दलित परिजनों का दर्द : 14 साल जेल वाले रिहा, 22 वर्ष वाले बंद क्यों

दलित परिजनों का दर्द : 14 साल जेल वाले रिहा, 22 वर्ष वाले बंद क्यों

भाकपा माले के विधायक तथा 22 साल से जेल में बंद दलित-पिछड़ों के परिजनों ने धरना दिया। रिहाई की मांग। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा विचार होगा।

बाहुबली आनंद मोहन की रिहाई के बाद बिहार में एक नया सवाल उठ खड़ा हुआ है। राज्य के छह दलित -पिछड़े टाडा कानून के तहत पिछले 22 साल से जेल में बंद हैं। भाकपा माले के सभी विधायकों तथा टाडा में बंद कैदियों के परिजनों ने शुक्रवार को पटना में धरना दे कर रिहाई की मांग की। इन कैदियों में पांच की उम्र 64 वर्ष से अधिक है। एक कैदी की उम्र 80 वर्ष है, एक की 78 वर्ष। इन बुजुर्ग कैदियों में कई बीमार हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि माले की मांग पर नियमों के तहत विचार होगा।

बिहार के जेल में टाडा कानून के तहत जेल में बंद कैदियों के नाम हैं जगदीश यादव (70 वर्ष), चुरामन भगत (78 वर्ष), अरविंद चौधरी (64 वर्ष), अजीत साव (56 वर्ष), श्याम चौधरी (65 वर्ष), लक्ष्मण साव ( 80 वर्ष)। भाकपा माले के राज्य सचिव कुणाल ने टाडा कानून के तहत जेलों में 22 साल से बंद कैदियों के परिजनों के धरने के फोटो शेयर करते हुए लिखा- 22 साल की सजा काट चुके वृद्ध और बीमार सभी 6 टाडा बंदियों की रिहाई की मांग पार माले विधायकों और पीड़ित परिजनों का पटना में धरना! उन्होंने एक अन्य तस्वीर भी शेयर की है, जिसमें परिजन रोते हुए दिख रहे हैं। इस फोटो के साथ कुणाल ने लिखा-इनके आंसू कौन पोंछे! हाल ही में मृत माधव चौधरी की पत्नी शिवसती देवी(बाएं) और जेल में बंद डा. जगदीश की पत्नी पुष्पा देवी (दाएं) टाडा बंदियों को अविलंब रिहा करो।

टाडा कानून में बंद कैदियों ने हाथ में पोस्टर लिये हैं, जिस पर लिखा है 14 साल जेल रहने वाले की रिहाई, 22 वर्ष से जेल में बंद कैदी कब रिहा होंगे। धरने में माले विधायक दल के नेता महबूब आलम सहित कई विधायक दिख रहे हैं।

मालूम हो कि टाडा एक्ट यानी Terrorist and Disruptive Activities (Prevention) Act 1985 से 1995 के बीच लागू था।

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