कोविड – हारिए न हिम्मत बिसारिये न हरिनाम : अरुण शाद्वल

हिंदी कथा जगत के चर्चित नाम हैं अरुण शाद्वल। पहले से अनेक बीमारियां हैं। पत्नी भी बीमार। इसी बीच दोनों कोरोना पॉजिटिव हो गए। पढ़िए, कैसे जीती जंग।

अरुण शाद्वल

बड़ी दुविधा में था लिखूं या ना लिखूं। आखिर इसमें खास क्या है, आप बीमार पड़े और ठीक हो गए, पर लगा कि नहीं, उन कठिन परिस्थितियों में आशा-निराशा के बीच झूलते हुए उबर आने की दास्तान यदि किसी एक भी व्यक्ति को बल दे सके, तो भला होगा।

पहले कुछ तथ्य। मेरी उम्र 67 वर्ष है। पिछले 35 वर्षों से स्पांडिलाइसिस का मरीज हूं। हार्ट में दो स्टंट लगे हैं। बीपी है, शुगर है। इतना कि प्रतिदिन 150 यूनिट इंसुलिन लेता हूं। थायराइड है। प्रोस्टेट की परेशानी है और हेपेटाइटिस बी है। पत्नी को भी शुगर, बीपी थायराइड है। पिछले 5 महीनों से कैंसर का इलाज चल रहा है। मई के प्रथम सप्ताह में उनका ऑपरेशन होना था।

कोरोना ने विचित्र तरीके से आक्रमण किया। बैठे-बैठे बेहोश होकर गिर गया। 40 मिनट तक बेहोश रहा। उसी शाम बुखार आना शुरू हुआ। मैंने सामान्य खांसी-बुखार समझा, पर वह बढ़ता गया। खांसी भी शुरू होकर बढ़ती गई। सबका आरटीपीसीआर कराया, तो करोना पॉजिटिव निकला। मेरी स्थिति बिगड़ती जा रही थी। बुखार 101 डिग्री फारेनहाइट से कम नहीं हो रहा था। डोलो लेने पर कुछ कम होता, फिर बढ़ जाता। डॉक्टर के कहने पर सीटी स्कैन कराया, तो 50% संक्रमण निकला सीआरपी खून में भी में जो 5 से नीचे रहना चाहिए 131 था। एलडीएच जो 250 होना चाहिए 554 था। डेमो जो जीरो पॉइंट 10. 5 होना चाहिए 0.87 था। डॉक्टर कह रहे थे कि तुरंत अस्पताल में भर्ती होना आवश्यक है। स्थिति नियंत्रण से बाहर जा सकती है।

ऑक्सीजन का लेवल 93- 94 था, जो धीरे धीरे 89-90 तक आया। एक दिन 82 पहुंच गया, पर मैंने परिवार में कहा कि यदि मुझे कुछ होना है तो आत्मीय परिजनों के बीच होगा। मैं अस्पताल में नितांत एकांत में नहीं मरना चाहता। अतः में भर्ती नहीं होऊंगा।

ऐसी स्थिति में एक सहायक भी होना चाहिए, जो आपके साथ खड़ा हो। आपकी देखभाल करता हो। मेरे एक निकट संबंधी श्री प्रभाकर जी संपूर्ण समर्पित रूप से मेरे साथ खड़े रहे। मेरी देखभाल चिकित्सा सहायता करते रहे। इधर मैं बिस्तर पर असहाय स्थिति में पड़ा था और अखबारों में रोज निराशाजनक दिल दहला देने वाली खबरें। रोज में एक न एक मित्र के महाप्रयाण की खबर। राजकुमार प्रेमी, डॉक्टर शांति जैन, शैलेश्वर प्रसाद, घनश्याम जी कितने नाम गिनाऊं। परिवार में भी मेरे एक अनन्य संबंधी के घर में 2 सप्ताह में तीन मौतें। पत्नी का इलाज रुक गया, वह भी एक बड़ी चिंता।

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निराशा बढ़ती जा रही थी, पर मैं अपने निश्चय पर अटल रहा। होम आइसोलेशन में ही इलाज कराया। डॉक्टर के कहे अनुसार सुबह-शाम नसों में इंजेक्शन और हां, दवा ऐसी किल्लत कि इंजेक्शन ना मिले। जैसे तैसे कोर्स पूरा किया। स्वस्थ होने में 20 दिन लगे। पत्नी भी नेगेटिव हुई। उनका ऑपरेशन होना था, वह हो गया। वह भी स्वस्थ हो रही हैं।

याद रखें, आपका खुद से बड़ा संबल कोई नहीं है। खुद पर विश्वास रखें। मैंने दोस्तों से बात की। उन्हें ताकीद की कि भाई डिजिटल टच कम करो, ह्यूमन टच बढ़ाओ। हम दोनों एक दूसरे को सांत्वना देते रहे कि सब ठीक हो जाएगा। यूट्यूब पर पुरानी फिल्में देखीं। पुराने गाने सुने। हम दोनों स्वस्थ हैं और अखिल विश्व के स्वस्थ होने की कामना करते हैं। लेख का शीर्षक याद रखें वह सफलता की कुंजी है।

अब कोरोना का पॉजिटिव इफेक्ट। जो काम पिछले 20 वर्षों में नहीं कर पाया, कोरोना ने 20 दिनों में कर दिया। वजन 5 किलो कम हो गया। अतः अनुरोध है कि पॉजिटिव रहें। डरे नहीं। नीम हकीमों के चक्कर में न पड़ें। डॉक्टर की सलाह मानें। कोरोना निश्चित हारेगा।

शुभकामनाओं सहित

By Editor