बिहार दिवस : जो दुनिया को ज्ञान बांटता था, आज हाथ पसारे खड़ा है

गरीब या पिछड़ा होना बुरी बात नहीं है, बुरी बात है सच को स्वीकार करने से इनकार करना। बिहार दिवस पर स्वर्णिम इतिहास खूब याद किया जाता है। पर वर्तमान?

कुमार अनिल

बिहार में मूर्खों के लिए एक कहावत प्रचलित है- दादा के पास हाथी था, पोता सिक्कड़ लिये घूम रहा है। यह कहावत हम सब पर लागू होती है।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार दिवस पर हर बार की तरह इस बार भी स्वर्णिम इतिहास को याद किया। अपने दो पन्ने के संदेश में उन्होंने बिहार को ज्ञान और मोक्ष की भूमि बताया। फिर आगे उन्होंने शिक्षा विभाग को बधाई दी कि उसने इस बार का थीम जल-जीवन-हरियाली रखा है। इसके बाद मुख्यमंत्री ने पूरा एक पन्ना जल-हरियाली के महत्व पर लिख डाला है। हमारा बिहार इसी विरोधाभास में फंस गया है। हम कहते हैं बिहार ज्ञान की भूमि थी, पर आज हम ज्ञान के मामले में कहां खड़े हैं, इस पर आत्म अवलोकन करने को तैयार नहीं।

प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को हम टूरिस्ट प्लेस से अधिक महत्व देने को तैयार नहीं, जबकि कभी इस विवि में दुनिया के अनेक दोशों से छात्र पढ़ने आते थे। अमर्त्य सेन ने इस पर काफी काम किया है। नालंदा ट्रेडिशन को उन्होंने मजबूती से स्थापित किया। नालंदा ट्रेडिशन मतलब जहां सिर्फ बौद्ध दर्शन की ही पढ़ाई नहीं होती थी, बल्कि विज्ञान की भी पढ़ाई होती थी। तर्कशास्त्र की पढ़ाई होती थी। अनेक देशों के शिक्षक भी थे। एक प्रमुख बात यह कि वहां दस छात्रों पर एक शिक्षक थे।

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बिहार दिवस ऐसा मौका है, जब मुख्यमंत्री फिर से बिहार को ज्ञान भूमि बनाने के लिए अपनी कोई परिकल्पना पेश करते, लोगों से राय मांगते। पर बिहार का दुर्भाग्य है कि हम अपने खंडहरों का फोटो शेयर करके बिहार दिवस की कोटि-कोटि शुभकामनाएं देकर सो जाएंगे। वर्तमान कड़वा, बदसूरत है, पर सबसे पहले इसे स्वीकार करना होगा, तभी और केवल तभी हम पुराना गौरव वापस पा सकते हैं।

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बिहार के अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर कहते हैं कि आज बिहार साक्षरता दर में देश में सबसे नीचे है, प्रति व्यक्ति आय में सबसे नीचे है। कुपोषण में सबसे ऊपर। और उच्च शिक्षा में? डॉ. दिवाकर कहते हैं-माशाल्लाह, पूछिए मत। प्लस टू तक तीन लाख शिक्षक के पद खाली हैं। 2007 में सरकार ने विवि सर्विस कमीशन को भंग कर दिया, कि शिक्षक बहाली में भ्रष्टाचार होता है। 2017 में इसे फिर से बहाल कर दिया। दस साल समझने में लगा। किसका नुकसान हुआ?

आज का बिहार शिक्षा में चौपट, रोटी कमाने के लिए पलायन करने को मजबूर, अच्छे इलाज के लिए भी बाहर जाने को मजबूर है।

बिहार दिवस पर एक और जरूरी बात

बिहार ने ऐसे शासक दिए है, जिसने पूरे भारत पर शासन कर किया। आज की सच्चाई क्या है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पटना विवि को केंद्रीय विवि का दर्जा देने का विनम्र निवेदन किया। दिल्ली ने यह छोटी-सी इच्छा भी पूरी नहीं की। विशेष राज्य का दर्जा तो बड़ी बात है। सवाल है बिहार की आवाज इतनी कमजोर क्यों है, कौन जिम्मेदार है, कैसे आवाज मजबूत होगी?

बिहार को राजनीतिक रूप से सबसे जागरूक प्रदेश माना जाता था। 1974 में बिहार ने देश को राह दिखाई थी। आज हालत क्या है? किसान आंदोलन में पंजाब-हरियाणा-पश्चिमी उत्तर प्रदेश देश को राह दिखा रहा है और हमारे नेता कह रहे हैं कि बिहार में किसान आंदोलन नहीं है, इसका अर्थ है कि यहां के किसान तीन कृषि कानूनों के पक्ष में हैं। क्या सचमुच बिहार के किसान को एमएसपी नहीं चाहिए।

उम्मीद की किरण

2020 में उम्मीद की कुछ किरणें दिखी हैं। तेजस्वी यादव की चुनावी सभाओं में सबसे ज्यादा जोश तब दिखता था, जब वे रोजगार की बात करते थे, पढ़ाई, दवाई की बात करते थे। यही उम्मीद की किरण है कि लोग अतीतजीवी होकर रहना नहीं चाहते, वे वर्तमान को बदलना चाहते हैं। यह इच्छाशक्ति किसी दिन अपना असर दिखाएगी।

By Editor