जनता की अदालत में ले जा रहे हैं और जिन लोगों ने हमारी उम्मीदों पर पानी फेरा है, उनके मंसूबों को भी हम सत्य और अहिंसा के बल पर चकनाचूर कर देंगे। मैं आपलोगों को पूरा यक़ीन दिलाता हूं कि फ़िरक़ापरस्त लोगों को किसी क़ीमत पर क़ामयाब नहीं होने दिया जाएगा।

आपसे हमारी अपील है हर गाँव, शहर, गली और मुहल्ले, खेत और खलिहान में शांति और सद्भावना, दोस्ती और भाईचारा का माहौल बनाए रखें। बिहार से ही सद्भावना का संदेश पूरे देश में फैला। पूरे देश को एकजुट होकर माला में गूंथने की जिम्मेवारी आप सभी के कंधों पर है।हम आपसे आपका सहयोग चाहते हैं। सरकार ने हर जगह निगरानी रखी है, शासन को हिदायत दी गई है कि जहाँ भी कोई बलवाई हो, चाहे वो किसी धर्म, किसी मजहब का मानने वाला हो, उससे सख़्ती बरती जाय। दंगा-फ़साद को हम बर्दाश्त नही करेंगे।

इन्हीं शब्दों के साथ हम सभी भाइयों-बहनों को इकट्ठे नमस्कार, जय हिंद, आदाब-सलाम करके अपनी बात को समाप्त करते हैं।

ज़ाहिर है कि आज तक बाबरी का मसला सुलझा नहीं और जो राष्ट्रीय एकता व सांप्रदायिक सौहार्द को क्षति पहुंची, परस्पर अविश्वास की खाई बढ़ी, उसकी भरपाई नहीं की जा सकती। वसीम बरेलवी ने ठीक ही कहा :

तुम गिराने में लगे थे तुमने सोचा भी नहीं
मैं गिरा तो मसअला बनकर खड़ा हो जाऊंगा।

(यह आर्टिकल जयंत जिज्ञासु का यह लेख सबरंग इंडिया से साभार। लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली में शोधार्थी हैं।)

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