चंद्रशेखर के पक्ष में खुलकर आए जगदानंद, कमंडलवादियों से लड़ेंगे

रामचरितमानस के कुछ अंशों को दलित विरोधी बताने वाले मंत्री चंद्रशेखर के पक्ष में खुलकर आए राजद प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद। कहा- कमंडलवादियों से लड़ेंगे।

कुमार अनिल

रामचरितमानस के कुछ अंशों को दलित-पिछड़ा और महिला विरोधी बतानेवाले बिहार सरकार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर के पक्ष में शुक्रवार को राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह खुलकर सामने आए। कहा कि कमंडलवादियों से लड़ने को तैयार हैं। वे समाजवादी नेता शरद यादव के निधन के बाद श्रद्धांजलि देने के बाद पत्रकारों से बात कर रहे थे। उन्होंने कहा कि यह अवसर दूसरे तरह का है, इसलिए ज्यादा कुछ नहीं बोलेेंगे, पर इतना जरूर कहेंगे कि चंद्रशेखर जी के साथ पूरा राजद खड़ा है। समाजवादियों ने जो राह हमें दिखाई है, उसी पर भाई चंद्रशेखर बढ़ रहे हैं। हम कमंडलवादियों से लड़ेंगे। जगदानंद सिंह जब पत्रकारों से बात कर रहे थे, तब उनके बगल में चंद्रशेखर भी थे।

मालूम हो कि चंद्रशेखर ने रामचरितमानस की कई पंक्तियों को सामने रखकर बताया था कि ये ग्रंथ नफरत फैला रहा है। अधम जाति में विद्या पाए, भयहु यथाअहि दूध पिलाए अर्थात जिस तरह सांप को दूध पिलाने से वह जहरीला हो जाता है, उसी तरह नीच जाति को शिक्षा देने से वह खतरनाक हो जाता है। एक और चौपाई का हवाला दिया था, जिसमें शूद्र और नारि को ताड़ना योग्य बताया गया है।

सोशल मीडिया पर अनेक लोगों ने कई दोहे-चौपाइयों का उल्लेख करते हुए अर्थ पूछा है। एमकेएस ने लिखा-कृपया इस चौपाई का अर्थ इस मूढ़ को भी बताने का कष्ट करें- सापत ताड़त परुष कहंता। बिप्र पूज्य अस गावहिं संता॥ पूजिअ बिप्र सील गुन हीना। सूद्र न गुन गन ग्यान प्रबीना॥

कहा गया है कि ब्राह्मण अगर गुणवान न भी हो तो उसकी पूजा करें और शूद्र अगर ज्ञानी भी हो, तो उसकी पूजा न करें। पत्रकार रक्षा ने लिखा हैलोक वेद सबही विधि नीचा, जासु छांटछुई लेईह सींचा। हिन्दी अर्थः केवट समाज वेद-शास्त्र दोनों से नीच है। अगर उसकी छाया भी छू जाए तो नहाना चाहिए। (अयोध्या कांड, दोहाः 195, पृष्ठः 498)

रक्षा के जवाब में लेखक अशोक कुमार पांडेय ने लिखा-यह पढ़कर किसी कथित उच्चजाति के व्यक्ति को सहज लग सकता है लेकिन जिन जातियों ने छूआछूत झेला है सदियों और अब भी झेलते हैं उन्हें दुख और क्रोध होना लाज़िम है। इस ग़ुस्से पर चीख़ने से पहले रुककर दो मिनट सोच लीजिए…शायद समझ पायेंगे।

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