भयंकर रिसर्च, शिक्षा में सभी जातियों की संख्या बढ़ी, मुस्लिमों की घटी

एक दिल दहलानेवाली रिसर्च आई। उच्च शिक्षा में दलित, आदिवासी, पिछड़ा व सवर्ण सभी जातियों की संख्या बढ़ी, केवल मुस्लिमों की घटी। यूपी में सबसे अधिक घटी।

एक दिल दहलानेवाली रिसर्च रिपोर्ट आई है। देश में उच्च शिक्षा में दलित, आदिवासी, पिछड़ा और सवर्ण सभी जातियों की संख्या बढ़ी है, केवल केवल मुस्लिमों की घटी है। यूपी में उच्च शिक्षा में मुस्लिम छात्रों की संख्या सबसे अधिक घटी है। उच्च शिक्षा में देश भर में मुस्लिम छात्रों की संख्या आठ फीसदी घटा है। यूपी में सबसे अधिक 36 प्रतिशत घटी है। उच्च शिक्षा पर जारी अखिल भारतीय सर्वे रिपोर्ट-2020-21 से यह जनकारी सामने आई है।

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 2019-20 की तुलना में उच्च शिक्षा में दलितों में 4.2 प्रतिशत, आदिवासियों में 11.9 प्रतिशत और ओबीसी में 4 प्रतिशत नामांकन वृद्धि देखी गई। यहां तक कि उच्च जातियों का उच्च शिक्षा में नामांकन मंडल कमीशन के बाद घटा था, उसमें भी सकारात्मक वृद्धि देखी गई। उच्च जातियों का उच्च शिक्षा में प्रवेश 13.6 प्रतिशत बढ़ा है। केवल मुस्लिम आबादी ही ऐसी है, जिसका उच्च शिक्षा में प्रवेश घटा है, वह भी आठ फीसदी। हाल के वर्षों में किसी समुदाय के प्रवेश में इतनी गिरावट नहीं देखी गई। यह लोकतंत्र और लोकतंत्र का लाऊ सभी समुदायों को मिले, इस दृष्टि से चिंताजनक है।

उच्च शिक्षा में मुसलमानों के प्रवेश मुस्लिम बहुल प्रदेशों में भी घटा है। जम्मू-कश्मीर में उच्च शिक्षा में मुस्लिम छात्रों का प्रवेश 26 फीसदी घटा है। महाराष्ट्र में 8.5, तमिलनाडु में 8.1, गुजरात में 6.1, बिहार में 5.7, कर्नाटक में 3.7 गिरावट दर्ज की गई है। दिल्ली में 20 फीसदी मुस्लिम छात्र कम हो गए।

देश में एकमात्र केरल ही ऐसा प्रदेश है, जहां उच्च शिक्षा में मुस्लिम छात्रों की संख्या बढ़ी है। केरल में मुस्लिम छात्रों का नामांकन बेहतर तो है ही, यह प्रदेश ऐसा है, जहां के मुस्लिम छात्र सर्वाधिक (43 प्रतिशत) उच्च शिक्षा में हैं। केरल में मुस्लिमों को सरकारी नौकरी में 10 प्रतिशत तथा शिक्षा में 12 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है। यहां ओबीसी आरक्षण में भी मुस्लिमों की हिस्सेदारी है।

अखबार लिखता है कि उच्च शिक्षा में मुस्लिमों की हिस्सेदारी घटने की बड़ी वजह देश व्यापी हिंदुत्व का उभार है। उच्च शिक्षा पाने के बाद अन्य समुदायों की तुलना में मुस्लिमों को जॉब मिलने की कम संभावना भी कारण है। उच्च शिक्षा प्राप्त युवकों में बेरोजगारी सबसे ज्यादा इसी समुदाय में है। रिसर्च में मुस्लिम छात्रों की संख्या घटने की बड़ी वजह भेदभाव भी बताया गया है। किसी जॉब के लिए आवेदन देने पर ब्राह्मण, दलित या ओबीसी अभ्यर्थी की तुलना में मुस्लिम नाम होने पर इंटरव्यू के लिए बुलाए जाने की संभावना बहुत कम होती है।

नवीन से मिले नीतीश, बात तो बनी, पर घोषणा उचित समय पर

By Editor