एनडीए में विधानसभा अध्यक्ष पद पर फंसा पेंच: बीजेपी ने दावा ठोका

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बिहार में एनडीए गठबंधन में विधानसभा अध्यक्ष पद को लेकर तनातनी चल रही है. बीजेपी ने स्पीकर पद पर दावा ठोक दिया है जबकि जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार इसे अपनी पार्टी के पास सुरक्षित रखना चाहते हैं.

चुनाव में किसी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने पर स्पीकर की भूमिका अहम् हो जाती है इसलिए बीजेपी-जदयू दोनों अपनी पार्टी के लिए यह पद चाहती है.

आज एनडीए के सभी नवनिर्वाचित विधायकों द्वारा विधायक दल का नेता चुना जाना है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आवास पर एनडीए विधायक दल की बैठक चल रही है जिसमें नेता का चुनाव होना है. इससे यह साफ़ हो जायेगा कि मुख्यमंत्री पद का दावेदार कौन होगा.

लेकिन बीजेपी ने विधानसभा स्पीकर पद के लिए दावा ठोक दिया है जिसे जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार द्वारा मंज़ूर किये जाने की सम्भावना कम है. इसलिए एनडीए के दोनों प्रमुख दल, जदयू एवं बीजेपी में इसको लेकर पेंच फँस गया है.

विधानसभा स्पीकर पद पर एनडीए गठबंधन में पेंच फंस गया है. आपको जानकारी दे दें कि यह पद जदयू के लिए इतना महत्वपूर्ण है कि साल 2005 से 2020 तक जदयू ने इसे अपने पास रखा है. यह पद इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्यूंकि किसी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने पर या सरकार के अस्थिर होने पर स्पीकर का पद महत्वपूर्ण हो जाता है.

यहाँ तक कि दल-बदल के खेल में स्पीकर का फैसला अंतिम होता है. सिर्फ इतना ही नहीं सामान्यतः विधानसभा सत्र चलाने में भी स्पीकर जिस पार्टी के होते हैं, उसको ज्यादा तरजीह देते हैं। 

बताया जा रहा है कि जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार अपनी पार्टी के विजय कुमार चौधरी (जो फ़िलहाल इस पद पर हैं) को इस पद पर बनाये रखना चाहते हैं. लेकिन चूँकि इस बार नीतीश कुमार की जदयू चुनाव परिणाम के अनुसार 43 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर आ गयी है. वही भाजपा 74 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है. ऐसे में भाजपा भी अपने व्यक्ति को स्पीकर बनाना चाहती है. इसके लिए भाजपा के पास भी वही कारण है जो जदयू के पास है.

एक उदाहरण से समझें, जब 2015 में नीतीश कुमार फिर से जीतन राम मांझी को हटाकर मुख्यमंत्री बनना चाहते थे. जहाँ जदयू के बागी विधायक एवं भाजपा के विधायक मांझी का साथ दे रहे थे वहीँ स्पीकर ने नीतीश के वापस मुख्यमंत्री बनने में अहम् भूमिका निभाई थी.

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