बापू की हत्या के बाद नेहरू और जेपी के कत्ल की दी थी धमकी : JDU

जदयू ने गुरुवार को भाजपा और संघ पर करारा हमला किया। उदाहरण सहित बताया कि कैसे भाजपा ने जेपी को धोखा दिया। हिंदूवादियों की धमकी का भी खोला पोल।

जदयू के दो प्रवक्ताओं डॉ. सुनील कुमार तथा अनुप्रिया ने संग और भाजपा पर गुरुवार को अब तक का सबसे बड़ा हमला किया। कहा कि 1977 में जेपी ने सभी विपक्षी दलों का विलय कराया। उन्होंने शर्त रखी थी कि जनसंघ (आज भाजपा) के नेता-कार्यकर्ता को जनता पार्टी में विलय के बाद आरएसएस की सदस्यता छोड़नी होगी। जनसंघ ने सत्ता के लालच में जेपी की शर्त मान ली, लेकिन विपक्ष की सरकार बनते ही जेपी को धोखा दे दिया। सदस्यता नहीं त्यागी। इसके बाद दोहरी सदस्यता बड़ा मुद्दा बन गया और जनता पार्टी के टूटने का एक बड़ा कारण बना।

दोनों प्रवक्ताओं ने एक और भी बड़ा आरोप लगाया कि हिंदू सांप्रदायिक तत्वों ने बापू की हत्या के बाद धमकी दी कि अगला नंबर नेहरू और जेपी का है।

दयू प्रवक्ता डॉ. सुनील कुमार एवं नेत्री आनुप्रिया ने फेसबुक लाइव के माध्यम से आज भाजपा को लोकनायक जयप्रकाश नारायण के विचारों के माध्यम से आइना दिखायाl लोकनायक की जयंती पर भाजपा ने सोशल मीडिया एवं अन्य माध्यमों से झूठ परोसने का काम कियाl बिमल प्रसाद जी द्वारा संकलित और भारत सरकार की वेबसाइट पर उपलब्ध जेपी के संस्मरणों पर आधारित चुनिंदा रचनाआओं के माध्यम से जदयू ने कई तथ्यों और जानकारियों को सामने रखा हैl

डॉ. सुनील ने कहा कि जेपी ने कई बार ना केवल आरएसएस और जनसंघ की आलोचना की है बल्कि उन्होंने एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि महात्मा गांधी की हत्या के बाद के समय में हिंदू संप्रदायवादियों ने खुलकर धमकी दी थी कि अब नेहरू और जयप्रकाश नारायण की बारी है। उन्होंने कहा कि आरएसएस के प्रति जेपी के आलोचनात्मक विचारों के कम से कम सौ उदहारण तो ऊपर वर्णित संकलन में ही मिल जाएगा।

डॉ. सुनील ने कहा कि 13 अक्टूबर 1973 को जेपी लिखते हैं कि- मुझ पर कई बार आरएसएस द्वारा भद्दे तरीके से हमले किए गए थे। मैं वो वक्त कभी नहीं भूल सकता जब पूर्वी पाकिस्तान के एक सद्भावना मिशन के दौरान मुझे, जेजे सिंह और उनकी पत्नी को पुरानी दिल्ली के टाउन हॉल में लगभग दो घंटों तक आरएसएस के स्वयंसेवकों एवं समर्थकों ने घेरकर रखा। इस दौरान उन लोगों ने हमारे खिलाफ ‘गद्दार को फांसी दो’, ‘ गद्दार को नहीं सुनेंगे’ जैसे भद्दे नारे लगाए। जब मैं हॉल में प्रवेश कर रहा था उस दौरान एक युवक ने चिल्लाकर मुझे ‘ पाकिस्तान का पिट्ठू’ भी कहा था। कश्मीर पर मेरे विचार और शेख अब्दुला से मित्रता के कारण भी जनसंघ द्वारा मुझे नीचा दिखाया गया।

जदयू प्रवक्ता ने कहा कि जनसंघ को जनता पार्टी में शामिल करने में जेपी ने कई शर्तें रखी थीं, उन शर्तों में पहली शर्त आरएसएस की सदस्यता को त्यागने की थी, इसके अलावा इन शर्तों में महात्मा गांधी जी द्वारा दिए गए सभी मूल्यों एवं आदर्शों में विश्वास रखना, एक समाजवादी राज्य की स्थापना के लिए समर्पण तथा सदस्य न तो भगवा टोपी पहनेंगे और न ही अपने झंडे का प्रदर्शन करेंगे साथ ही सांप्रदायिक गतिविधियों से दूरी बनाकर रखेंगे। जनसंघ के नेताओं ने विलय के वक्त सभी शर्तों को मानने की हामी भरी लेकिन बाद में मानने से मुकर कर जेपी तक को धोखा दिया था। आदतन बाद में पीठ में छूरा मारने में माहिर इन्होंने जेपी के शिष्य नीतीश कुमार के साथ भी यही दोहराया, लेकिन नीतीश कुमार के पास जेपी आंदोलन के समय से ही भाजपा और आरएसएस की कार्यप्रणाली का पर्याप्त अनुभव है। इसलिए अभी का समय जनसंघ और आरएसएस द्वारा जेपी के साथ किए गए छल का बदला लेने का है। जेपी हमेशा से आरएसएस और जनसंघ की कार्यप्रणाली, सांप्रदायिक और समाज विरोधी कृत्यों के प्रति कड़ा रुख रखते थे, परंतु कुछ समाजवादी नेताओं के दवाब में उन्होंने जनसंघ पर भरोसा किया।

जदयू प्रवक्ता ने कहा कि आत्ममुग्धता के चरम पर पहुंचे अखंड अज्ञानियों की फ़ौज भाजपा शायद यह भूल गयी है कि आसमान में थूकने पर करारे जवाब के रूप में थूक ही मिलता है। भाजपा वाले अपने अधकचरे ज्ञान के कारण हमेशा से लज्जित होते रहे हैं। जेपी के बारे में भी वे व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी वाला अधकचरा ज्ञान परोस रहे हैं, पर आज हर जानकारी इन्टरनेट पर उपलब्ध है। आरएसएस और भाजपा के बारे में जेपी के क्या विचार रहे हैं, उसका सारा वर्णन ऑनलाइन उपलब्ध है।

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