यूपी में विपक्ष के साथ कैसा सलूक होता रहा है, आप जानते हैं! त्रिपुरा में मानिक सरकार के साथ बदसलूकी। सीपीएम दफ्तरों में आग। अब दिलीप घोष के साथ हुई बदसलूकी।

आप भूले नहीं होंगे, जब भाजपा के नेता- कार्यकर्ता दिल्ली की सीमा पर धरना दे रहे किसानों को जबरन हटाने के लिए पहुंच गए थे। मरपाट हुई थी। शाहीनबाग के धरने के सामने गोली चलाई गई, यूपी में सपा और कांग्रेस नेताओं, यहां तक कि महिला नेताओं को जिस प्रकार ट्रोल किया गया, उन्हें झूठे मुकदमों में फंसाया गया, उससे समाज में जो संस्कार और संस्कृति उत्पन्न हुई, उसका अब विस्तार होता दिख रहा है। त्रिपुरा में पूर्व मुख्यमंत्री मानिक सरकार के साथ बदसलूकी हुई, सीपीएम के कई दफ्तरों को आग के हवाल कर दिया गया। हाल में टीएमसी कार्यकर्ताओं पर भी हमले हुए।

अब आज बंगाल में भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष के साथ बदसलूकी हुई है। उनके साथ धक्का-मुक्की की गई, जिसका वीडियो उन्होंने खुद ही सोशल मीडिया में साझा किया है।

दिलीप घोष के साथ जो कुछ हुआ, उसका कहीं से समर्थन नहीं किया जा सकता, लेकिन यह जरूर पूछा जाना चाहिए कि राजनीति में हिंसा की यह प्रवृत्ति कहां से आई। पहले कभी -कभार अपवाद स्वरूप ऐसा सुनने को मिलता था, लेकिन अब यह भारतीय राजनीति का खास पहलू हो गया है। यह संस्कार कहां से आया?

विपक्ष को देशद्रोही बता देने, दुष्कर्म तक की धमकी देने, मारपीट करने, झूठे मुकदमों में फंसाने, सीबीआई-ईडी-इनकम टैक्स के छापे इन सबका ही असर है कि राजनीति में भी असहिष्णुता बढ़ी है। हिंसा करनेवाले को ही महिमामंडित करने, उसके पक्ष में अभियान चलाने की प्रवृत्ति का जन्मदाता कौन है। हाल में असम में एक निहत्थे ग्रामीण के सीने में गोली मार दी गई। दूसरे दिन सोशल मीडिया में वहां के एसपी के पक्ष में ट्रेंड कराया जा रहा था।

दिलीप घोष के साथ जो हुआ, वह गलत है, लेकिन हमें समझना होगा कि यह हिंसक संस्कृति कहां से जन्म ले रही है, उसका विरोध भी जरूरी है। उम्मीद है, बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार विपक्ष पर ऐसे हमले को रोकने के लिए कदम उठाएंगी।

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