बिहार सरकार में सामंतवादी नौकरशाहों की ऐसी तूती बोलती है कि उन्हें  सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना की परवाह भी नहीं  है. अदालती आदेश की बखिया उधेड़ते हुए फटाफट सामान्य वर्ग के कर्मियो को पदोन्नति तो दी जा रही है पर अनुसूचित जातियों को इससे वंचित किया जा रहा है.
नौकरशाही डॉट कॉम, ब्युरो रिपोर्ट
ऐसा करने का घातक परिणाम यह हो रहा है कि अनुसूचित जाति व जनजाति के कर्मियों को न सिर्फ पदोन्नति के लाभ से वंचित रखा जा रहा है बल्कि सैकड़ों ऐसे कर्मि हैं जो पदोन्नति के इंतजार में रिटायर होने के कगार पर पहुंच गये हैं.
दर असल दिनांक 17.05.2018 एवं 05.06.2018 को विभिन्न मामलों में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा माननीय न्यायालयों में प्रोन्नति में आरक्षण के बिन्दु पर लंबित याचिकाओं की अवधि में अनुसूचित जाति/जनजाति को उनके प्रोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था से वंचित नहीं किए जाने का अंतरिम न्यायादेश पारित किया है।
 
इस न्यायादेश के परिप्रेक्ष्य में प्रोन्नति में आरक्षण की सुविधा पूर्व की भांति लागू रहेगी। कार्मिक एवं पेंशन मंत्रालय, भारत सरकार के द्वारा डी0ओ0पी0टी0 सं0-36012/11/2016 पार्ट-02, दि0-15.06.2018 को प्रोन्नति में आरक्षण की सुविधा प्रदान किए जाने से संबंधित कार्यालय ज्ञापन निर्गत किए गए हैं। साथ ही साथ सभी राज्य सरकार को इसे कार्यान्वयन सुनिश्चित करने का अनुदेश भी जारी किया गया है। फिर भी बिहार सरकार के द्वारा उक्त के आलोक में प्रोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था प्रदान किए जाने हेतु किसी तरह का परिपत्र/संकल्प/अधिसूचना निर्गत नहीं किया गया है।
इस मामले में सबसे चौकाने वाली बात यह है कि बिहार के सटे झारखंड राज्य ने दि0-05.08.2017 को प्रोन्नति में आरक्षण की सुविधा प्रदान किए जाने के लिए आदेश निर्गत कर दिया है।
 
 
दलित विरोध की पराकाष्ठा
 
इस से साफ हो गया है कि  बिहार सरकार द्वारा प्रोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था को लागू किए जाने की मंशा नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बावजूद भी सामान्य वर्ग के सरकारी कर्मी को त्वरित गति से विभिन्न संवर्गो में एवं विभिन्न पदों पर प्रोन्नति हेतु अधिसूचना निर्गत करने के साथ-साथ पदस्थापित भी किया जा रहा है। जबकि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा पारित न्यायादेश एवं कार्मिक मंत्रालय के कार्यालय ज्ञापांक- डी0ओ0पी0टी0 सं0-36012/11/2016 पार्ट-02, दिनांक 15.06.2018 निर्गत होने के उपरांत अनुसूचित जाति/जनजाति को छोड़कर सामान्य वर्ग के कर्मियों को दी गई/दी जानी वाली प्रोन्नति पर बिहार सरकार के स्तर से तुरंत रोक लगानी चाहिए थी। फिर भी इसी बीच अनुसूचित जाति/जनजाति को छोड़कर सामान्य वर्ग को प्रोन्नति दिए जाने से अनुसूचित जाति/जनजाति के कर्मियों का अधिकार पूर्णरूपेण प्रभावित हुई है। जिसके फलस्वरूप अनुसूचित जाति/जनजाति कर्मियों को प्रोन्नति का लाभ मिले बगैर सेवानिवृत्त हो रहे है और सेवानिवृत्त भी होने वाले हैं।
 
 
मंशा में खोट 
अनुसूचित जाति/जनजाति में माननीय उच्च न्यायालय, पटना के द्वारा आरक्षण के विरोध में जब फैसला आया था, तब बिहार सरकार ने त्वरित गति से कार्रवाई करते हुए बिना परिपत्र जारी किए उसे सामान्य अभ्यर्थियों के पत्र के आलोक में ही संचिका पर दर्ज कर अनुसूचित जाति/जनजाति की प्रोन्नति बंद कर दी और फिर उसकी गलत व्याख्या करते हुए मूल कोटि की वरीयता के आधार पर प्रोन्नति लागू करने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग, बिहार सरकार के परिपत्र सं0-4800, दिनांक 01.04.2016 निर्गत किया गया, जबकि देश किसी भी राज्य सरकार ने मूल कोटि के आधार पर कर्मियों को प्रोन्नति नहीं दी। लेकिन नियमों की गलत व्याख्या कर बिहार सरकार ने इस तरह का अनुसूचित जातियों के प्रति घोर अपराध किया।
 
 अफसरों का भ्रष्ट आचरण
 
लेंकिन जब दिनांक 17.05.2018 एवं दिनांक 05.06.2018 को विभिन्न मामलों में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने प्रोन्नति में आरक्षण प्रदान किए जाने के पक्ष में पारित न्यायादेश एवं कार्मिक मंत्रालय भारत सरकार के द्वारा दिनांक 15.06.2018 को निर्गत कार्यालय ज्ञापांक को प्रभावी बनाए जाने के लिए निदेष दिए जाने के बावजूद बिहार सरकार के स्तर से इसे लागू करने हेतु परिपत्र जारी नहीं किया जा रहा है। परिपत्र निर्गत नहीं किया जाना अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है।यह दर्शाता है कि बिहार सरकार सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की लगातार अवमानना कर रही है। यह अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार अधिनियम, आरक्षण अधिनियम के उल्लंघन को परिलक्षित करता है, जो कि दण्डनीय अपराध है। सरकार का यह कार्य भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत भी दंडनीय है। यह अपराध बिहार सरकार के स्तर से लगातार जारी है, अधिकारी बेखौफ है। जिसके लिए संगठन के स्तर से आंदोलनात्मक कार्यक्रम की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संगठन के स्तर से शिष्टमंडल के रूप में बिहार सरकार के अनुसूचित जाति/जनजाति के काबीना मंत्री एवं मुख्य सचिव, बिहार सरकार से मिलकर प्रोन्नति में आरक्षण के संबंध में अनुरोध पत्र भी हाथोहाथ दिया गया। मुख्यमंत्री एवं अन्य सभी संबंधित प्रोधिकारों को भी अनुरोध पत्र भेजा गया है, किन्तु अभी तक उक्त न्यायादेश एवं आदेश का कार्यान्वयन बिहार सरकार के स्तर से नहीं किया है। संभवतः सरकार की मंशा पदोन्नति के सभी पदो को सामान्य वर्ग से भरने के बाद एक कागज का खुबसुरत झुनझुना अनुसूचित जाति/जनजाति को पकड़ा देगी।
 
 
 
इससे अनुसूचित जाति/जनजाति के सभी भाईयों एवं बहनों से अपील है कि अपनी चट्टानी एकता को प्रदर्शित करते हुए दिनांक 05.08.2018 को विद्यापति भवन(पुराना) म्युजियम के पीछे, पटना में अधिकाधिक संख्या में उपस्थित होकर विरोध प्रदर्शन में सहयोग किया जाना अपेक्षित है।

By Editor