भगवान कृष्ण के चरित्र के विपरीत कार्य कर रहे तेजप्रताप

पूर्व मंत्री तेजप्रताप यादव ने कहा, कृष्ण-अर्जुन की जोड़ी तोड़ नहीं पाओगे। वे खुद को कृष्ण मान रहे हैं, क्या उनका कार्य कृष्ण के महान व्यक्तित्व जैसा है?

कुमार अनिल

पूर्व मंत्री तेजप्रताप यादव ने आज फिर ट्वीट किया कि चाहे जितना षड्यंत्र रचो, कृष्ण-अर्जुन की जोड़ी को तोड़ नहीं पाओगे! इससे पहले वे राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह को इशारों में हिटलर कह चुके हैं। वे तेजस्वी यादव के राजनीतिक सलाहकार संजय यादव को हरियाणा का ‘प्रवासी सलाहकार’ कहकर खुलकर नाराजगी जता चुके हैं।

क्या इस तरह कृष्ण कभी पांडव परिवार के किसी सदस्य से खफा हुए? पांडव परिवार की बात छोड़िए, जब कृष्ण से मिलने अर्जुन और दुर्योधन दोनों गए, तब भी उन्होंने दुर्योधन को फटकारा नहीं। यह नहीं कहा कि तुम मेरे अर्जुन को हराना चाहते हो। कृष्ण तो राग-द्वेष से बहुत ऊपर थे। दुर्योधन के कहने पर कि वह पहले आया है इसलिए वह पहले मदद मांगेगा, कृष्ण ने स्वीकार कर लिया। दुर्योधन ने जो मांगा, सो उसे दिया, अर्जुन ने जो मांगा, अर्जुन को दिया। कृष्ण जैसा कोई दूसरा दुनिया में हुआ नहीं।

ओशो कहते हैं-कृष्ण का व्यक्तित्व अनूठा है। कृष्ण अकेले ही ऐसे व्यक्ति हैं, जो धर्म की परम गहराइयों और ऊंचाइयों पर होकर भी गंभीर नहीं हैं, उदास नहीं हैं। कृष्ण अकेले ही नाचते हुए व्यक्ति हैं। कृष्ण अकेले हैं, जो समग्र जीवन को पूरा ही स्वीकार कर लेते हैं। इसलिए इस देश ने और सभी अवतारों को आंशिक अवतार कहा है, कृष्ण को पूर्ण अवतार कहा।

विधानसभा चुनाव में तेजस्वी का कृष्ण कौन?

कृष्ण का हर रूप अनोखा है। द्रोपदी ने जब-जब बुलाया, वे हाजिर हुए। बिना किसी अहंकार के। कभी यह नहीं पूछा कि मेरे स्वागत की तैयारी में क्या है? कृष्ण और अर्जुन का वह प्रसंग सर्वाधिक चर्चित है, जिसमें वे अर्जुन की तमाम आशंकाओं को दूर करते हैं और उसे युद्ध के लिए तैयार करते हैं। वे सारथि थे। रथ हांक रहे थे। अपने लिये कोई ऊंचा सिंहासन नहीं मांगा।

सवाल है कि अगर तेजस्वी यादव अर्जुन हैं, तो पिछले विधानसभा चुनाव में उनके शानदार प्रदर्शन के लिए कृष्ण कौन था? जाहिर है, उत्तर यही होगा कि कोई कृष्ण नहीं था। तेजस्वी ने खुद ही आगे बढ़कर चुनावी युद्ध का नेतृत्व किया। हां, चुनाव की रणनीति बनाने, मुद्दों का चयन करने, प्रचार के विविध तरीके अपनाने, विरोधियों की कमजोरी पहचानने और अपने जनाधार में जोश भरने जैसे अनेक कार्य थे, जिसके लिए तेजस्वी ने अपनी टीम बनाई। इसमें जगदानंद सिंह भी थे और संजय यादव भी। और भी अनेक लोग थे, जो पर्दे के पीछे रहकर भी तेजस्वी के लिए रात-दिन काम कर रहे थे।

एक और बात जरूरी है। अर्जुन युद्ध में उतरना नहीं चाहते थे। उनके अनेक सवाल थे। शंकाएं थीं। तेजस्वी के साथ ऐसा कुछ भी नहीं था।

अंतिम बात, कृष्ण ने अर्जुन और उनके सहयोगियों में कभी मतभेद पैदा नहीं किया। कृष्ण तो शंका दूर करते हैं, आप तो हरियाणा वाले सलाहकार और सबसे बुजुर्ग और लालू प्रसाद के सबसे विश्वसनीय नेता के प्रति अर्जुन के मन में शंका पैदा कर रहे हैं।

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लालू प्रसाद जब लोकप्रियता के शिखर पर थे, तब जोश में कुछ जगह उन्हें कृष्ण की तरह चित्रित किया गया, लेकिन शिखर पर रहते हुए भी कभी लालू ने खुद को कृष्ण नहीं कहा।

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