नौकरशाही डॉट कॉम को इस बात का प्रमाण मिला है कि  बिहार की हायर व्युरोक्रेसी सामंतवादी सोच का अपना क्रूर चेहरा बदलने को तैयार नहीं है. उसे न तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना का खौफ है और न ही  केंद्र सरकार के आदेश  का भय. बिहार के नीतिनिर्धारण करने वाले महकमे ने प्रोमोशन में आरक्षण के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जी उड़ाने व उसकी अवमानना का खुल्लमखुल्ला खेल  किया है.

ज्ञात हो कि मई में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि संविधान पीठ का अंतिम निर्णय आने तक केंद्र तथा राज्य सरकारों के तमाम महकमे अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति कोटे के सरकारी कर्मियो व अधिकारियों के प्रोमोशम में आरक्षण को लागू करें. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद केंद्र सरकार के  मिनिस्ट्री ऑफ पर्सनल, पब्लिक ग्रिवासेंज ऐंड पेंशन डिपार्टमेंट ऑफ पर्सोनल ऐंड ट्रेनिंग ने 15 जून 2018 का एक शासनादेश जारी किया जिसमें तमाम केंद्र व राज्य सरकारों के सभी विभागों से कहा गया कि वह सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का पालन करें.

लेकिन बिहार सरकार के स्वसास्थ्य़ विभाग ने केंद्र सरकार के इस आदेश के तीन दिन बाद यानी 18 जून को  38 अवषधि नियंत्रकों के  प्रोमोशन की अधिसूचना जारी कर दी.  इस अधिसूचना को जारी करते हुए विभाग ने बड़ी ही शातिराना चतुराई दिखाई और इस अधिसूचना में इस शर्त का उल्लेख किया है कि  यह प्रोमोशन इस शर्त पर दी जाती है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन  मामले में पारित आदेश के फलाफल से प्रभावित होगा.

स्वास्थ्य़ विभाग ने इस मामले में जो शातिराना खेल खेला है वह यह है कि उसने सुप्रीम कोर्ट के उस अंतरिम आदेश का जिक्र तक नहीं किया जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने साफ आदेश दिया है कि रिजर्वशने इन प्रोमोशन के मामले में संविधान पीठ का फैसला आने तक रिजर्वेशन में प्रोमोशन के नियमों का पालन किया जाये.

स्वास्थ्य़ विभाग के इस अधिसूचना के बाद अनुसूचित जाति कर्मचारी व अधिकारियों में भारी आक्रोश व्याप्त है. ये संगठन सरकार के इस अधिसूचना के खिलाफ न सिर्फ अदालती अवमानना के कानूनी पहलुओं पर गहन विमर्श के बाद कानूनी कदम उठाने की तैयारी कर रहे हैं बल्कि राज्य सरकार की इस अधिसूचना के खिलाफ आंदोलन पर भी विचार कर रहे हैं.

 

 

 

 

 

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